- आशिता डोभाल
यूं तो हमारे पहाड़ों में
ऊपर वाले ने हर एक चीज को इतनी खूसूरती से बनाया है जिसकी सुंदरता को दर्शाने के लिए शब्दकोश के शब्द भी कम पड़ जाते हैं या यूं कहें की ऊपर वाले ने कुछ चीजों को मानो सोच विचार कर बनाया हो बस कमी है तो मानव सभ्यता की जो उन चीज़ों को ज्यों का त्यों नहीं रख सकती है. पर्यटन राज्य का दर्जा भर मिलने से हम खुश हो जाते हैं और अपने को गौरवान्वित महसूस करने लगते हैं और हम लोगों की लगातार कोशिशें भी रहती हैं कि हम बाहर से आने वाले पर्यटकों को लुभाने का प्रयास समय—समय पर अलग—अलग तरीकों से करते आए हैं, पर अफसोस की बात है कि बहुत सारी चीजें अभी भी हमारे पर्यटन के लिहाज से अछूती हैं. कहने का तात्पर्य यह है कि संस्कृति सम्पन्न प्रदेश आज भी संस्कृति को बचाने की कवायद करने को मजबूर है. पयर्टन की अपार संभावनाएं होने के बावजूद भी आज कई जगहों को पर्यटक मानचित्र पर जगह नहीं मिली है.संस्कृति
मैं घूमने की शौकीन हूं,
जब भी मौका मिलता है तो चल पड़ती हूं, चाहे कार्यक्रम नियोजित हो या न हो. सितम्बर माह में टिहरी बांध पर बने पुल डोबरा चांठी की खबरें पढ़ रही थी तो पूरे सोशल मीडिया में खबरों की बाढ़ ही कहूंगी आ रखी थी कि 14 वर्षों का बनवास पूरा हो गया टाइप की खबर दिल और दिमाग में घर कर रही थी कि ऐसा कैसा पुल होगा, पर टिहरी से मेरा कुछ ज्यादा ही गहरा लगाव है वहां कुछ खूबसूरत रिश्ते है जिनके साथ मैंने हमेशा अपने सुख दुख बांटे हैं और सालभर या डेढ़ साल में एक बार हम लोग एक साथ होते हैं और फिर एक ऐसे कार्यक्रम को नियोजित किया जाता है जिसको पंक्तिबद्ध तरीके से निपटाने की कोशिश की जाती है पर जब प्लान करते हैं तो कुछ और होता है और उस जगह पर कुछ और हो जाता है और वही घुमक्कड़ी को मजेदार बना देता है. इस बार का घुमक्कड़ी का केंद्र बिंदु डोबरा चांठी पुल था पर ये मौका इतनी जल्दी आ जाएगा, मैंने कभी सोचा भी नहीं था. हमेशा की तरह लापरवाही मेरी परेशानी का सबब बनती है, घर से बाहर जब जाना होता है मेरी आधी अधूरी चीजें मेरे साथ जाती हैं और उन आधी अधूरी चीजों की कमी को मेरे दोस्त पूरी कर देते है तो ऐसा ही कुछ इस यात्रा के दौरान भी हुआ.प्रकाशी राणा
सच बात तो ये भी है कि
इसमें गलती मेरी भी नहीं होती है क्योंकी मुझे पहले कोई जानकारी भी नहीं होती है कि कहां जाना है क्या करना है और अबकी बार दीदी (प्रकाशी राणा,अनीता नेगी) की थी. जाने का प्लान करने का फैसला इन दोनों ने ही लिया था, मुझे तो तब पता चला जब घर से देहरादून पहुंच चुकी थी और सिर्फ डोबरा चांठी पुल ही नहीं जाख जाने का प्लान भी कर चुके थे, बस सब मेरा इंतजार कर रहे थे बल्कि मेरी वजह से प्लान एक दिन आगे कर चुके थे मेरी यात्रा देहरादून से शुरू हुई और ऋषिकेश, नरेंद्र नगर,चंबा होते हुए टिहरी पहुंचकर खत्म हुई.अमूमन यात्रा करते समय मै देखती हूं कि खिड़की वाली सीट मिल जाय और कान पर हेडफोन पर चलते गाने सफर को मजेदार बना देते हैं. मैंं ऋषिकेश से बस में बैठी तो काफी लंबे समय बाद बस में सफर का लुफ्त उठाने का मौका भी इस सफर के दौरान मिल गया था पर बस में बैठते ही दिमाग में कोरोना का डर सताने लगा क्योंकि बस वाले ने यात्रियों को ठूस—ठूस कर भर हुआ था. लोग बेपरवाह बिना मास्क के, कुछ बैठे व कुछ खड़े थे. किसी को कोई डर भय नहीं.शरीर
वैसे संक्रमण तो हमारे शरीर
की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करता है कि हम कितने मजबूत हैं और कितने कमजोर हैं. यात्रा के दौरान मन में यही डर रहा कि यदि कोई संक्रमित व्यक्ति बस में होगा तो भगवान ही जाने कि आगे क्या होगा फिर भी मैं जैसे तैसे टिहरी शहर पहुंच ही गई. खूबसूरत—सा पहाड़ी शहर, शानदार, आलीशान घर हैं इस शहर में, पर पूरा वीरान—सा. हमेशा की तरह वहां लोग कम मकान ज्यादा दिखते हैं और सबसे बड़ी बात जो मुझे हमेशा से खलती थी वो ये कि बीच—बीच में यदि पेड़ पौधे नाममात्र के भी होते तो ये शहर शिमला और मसूरी को मात दे सकता था, खैर ये तो लोगों को समझना होगा कि उन्हें पेड़ पौधे लगाने है या नहीं.शरीर
