- सुनीता भट्ट पैन्यूली
कोई अदृश्य शक्ति किसी
हादसे के उपरांत स्वयं को संबल देने या मज़बूत बनाने की प्रक्रिया के अंतर्गत भावनाओं का उत्स है, यह किसी अदृश्य, दैवीय शक्ति को नकारने वालों का मत हो सकता है किंतु अपने संदर्भ में कहूं तो मेरा हृदय सहर्ष स्वीकार करता है कि मैंने जिंदगी में किसी अदृश्य शक्ति को अपने जीवन में बार-बार महसूस किया है.ब्रह्मांड
ईश्वर और अदृश्य शक्ति एक हैं नहीं जानती ह़ूं
किंतु ब्रह्मांड तक किसी दुखी दिल की आवाज़ पहुंचती है यह बहुत अच्छे से जानती हूं मैं बशर्ते आवाज़ किसी दूसरे दिल की अतल से नि:स्वार्थ निकल रही हो.बात उन दिनों की है जब पिता को गये साल भर हो चला था वक़्त अपनी रफ़्तार से बढ़ रहा था,मेरी ज़िन्दगी की गाड़ी भी कभी पीछे मुड़ती कभी आगे देखती अपनी दिशा में गतिमान हो रही थी.
हुआ यूं कि पहले वायरल और फिर डेंगू के चपेट में आ जाने से घर ही घर में उकता गयी थी मैं. मन हो रहा था बाज़ार की रंगीनियां देखकर आ आऊं, थोड़ी हवा- पानी भी बदल जायेगा मेरा.ब्रह्मांड
मुझे आयी कमज़ोरी की वजह से
घर में कोई राजी नहीं था मुझे बाहर भेजने को. एक दिन दोनों बेटियां स्कूल गयीं पति आफिस गये और बैठे-बैठे मन में आया कि क्यों न मौके का फायदा उठाकर थोड़ा सैर-सपाटा कर लिया जाये. तुरंत ख़्यालों ने तरक्की की दिमाग को आदेश दिया हौंसला बुलंद करने का और मैं चली तैयार होने कमरे में, सोचा बेटियों के आने से पहले ही घर पहुंच जाऊंगी.घर की सारी व्यवस्था करने के
बाद मैं प्रवृत्त हुई पलटन बाज़ार की ओर. गार्डन चेयर खरीदने की सोच रही मैं बहुत दिनों से लेकिन पहले समय नहीं मिल पा रहा था और अब ये बीमारी.. बाजार पहुंचने के बाद मैं यहां वहां घूमी कुछ ज़रुरत का सामान लिया और चल पड़ी मैं फर्नीचर की दुकान में.ब्रह्मांड
एक गार्डन चेयर का सेट पसंद आया
मोल भाव किया और तुरंत खरीद ली चूंकि कार बाज़ार के बाहर पार्क की हुई थी अब मुझे समस्या हुई दुकान से गार्ड़न चेयर को ले जाया कैसे जाये? हालांकि गार्डन चेयर सेट प्लास्टिक का था किंतु इतना इतना हल्का भी न था कि स्वयं ले जा सकूं, दुकानदार ने किसी लड़के को मेरे साथ भेजा उसने दो प्लास्टिक की चेयर और टेबल उठाया और मेरे पीछे-पीछे आ गया.हम बाज़ार से बाहर निकले
और जहां मैंने कार खड़ी की थी वहां पहुंच गये. लड़के ने कार का आगे का दरवाज़ा खोला और कुर्सीयां बहुत मशक़्कत के बाद आगे की सीट पर फंसा दी मुझे भी राहत हुई चलो मेरा काम जल्दी हो गया क्योंकि आधा घंटा था अभी बच्चो के स्कूल से घर पहुंचने के लिए.कभी-कभी बहुत होशियारी भी
आपके गले पड़ जाती है.अब क्या किया जाये?इस मुसीबत आ बैल मुझे मार से कैसे पार पाऊं? गर्मियों के दिन थे इसी कशमकश में कार के अंदर बैठे-बैठे मेरे कपड़ों के भीतर अषाढ़ की नदी उफ़नाकर बह रही थी. किसको मदद के लिए पुकारती, बाहर झांका तो तिलभर पांव रखने की जगह नहीं थी.
