- सुनीता भट्ट पैन्यूली
गांधी जी का जीवन-दर्शन आश्रय स्थल है उन जीवन मूल्यों और विचारों का जहां श्रम है,सादगी है सदाचार है, आत्मसम्मान है, सत्य है, अहिंसा है, दया है, उन्नयन है अस्तित्व का, प्राचीनता में नवीनता है, स्वप्न हैं, स्वाधीनता है, स्वराज है, रोजगार है. गांधी जी के विचार व दृष्टिकोण आधुनिक व उन्नतशील भारत की क्रांति की वह मुहिम है
जिसका बेहद अहम हिस्सा स्त्री है जो महात्मा गांधी के सुधार और परिवर्तन और विकास जैसे विचारों के सरोकार में महत्त्वपूर्ण केंद्र रही है.सामान्यतः महात्मा गांधी धार्मिक, सांस्कृतिक समाज
और स्वदेशी परंपरा के उदार समर्थक हैं किंतु जहां समाज में स्त्रियों की स्थिती और उसकी उन्नति का प्रश्न है वहां गांधी जी ने बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में स्त्रियों के संदर्भ में जो दृष्टव्य और आधुनिक विचार अपने भीतर विकसित किये वह आज की इस अत्याधुनिक इक्कीसवीं शताब्दी में उनकी क्रांतिकारी सोच को उजागर करती है.महात्मा गांधी
सामाजिक व स्वदेशी परंपराओं और रीतियों का निर्वहन करने के साथ ही साथ गांधी जी पुरूष और स्त्री की समता के भी प्रबल पक्षधर रहे हैं यह उनके लेख, पत्र, विचारों
और आचार-विचार में दिखाई देता है. गांधी जी स्त्री को अबला कहने के सख़्त विरोधी हैं उनके अनुसार स्त्री को अबला कहना उसकी आंतरिक शक्तियों और उसके अस्तित्व को कमतर व कमज़ोर आंकना है.मत
वास्तव में गांधी जी ने स्त्रियों को पुरुष की अपेक्षा अधिक सक्षम और शक्तिशाली माना है यही कारण है कि महात्मा गांधी ने स्त्रियों को स्वाधीनता की लड़ाई के लिए आंदोलन में सहभागिता
का पूंर्ण अवसर दिया और उन्होंने स्त्रियों को सशक्त करने के लिए शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक उत्थान के लिए कई प्रोग्राम चलाये.महात्मा गांधी
गांधी जी के जीवन में प्रेरणा का श्रोत बहुत सी स्त्रियां रही हैं पहली स्त्री उनके जीवन में उनकी मां पुतली बाई हैं जिन्होंने अशिक्षित होते हुए भी गांधी जी के भीतर अनुशासन, ज्ञान और उपवास लेने
की आदतों को विकसित किया यही कारण है कि स्वराज आन्दोलन में गांधी जी के कठोर से कठोर उपवास लेने की प्रवृत्ति उजागर होती है.दूसरी स्त्री गांधी जी के जीवन में उनकी
धर्म-पत्नी कस्तूरबा हैं जो पत्नी के साथ-साथ उनकी मित्र भी हैं क्योंकि बा से उनकी शादी बचपन में ही हो गयी थी.कस्तूरबा के अपने स्वतंत्र
विचार हैं कभी उन्होंने अपने विचारों की पराधीनता को स्वीकार नहीं किया साथ ही वह सहनशील, अपने विचारों पर अडिग रहने वाली स्वतंत्र व्यक्तित्व की महिला हैं जिनके जीवन-मूल्यों का प्रभाव गांधी जी के विचारों को भी प्रेरित करता है.
