- ध्यान सिंह रावत ‘ध्यानी’
समाज में गायन की अनको विधाओं का
चित्रण देखने व सुनने को मिल जाता है. छौपती, छूड़े, पवाड़े, बाजूबन्द, लामण, तांदी गीत, आदि मनोरंजन तो हैं ही साथ ही जीवन यथार्थ से जुड़ी सुख -दुःख, प्रेम प्रसंगों व अनको घटनाओं पर भी आधारित हैं. इन्हीं विधाओं में गायन की एक विधा है बाजूबन्द.पहाड़
बाजूबन्द एक प्रकार के संवाद गीत हैं.
जो प्रायः स्त्री पुरुषों द्वारा वनों में घास- पत्ती, लकड़ी- चारा लाते हुए या भेड़- बकरी, गाय- भैंस चराते और खेतों में काम करते लम्बी सुरीली आवाज में गाये जाते हैं. ये प्रेम व मनोरंजन के लिए भी हो सकते हैं.पहाड़
‘‘बाजूबन्द दो व्यक्तियों के
बीच का गीतात्मक वाक्य व्यवहार है जो नितान्त वैयक्तिक होता है वह सामुदायिक मनोरंजन का आधार न हो कर एक प्रकार का आत्म निवेदन है जो वनों के एकान्त में दूसरे के कानों में भले ही पड़ जाये पर वह किसी एक को संबोधित होता है” -डॉ. गोविन्द चातक
पहाड़
बाजूबन्द गीतों में एक पक्ष दूसरे
पक्ष के प्रश्नों का प्रत्युत्तर गायन शैली में देता हैं जिसे दुवा देना कहते हैं. डॉ. गोविन्द चातक लिखते हैं कि ‘‘बाजूबन्द दो व्यक्तियों के बीच का गीतात्मक वाक्य व्यवहार है जो नितान्त वैयक्तिक होता है वह सामुदायिक मनोरंजन का आधार न हो कर एक प्रकार का आत्म निवेदन है जो वनों के एकान्त में दूसरे के कानों में भले ही पड़ जाये पर वह किसी एक को संबोधित होता है”.पहाड़
इन गीतों में ससुराल में लड़की का दिल न लगना, प्रेमिका का किसी के प्रति आत्मीयता जैसे भाव भी सुनने को मिलते हैं. इनमें दोनों पक्ष दुवों के माध्यम से अपनी बात कहते हैं. दुवों में अनमेल विवाहों की पीड़ा, ससुराल वालों की प्रताड़ना, पति का घर से बाहर रहने की बिरह वेदना, प्रेमी- प्रेमिका द्वारा रूप सौन्दर्य का बखान बाजूबन्द गीतों का मुख्य विषय होता है.
पहाड़
बाजूबन्द गीतों में प्रथम पंक्ति
केवल तुक मिलाने के लिए ही प्रयुक्त होती है तथा दूसरी पंक्तियों में बाजूबन्द के दुवा का समग्र चित्र अर्थात मूल भाव निहित होता है. रवांई-जौनपुर क्षेत्र में गाये जाने वाले कुछ बाजूबन्द गीत इस तरह से हैं-तमाखु की थैली,
ज्वरू ना मुंडारू कुरेदन खैली
पहाड़
(नायिका कहती है- ना मुझे बुखार है
और न ही सिर दर्द. दिल की पीड़ा से व्यथित हूं.)रोटी की पापड़ी,
भाई-भौजा नी होन्दी कैकी मां होन्दी आपड़ी..
(दिल की पीड़ा
को उजागर करती हुई कहती है-भाई और ‘भाभी किसी के नहीं होते सिर्फ मां ही अपनी होती है जो बेटी के दर्द को जानती और समझती है.)पहाड़
थकुल्या कु कांसु,
बाँज बंण रोंली कु फुंछलु आँसु..
(मैं इस विरान वन में
रो रही हूं पर मेरे आंसू पोंछने वाला कोई नहीं है. अर्थात न भाई और ना ही भाभी.)पहाड़
लिखी ति कलम,
विमातान दिणी बेटी कु जलम.
(ईश्वर ने बेटी
का जन्म दिया है.)सुनारकु गाँठू,
बेटी कु जलम पराई घर कू बाँटू..