ब्रह्मांड
मैंने ड्राइविंग सीट का दरवाज़ा खोला
और घर जाने के लिए कार स्टार्ट की किंतु यह क्या? जैसे ही गियर पर हाथ गया, गियर तो कुर्सी के पांवों द्वारा ऐसा फंसा हुआ था कि लाख कोशिशों के बावज़ूद भी मैं गियर हिला नहीं पा रही थी, सोचा कुर्सियों को बाहर निकाल कर दोबारा लगाती हूं किंतु सब प्रयास बेकार मेरी घबराहट और परेशानियां चरम पर थीं बच्चों का घर आने का समय हो चला था,घर की चाबी मेरे पास थी, मन में भयंकर उथल-पुथल चल रही थी कि पतिदेव को पता चलेगा तो डांट उनकी अतिरिक्त खाउंगी.ब्रह्मांड
कभी-कभी बहुत होशियारी भी
आपके गले पड़ जाती है.अब क्या किया जाये?इस मुसीबत आ बैल मुझे मार से कैसे पार पाऊं? गर्मियों के दिन थे इसी कशमकश में कार के अंदर बैठे-बैठे मेरे कपड़ों के भीतर अषाढ़ की नदी उफ़नाकर बह रही थी. किसको मदद के लिए पुकारती, बाहर झांका तो तिलभर पांव रखने की जगह नहीं थी.ब्रह्मांड
सभी अपने में मशग़ूल मैंने
अपने हाथ स्टेयरिंग पर निढाल छोड़ दिये, डांट खाने को तैयार होकर मैं पतिदेव को फोन करने ही वाली थी कि सहसा एक बुज़ुर्ग मुझे मेरी कार के आगे खड़ा अपने दोनों हाथ बांधे मुझे देखता नज़र आया जैसे की मेरी पेशानी पर उभरा हुआ कष्ट उसने पढ़ लिया.वह उम्रदराज़ “लीजिए मैडम
हो गया” कहकर मुस्कराया और फिर पूछने लगा अब ठीक है मैडम? प्रश्न के प्रत्युत्तर में मेरा मन हो रहा था मैं उन बुज़ुर्ग के पांवों में लोटकर आभार व्यक्त करूं, उन्हें मैंने आभार कहा और उन्हें बताया आज कैसे उन्होंने मुझे बहुत बड़ी परेशानी से बाहर निकाला है.कोई बात नहीं कहकर वह बुज़ुर्ग मुस्कराये और आंखों से ओझल हो गये.
कहने लगा मैडम क्या हुआ?
चिंता मत करो मैं देखता हूं .उसने मुझे कार से उतरने को कहा मेरी बगल वाली सीट जिस पर कुर्सियां रखी गयी थीं उस सीट को पेंचों को खोल कर पूरा पीछे की सीट की ओर झुकाकर लेटा दिया और मिनटों में ही कार के गियर अब कुर्सियों के पैरों से आज़ाद थे.ब्रह्मांड
वह उम्रदराज़ “लीजिए मैडम हो गया”
कहकर मुस्कराया और फिर पूछने लगा अब ठीक है मैडम? प्रश्न के प्रत्युत्तर में मेरा मन हो रहा था मैं उन बुज़ुर्ग के पांवों में लोटकर आभार व्यक्त करूं, उन्हें मैंने आभार कहा और उन्हें बताया आज कैसे उन्होंने मुझे बहुत बड़ी परेशानी से बाहर निकाला है.कोई बात नहीं कहकर वह बुज़ुर्ग मुस्कराये और आंखों से ओझल हो गये.ब्रह्मांड
सोच रही हूं आज क्या कहूं इसे
किसी एक पावन रूह का किसी दूसरी देह की रूह के लिए दर्द? या किसी अक्रांत मन को मजबूती प्रदान करने हेतु एकजुट हो आयी अदृश्य शक्ति जिसे भान हो जाता है किसी देह की मौन हृदय विदीर्ण गुहार का और निकल पड़ती है वह ब्रह्मांड से धरा की ओर दो अदृश्य आत्माओं के मध्य वात्सल्य व पाक संबंध बनाने हेतु जिसकी व्युत्पति ग़ालिबन किसी सद्भभावना का परिणाम हो.उन बुज़ुर्ग का सहसा किसी अदृश्य शक्ति के रूप में मेरी सहायता के लिए प्रकट होना और उनमें मुझे अपने पिता का रूप दिखना जिनसे अपनी बेटी को कष्ट में न देख पाना हर पिता की तरह हमेशा असहनीय ही रहा. किंतु कोई माने या न माने मेरी स्मृतियों के संग्रहित अनुभवों के दस्तावेज में इस अदृश्य शक्ति ने कहीं न कहीं अपने पुख़्ता होने का सुबूत मुझे मेरे जीवन में कई बार दिया है.
ब्रह्मांड
उस अदृश्य शक्ति का होना
कहीं न कहीं मेरे अनुभवों को पुख़्ता ही करता है जिन्होंने मेरी थेज़िंदगी के कई पड़ाव पर कई दफ़ा अपने होने का मुझे अहसास कराया है.उन स्मृतियों के और अंश फिर कभी.उन बुज़ुर्ग का सहसा किसी
अदृश्य शक्ति के रूप में मेरी सहायता के लिए प्रकट होना और उनमें मुझे अपने पिता का रूप दिखना जिनसे अपनी बेटी को कष्ट में न देख पाना हर पिता की तरह हमेशा असहनीय ही रहा. किंतु कोई माने या न माने मेरी स्मृतियों के संग्रहित अनुभवों के दस्तावेज में इस अदृश्य शक्ति ने कहीं न कहीं अपने पुख़्ता होने का सुबूत मुझे मेरे जीवन में कई बार दिया है.(लेखिका साहित्यकार हैं एवं विभिन्न पत्र—पत्रिकाओं में अनेक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं.)