- डॉ. शशि मंगल
प्रकृति से अत्यंत प्रेम
करने वाली डॉ. कविता पनिया शिक्षिका भी हैं और कवयित्री भी जहाँ वह अपने विद्यार्थियों को बहुत कुछ सिखाती हैं वहीं प्रकृति से बहुत कुछ सीखती हैं अपने विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए उन्हें गढ़ने के लिए जहाँ पढ़ती हैं वहीं अपने जीवन को गढ़ने के लिए प्रकृति को पढ़ने का प्रयास करती हैं और उसके अनेकानेक रूपों से अपने मन को तथा रचनाओं को गढ़ती हैं.कविता पनिया का
काव्य संग्रह “कविमित्रा” राजमंगल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है यह संग्रह संपूर्ण प्रकृति को समर्पित है. जिसमें कविता पनिया ने प्रकृति का मानवीकरण बखूबी किया है और प्रकृति से संवाद भी खूब किया हैं संवाद से रची इस कविता की पंक्तियों को देखिए – अरे टहनी जरा
हर वसंत तुम इतना क्यों संवरती हो
फूलों के भार से हवाओं संग कितना लचकती हो
और देखिए –
इस ख़ामोशी में
पर्वतों के मौन में
यह स्वर कहाँ गूंजता
यदि टकराया न होता
झरना पत्थरों से
इस कविता के माध्यम से
कवयित्री बताना चाहती हैं की पीड़ा से परिवर्तन आता है कविता पनिया ने प्रकृति का ही मानवीकरण नहीं किया वरन मन के भावों का भी सुंदर मानवीकरण किया है.प्रस्तुत हैं इसके सन्दर्भ में कुछ पंक्तियाँ –
सुख बहुत
उसका रंगमंच किरदारों से भरा है
वस्तुओं का मानवीकरण देखिए –
एक झील सो रही थी
उसमें खड़ी कश्ती सपना देख रही थी
उसकी खुली आँखों में चंद तैर रहा था
प्रतीकात्मक रचनाओं में
मनोभावों को रोपा गया है इनकी रचनाओं में आशावादिता के भी दर्शन होते हैं – खग का निवेदन
पतझड़ के बाद पत्ते तो लौट आएँगे वृक्ष
तरु शाखाओं तुम
जरा नीड़ संभाले रहना
वसुधैव कुटुंबकम के भाव को कविता पनिया
ने किस खूबी से दर्शाया है देखते ही बनता है – भूगोल कभी सीमा से बाहर न जा सका
हवा के साथ कुछ सूखे पत्ते उड़ते हुए आए
सरहद पार कर गए
भूगोल पतझड़ से हर गया
इस प्रकार कविता पनिया की कविताओं में मौलिकता है प्रस्तुति की मौलिकता, भावों की मौलिकता “कविमित्रा” की सभी कविताएँ ह्र्दयस्पर्शी आशा और आनंद देने वाली है भाषाशैली प्रवाहमयी है. भाव भाषा सभी की दृष्टी से “कविमित्रा” पठनीय और सराहनीय है इसके लिए कविता पनिया प्रशंसा और बधाई की पात्र हैं.
पुस्तक – कविमित्रा
रचनाकार – डॉ. कविता पनिया
प्रकाशक – राजमंगल प्रकाशन
पृष्ठ – 113
(लेखिका वरिष्ठ साहित्यकार एवं पूर्व प्राचार्य शिक्षा महाविद्यालय, जयपुर)