(ईश्वर ने बेटी को जन्म दिया जो सिर्फ पराये घर
का हिस्सा मान लिया जाता है.)पहाड़
सुनारकु गाँठु,
बेटा लाटू होलू कालू खालू आपड़ घर कू बाँटू..
(बेटा लाटा हो या काला वह अपने ही
घर रहता है और अपने भाग्य या पितृ सम्पत्ति को खाकर भी जीवन यापन कर सकता है।पहाड़
बाघ कु नाँदणु,
ज्यूं जागु बैठली गैलेणी सी जागा बाँदणी..जिन-जिन जगहों मेरी
थचलकी थाच
सच की गैल्या होलू पच्छांणलू बाच..(मेरी अपनी सहेलियां होंगी
तो मेरी आवाज ही पहचान जाएंगे.)लड्डू गुल गूल
मैन सुपिन मा देखी तेरी बुलबुल..(प्रेमिका अपने प्रेमी को
सम्बोधित कर कहती हैं कि आज मैंने स्वप्न में तेरे बालों को देखा है.)थाली गोटी हींग,
एक पाँव आगू रखी ज्यू पछिन्डू रिंग..(मैं अपनी ससुराल नहीं जा पा
रही हूं जैसी ही एक पैर आगे सरकाती हूँ तो मेरा दिल पीछे मुड़ जाता है. )पहाड़
गीतों में ससुराल में लड़की का दिल न लगना, प्रेमिका का किसी के प्रति आत्मीयता जैसे भाव भी सुनने को मिलते हैं. इनमें दोनों पक्ष दुवों के माध्यम से अपनी बात कहते हैं. दुवों में अनमेल विवाहों की पीड़ा, ससुराल वालों की प्रताड़ना, पति का घर से बाहर रहने की बिरह वेदना, प्रेमी- प्रेमिका द्वारा रूप सौन्दर्य का बखान बाजूबन्द गीतों का मुख्य विषय होता है.
पहाड़
सुपारी दखीण
हंसणी की दांतुड़ी मंजाई रखण..(हंसते हुए इन दांतों का
साफ- सुथरा रखना चाहिए.)पाणी भरी लौंकी
घंडोली कु राऊ चल मैंण घर दुधी रोंदू बाऊ..
पाणी कु हुमकु चल मैणा घर पड़ी गु रूमकु..
पंणी भरी
दूध भरी छनी आपु कर ठाट मुंई बिड़ कन्नी.
(अपने पति को सम्बोधित पत्नी कहती है कि अपने आप तो तुम ठाट से रह रहे हो और मेरे पास ये आफतें हैं.)
पहाड़
पाठुड़ु दूधकू जरू ना
काटी तु घास सुहा की आद आन्दी जुकिड़ी कु नाश .
(प्रेमी कहता है कि तेरी याद
करके मेरे जिगर का नाश हो गया है.)पहाड़
काई चुड़ी कांच
दली ती मसुरू जैक् दिल धोख होलू देखलू ईश्वर.
पहाड़
(प्रेमी -प्रेमिका एक दूसरे को प्यार का
भरोसा देते हुए कहते हैं कि जिस किसी के दिल में धोखा उसे ईश्वर ही देख सकता है और वही इस पर विचार करेगा.)पहाड़
साग लाई कोई राम जी
न सीता जपी मुंई जपौनु तोई.(प्रेमिका कहती है कि जिस
प्रकार राम जी ने सीता को चाहा मैं भी तुम्हें उसी रूप में चाहती हूं.)पहाड़
मेरा प्यार इतना
सिन्दुर की डबी जोड़ी रली जवानी त मिली हौलू कभी.
भैंसी बटी दांऊ ब्याख्नीक् क् बाजु राम जी कु नऊ ले.
बाजूबन्द गीतों में स्त्री पुरुष के बीच सीधा प्रश्नोत्तर होता हैं.
काटी गाली घास, मिलान्दारू कु भलू खोन्दारू कू नाश.
सिया तू सुलार दुई दिन की ज्वानी जवानी कु उलार.
बान कु हरील रिंगदू रिटन्दु शरील त्वेमुंग शरील.
मारी तू सेटौलू तेरी याद आंन्दी कोई मुग मिटौलू.
सदरी बटन अबक जमान हंसणू कठिन.
(लेखक प्राध्यापक एवं साहित्यकार हैं)