कस्तूरबा के अपने स्वतंत्र विचार हैं कभी
उन्होंने अपने विचारों की पराधीनता को स्वीकार नहीं किया साथ ही वह सहनशील, अपने विचारों पर अडिग रहने वाली स्वतंत्र व्यक्तित्व की महिला हैं जिनके जीवन-मूल्यों का प्रभाव गांधी जी के विचारों को भी प्रेरित करता है.महात्मा गांधी
गांधी जी वह विचार और प्रभावपूर्ण व्यक्तित्व हैं जिन्हें
जिज्ञासा है सदविचारों को अपनाने की और कहीं से भी किसी से भी सीखने की, यही कारण है कि अपने जीवन में कई महिलाओं से उन्होंने प्रेरणा ली है और महिलाओं को भी उन्होंने प्रेरित किया है.मां और पत्नी के अतिरिक्त गांधी जी के
जीवन में अन्य महिलाये भी रही हैं जिनकी कार्य प्रणाली और विचारों ने गांधी जी को अत्यंत प्रेरित किया.महात्मा गांधी
इनमें तीसरी सरोजिनी नायडू हैं
जिनकी आत्मनिर्भरता और निर्भीकता गांधी जी भारत के लिए अनुकरणीय मानते हैं. चौथी महिला श्रीमती एनी बेसेंट हैं जो भारतीय तो नहीं हैं किंतु भारतीय परंपराओं और संस्कृति से प्रभावित होकर यहीं रूक गयीं जिन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए होमरूल आंदोलन किया.महात्मा गांधी
कस्तूरबा गांधी,
सरोजनी नायडू, सुचेता कृपलानी, विजया लक्ष्मी पंडित, अरूणा आसफ अली, सुशीला नायर, ऊषा मेहता, राजकुमारी अमृत कौर, सरला देवी चौधरानी ये वे स्त्रियां हैं जिन्होंने गांधी जी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
इन्हीं महिलाओं में मेडलीन उर्फ़ मीरा
बहन का ज़िक्र किये बिना नहीं रहा जा सकता है मीरा बहन जिनका ब्रिटिश होने के बावज़ूद आश्रम में निष्ठा और अपनेपन के साथ रहना प्रेरणा की मिसाल है.महात्मा गांधी
कस्तूरबा गांधी, सरोजनी नायडू,
सुचेता कृपलानी, विजया लक्ष्मी पंडित, अरूणा आसफ अली, सुशीला नायर, ऊषा मेहता, राजकुमारी अमृत कौर, सरला देवी चौधरानी ये वे स्त्रियां हैं जिन्होंने गांधी जी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.गांधी जी के पत्र, लेख, आख़्यान को
पढ़कर यह महसूस होता है कि महिलाओं की शिक्षा, उनका आर्थिक व मानसिक विकास, उनके विचारों और संवेदनाओं के प्रति गांधी जी की अटूट आस्था रही है और उनका संपूर्ण जीवन स्वराज के लिए आंदोलन और स्त्री उसके विकास उसकी शिक्षा और समाज में उसकी स्थिती के चिंतन में ही गुजरा है.महात्मा गांधी
गांधी जी जिन्होंने स्वाधीनता के साथ-साथ स्त्रीयों की आत्मनिर्भरता,स्वतंत्र सोच,शिक्षित और पुरुषों की समकक्षता का स्वप्नन देखा था वह स्वप्न आज धराआयी होता नज़र आ रहा है…
कहां हैं गांधी जी के स्वतंत्र भारत की बेड़ी मुक़्त, उन्मुक्त सोच व अस्तित्व वाली स्त्रियां? क्यों आज भी स्त्रियां सुरक्षित नहीं हैं अपने घरों,सड़कों व चौराहों पर, खेत खलिहानों या अपने कार्यक्षेत्रों में?बापू के सपनों के भारत में स्त्रियां
स्वावलंबी और अपने अधिकारों के लिए सजग हैं ,निर्भीक हैं पराधीनता उन्हें स्वीकार्य नहीं है यह सब हुआ भी है बड़े पैमाने पर किंतु फिर भी आज की स्त्री बलात्कार,हिंसा,वर्गभेद,परिवार और समाज के दमन चक्र से जूझ रही हैं.क्या स्त्रियों का शिक्षित और सशक्त होना
भर ही पर्याप्त है स्वयं की स्थिति मज़बूत दर्शाने हेतु सामाजिक पायदान पर?यहां पुरूष पक्ष का शिक्षित और उच्च शिक्षित होना भी मापदंड नहीं है किसी पुरूष के सभ्य और संस्कारी होने का क्योंकि शिक्षित पुरूष भी भेड़िये की खाल में स्त्रीयों का चारित्रिक और मानसिक हनन व शीलभंग नज़र करते हुए नज़र आ रहे हैं हर क्षेत्र में.महात्मा गांधी
यहां विरोधाभास देखिये न..स्त्रीयों का
शिक्षित व सशक्त होना ज़रूरी है स्वयं के अस्तित्व व अस्मिता को बचाये रखने हेतु किंतु पुरूष का शिक्षित ,सशक्तऔर सभ्य होने के बावज़ूद भी स्त्रियों के साथ अमर्यादित व्यवहार करना भी विडंबना ही है समाज की, बनिस्बत जो अशिक्षित हैं.गांधी जी नहीं चाहते
थे कि स्त्रियां हमेशा चूल्हे चक्की और बच्चों में फंसी रहें उनका मत था कि स्त्रियां स्वावलंबी बनें उनके अपने विचार हों, अपनी एक स्वतंत्र सोच हो, किसी भी विमर्श में अपने विचारों को रखने के लिए स्वतंत्र हों इसीलिए गांधी जी ने उनकी शिक्षा और उनके विकास पर ज़ोर दिया.