मेरा तो हर 6 माह या सालभर का एक टूर फिक्स ही रहता है यहां भावनात्मक जुड़ाव होने की वजह से
मेरे कुछ खूबसूरत रिश्ते हैं जो कभी मेरे लिए अनजान थे पर आज वो मेरे बहुत करीबी हैं मेरी एक दोस्त नीलम रावत जो वर्तमान में भोपाल मध्य प्रदेश में रहती है उसका मायका और उसकी बहने मेरे लिए आज मेरी फैमिली की तरह है और दीदी लोगों ने मेरी वजह से डोबरा चांठी पुल का टूर मेरी वजह से एक दिन आगे भी किया था शाम को मौसी (नीलम की मां) के घर पर आधी रात तक गपशप में बिजी रहे है और अगले दिन की प्लानिंग करने लगे और तय हुआ कि दिन का खाना सब अपने अपने घर से बनाकर लाएंगे जिससे किसी एक ही के ऊपर काम का बोझ न हो और सब सुबह अपनी अपनी तैयारी करने में जुट गए और करते करते दिन के 12 बज चुके थे क्यूंकि प्लान पुल को रात में जगमगाते हुए देखने का हुआ था पर प्रकाशी दीदी ने पता किया तो पता चला कि रात में लाईटिंग का सिस्टम 1 नवंबर से शुरू होगा, ये सब प्लान करते करते 1 बजे निकले और 12 किलोमीटर आगे जाकर अचानक से जाख में लंच करने का फैसला सुना दिया और सब बच्चे खुश क्योंकि वहां पर पानी का गदेरा जैसा था और उनके दिमाग में मस्ती का प्लान बन गया.शरीर
मैं थोड़ी देर के लिए तो चौंक
गई थी कि ये तो वही हो रहा है जैसे देहरादून वाले बोलते है मालदेवता जाना है बिल्कुल वैसा ही, पर हम पहाड़ियों को कोई भी जगह आसानी से पसंद कहां आती है और जब हम इसी परिवेश में पले बढ़े है और हम यहीं जीवन यापन कर रहे है तो जैसी कैसी जगह हमें पसंद नहीं आती है खैर वहां रूके सबने ठन्डे पानी में मस्ती की मुझे छोड़कर क्योंकि मै हमेशा ठन्डे पानी से परहेज़ ही करती हूं क्योंकि मुझे संक्रमण बहुत जल्दी हो जाता है और सर्दी जुखाम से हमेशा खतरा बना रहता है पर उन लोगो की मस्ती को देखते हुए मुझे भी मजा आ रहा था और फिर मस्ती करते करते शाम के 4 वहीं बज चुके थे खाना खाया सबकी डिमांड पर खाना भी उपलब्ध था माछ भात और पूरी,रोटी,आलू के गुटके, छोले चटनी अचार सब कुछ था. शाम के ठीक 4:30pm पर हम लोग पुल का दीदार करने पुल के ऊपर कदम बढ़ा रहे थे,सचमुच देखने लायक नजारा ढलते सांझ में सूरज की किरणों वाला दृश्य अत्यन्त मनमोहक था और ठंडी हवा की सिरहन बदन को जब छू रही थी तो सर्दियों के आगमन का एहसास हो रहा था और हम लोग उसी ठंडी हवा के आगोश में पुल पर अठखेलियां करते करते मस्ती में झूमने लगे.शरीर
पुल के शुरुआत में काम चल रहा था तो उन लोगों ने हमें सावधान किया और एतिहात बरतने की सलाह दी
कि ध्यान रहें काम भी चल रहा है. मेरे दिमाग में तो बस एक ही बात थी कि झूला पुल है तो हिलता भी होगा ऊपर से टिहरी की विशालकाय झील पर बना है तो डर भी लग रहा था एक एक कदम डर—डर कर रख रही थी एक एक खंबे और उस पर बंधी रस्सी को ध्यान से देखती रही पर कमाल ही है आधुनिक तकनीक की मिशाल कायम करता ये पुल पर्यटकों को लगातर अपनी ओर आकर्षित कर रहा है.शरीर
मैं देख रही थी कि पुल पर काफी लोग घूमने आए हुए थे,सचमुच अदभुत नजारा और सिर्फ पयर्टन के लिहाज से ही नहीं बल्कि प्रतापनगर के एक बड़े भू—भाग की जनता का आने जाने
के मार्ग को सुगम करने वाला ये सेतु बनाने वाला कोई राम भगवान की तरह ही होगा जिसके दिमाग में इस तरह की तकनीक ने जन्म लिया हो और धन्य हैं वो महापुरुष जिनके हाथों से ऐसी योजनाएं बनती है मैंने वहां काफी ढूंढने की कोशिश की की किसी के नाम का कोई बोर्ड तो होगा पर नहीं मिला वो शायद इसलिए क्योंकि काम चल ही रहा था हा चर्चा का विषय ये था कि देश के भावी प्रधानमंत्री जी के कर कमलों से इस पुल के उद्धघाटन की बात चारों ओर फैली हुई थी,और प्रधानमंत्री जी की जगह मुख्यमंत्री जी ने पुल का उद्धघाटन किया था पर सवाल ये है कि क्या ये पुल भारत का सबसे बडा़ झूला पुल है क्योंकि जिस हिसाब से चर्चा का विषय बना हुआ है ये सवाल आज भी मेरे दिमाग में है.शरीर
पर्यटन से उत्तराखंड में काफी
रोजगार की संभावनाएं बनी है और लोगों को रोजगार भी मिले हैं, उम्मीद है इस पुल से भी युवाओं को रोजगार मिलेगा और पलायन कम होगा. पहाड़ का सूनापन खत्म होगा.(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)