गांधी जी के जीवन-दर्शन को पढ़ना सत्य,
अहिंसा,स्वराज,स्वदेशी व मानव जीवन मुल्यों को समझना है इन्हीं मानव मुल्यों के अवांतर गांधी जी का स्त्रियों के प्रति अटूट सम्मान और आस्था को भी समझना है.गांधी जी के भीतर एक मुलायम संवेदनशील मन है जो स्त्रियों के मन और उनकी उपस्थिती को भली भांति पढ़ लेता है. गांधी जी स्त्रियों के प्रेरणास्रोत भी हैं और प्रेरणादायक भी हैं.महात्मा गांधी
गांधी जी नहीं चाहते थे कि स्त्रियां हमेशा चूल्हे चक्की और बच्चों में फंसी रहें उनका मत था कि स्त्रियां स्वावलंबी बनें उनके अपने विचार हों, अपनी एक स्वतंत्र सोच हो,
किसी भी विमर्श में अपने विचारों को रखने के लिए स्वतंत्र हों इसीलिए गांधी जी ने उनकी शिक्षा और उनके विकास पर ज़ोर दिया. गांधी जी चाहते थे स्त्रियां चूल्हे-चक्की,घर परिवार से एक कदम आगे बढ़कर अपनी सोच और अपने स्थिति का आंकलन कर उन्नयन करें यही कारण था कि स्त्रियों को घर-घर में चरखा चलाने और सूत कातने की सलाह गांधी जी ने हर स्त्री को दी जिससे उनका स्वयं का ही नहीं समाज और देश का भी आर्थिक विकास हो.महात्मा गांधी
विधवा स्त्री और बाल विवाह को
भी गांधी जी ने समाज में व्याप्त विसंगति और कुरूती मानकर इस प्रथा का मुखर होकर विरोध किया. उनके अनुसार पुरुष अपनी स्त्री के मर जाने पर विवाह कर सकता है स्त्री क्यो नहीं? वैध्व्य से उबरकर स्वच्छंद जीवन जीना स्त्री का भी परम अधिकार होना चाहिए.महात्मा गांधी के जीवन के सरोकारों में हमेशा स्त्रियों के अधिकारों के पक्ष में लड़ना भी रहा महात्मा गांधी चाहते थे कि स्त्री-पुरुष के मध्य सहजता का संबंध हो जहां दोनों के अधिकार समान हों,
जहां न कोई तुच्छ हो न कोई श्रेष्ठ हो इसीलिए महात्मा गांधी घरों में अविभावकों से अपने लड़के -लड़की में समानता का व्यवहार रखने की सीख देते थे. घरों में लड़कों को भी काम करने की आदत सिखाने पर जोर देते थे ताकि यह व्यवहार आगे चलकर स्त्री-पुरुष के मध्य खाई पाटने का काम करें.गांधी जी को स्त्रियों का पर्दे में रहना
और पुरूषों का उनके विचारों उनकी मन:स्थिती और उनकी परेशानियों से विरत होना गांधी जी को दुखी करता था अतः स्त्रियों की परेशानियों को जानने के लिए गांधी जी कस्तुरबा को गांव की बस्तियों और झोपड़ियों के भीतर उनकी सही स्थिती के आंकलन के लिए भेजा करते थे.
गांधी जी को स्त्रियों का पर्दे में रहना
और पुरूषों का उनके विचारों उनकी मन:स्थिती और उनकी परेशानियों से विरत होना गांधी जी को दुखी करता था अतः:स्त्रियों की परेशानियों को जानने के लिए गांधी जी कस्तुरबा को गांव की बस्तियों और झोपड़ियों के भीतर उनकी सही स्थिती के आंकलन के लिए भेजा करते थे.महात्मा गांधी
गांधी जी का अपने समय के समाज
में स्त्रियों की कमज़ोर व विद्रूप दशा को महसूस कर स्त्रियों के सशक्तिकरण का पुरज़ोर समर्थन करना असल में पुरुष और स्त्री वर्ग के मध्य भिन्नता उत्पन्न करना नहीं अपितु स्त्रियों की पुरूष समाज में बदहाल स्थिती और उसकी असमानता को लेकर गांधी जी का विरोध असल में एक यात्रा है मनुषत्व व इंसानियत की सही परिभाषा निर्धारित करने की.महात्मा गांधी
किसी भी देश के विकास का आंकलन
इस बात पर किया जा सकता है कि वहां कि स्त्रियों की मनोदशा और स्वास्थ्य कैसा है? और किसी देश के समाज का स्तर इस बात पर निर्भर करता है कि स्त्रियों की दशा का परिवार में उस स्त्री की स्थिती कैसी है? किंतु भारत जैसे देश में स्त्रियां न अपने खोल में सुरक्षित हैं न अपने खोल से बाहर आकर.आज भारत के अधिकांश भू-भाग की स्त्रियां स्वावलंबी हैं, शिक्षित भी हैं कुछ क्षेत्रों को अपवाद स्वरूप छोड़कर किंतु फिर भी मुस्कराहट नहीं है उनके चेहरों पर एक अजीब ख़ौफ और भय की परत हमेशा चढ़ी रहती है उनके चेहरों पर, अपने समकक्ष पुरूषों के आसपास रहने से भी क्यों स्वतंत्र भारत की स्त्रियों में ख़ौफ़ और डर की मानसिकता उपज रही है आज के पुरूष के प्रति, जहां शैक्षिक रूप से सशक्त व स्वावलंबी होकर भी पुरूष की उपस्थिती डरा रही है उनके अस्तित्व को.
स्त्री की बदहाल अवस्था में बदलाव और उसके विकास के लिए गांधी जी का प्रयास उतना ही है जितना स्वराज के लिए उनका अनथक आंदोलन. गांधी अस्पृश्यता और पाशविकता के ख़िलाफ़ थे जिसके उन्मूलन की नींव उन्होंने अपने कालखंड में पूर्ववत ही रख दी थी.
महात्मा गांधी
यह तो ज़िक्र भर है पढ़े लिखे व सभ्य समाज के परिदृश्य का, लेकिन जहां जिंदगी ठहरी हुई है, अज्ञानता है, उन्नति के रास्ते बंद हैं चारों तरफ़ से. उस समाज में स्त्रियों के जीने की क़वायद
पुरूषों की छत्रछाया में और वह कितनी सुरक्षित हैं उनके साये में? यह अत्यंत चिंताजनक है. आये दिन बलात्कार और उत्पीड़न की घटनायें शरीर में कंपकंपी और सिहरन छोड़ जाती हैं.स्त्री की बदहाल अवस्था में बदलाव और उसके विकास के लिए गांधी जी का प्रयास उतना ही है जितना स्वराज के लिए उनका अनथक आंदोलन. गांधी अस्पृश्यता और पाशविकता के ख़िलाफ़ थे जिसके उन्मूलन की नींव उन्होंने अपने कालखंड में पूर्ववत ही रख दी थी.
महात्मा गांधी
नकारा नहीं जा सकता है कि आज विकास हुआ है स्त्रियों का, स्वावलंबी हैं, सशक्त हैं, शिक्षित हैं..तो फिर आज भी वर्ग भेद, बलात्कार अस्पृश्यता और पाशविकता क्यों? क्या सही मायने में आजादी के बाद भी कद बड़ा हुआ है गांधी जी के स्वतंत्र भारत की स्त्रियों का? यह शायद हमें अपने-अपने स्तर पर जानने की ज़रूरत है.
(लेखिका साहित्यकार हैं एवं विभिन्न पत्र—पत्रिकाओं में अनेक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं.)