- ललित फुलारा
एक बार मैं घासी के साथ रिक्शे पर बैठकर जा रहा था. हम दोनों एक मुद्दे को लपकते और दूसरे को छोड़ते हुए बातचीत में मग्न थे. तभी पता नहीं उसे क्या हुआ? नाक की तरफ आती हुई
अपनी भेंगी आंख से मेरी ओर देखते हुए बोला ‘गुरुजी कॉलेज भी खत्म होने वाला है.. जेब पाई-पाई को मोहताज है.. खर्च बढ़ता जा रहा है.. घर वालों की रेल बनी हुई है.. नौकरी की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं दिख रही. भविष्य का क्या होगा पता नहीं!’घासी
चेले के भविष्य की जरा-सी भी चिंता नहीं है आपको. जब देखों चर्चाओं का रस लेते रहते हो.’ उसके मुंह से यह बात सुनकर मुझे बेहद शर्मिंदगी हुई. रिक्शे में एक
और व्यक्ति बैठे थे. जब हम तीनों एक साथ उतरे उन्होंने घासी से कुछ कहना चाहा पर उसने उनको अनदेखा कर दिया. मेरे हाथ से बटुआ लिया.. तीस रुपये निकालकर रिक्शे वाले को थमाए और आगे बढ़ गया.
घासी
उसकी बात एकदम सही थी. मैं अपना समर्थन देना चाहा. उसके चेहरे की तरफ देखने के लिए जैसे ही मैंने गर्दन उठाई, उस पर न जाने कौन-सा भूत सवार हुआ.. पूरे आवेश में बोल पड़ा
‘भौसड़ी के’ गुरु बनकर चौबीस घंटे ज्ञान पेलते रहते हो. गा…में डाल लो ये किताबी बातें. चेले के भविष्य की जरा-सी भी चिंता नहीं है आपको. जब देखों चर्चाओं का रस लेते रहते हो.’ उसके मुंह से यह बात सुनकर मुझे बेहद शर्मिंदगी हुई. रिक्शे में एक और व्यक्ति बैठे थे. जब हम तीनों एक साथ उतरे उन्होंने घासी से कुछ कहना चाहा पर उसने उनको अनदेखा कर दिया. मेरे हाथ से बटुआ लिया.. तीस रुपये निकालकर रिक्शे वाले को थमाए और आगे बढ़ गया.घासी
अपना बटुवा वापस लेने के लिए मैं फट से उसकी तरफ लपका. हम दोनों ही पोरवाल की दुकान पर जा बैठे. चाय और बीड़ी में पंद्रह-बीस मिनट निकालने के बाद जब हम
कक्षा में पहुंचे, तो घासी सीधे कुर्सी पर बैठे शख्स के पैरों में जा गिरा. उसकी इस हरकत को देखकर सभी मुंह दबाकर हंसने लगे. टोंटी सबसे आखिरी बेंच पर से चिल्लाया ‘अरे घासी.. गुरुजी को कुर्सी से गिराने का इरादा है क्या?’घासी
घासी
तभी कोई दूसरा बोल उठा ‘सर
घासी
‘इनसाइक्लोपीडिया और जोर से
चिल्लाई मजाक की क्या बात है? मैं सब जानती हूं.. .ये घासी का रोज का बहाना है सर.. .इसकी गैस महीनों से भर रही है और हर दिन सुबह खत्म हो जाती है.’ कुछ देर पहले घासी ने गर्दन झुकाते ही कहा था ‘सरजी प्रणाम! थोड़ा लेट हो गए हैं… गैस भरवानी थी…’
‘इनसाइक्लोपीडिया और जोर से चिल्लाई मजाक की क्या बात है? मैं सब जानती हूं.. .ये घासी का रोज का बहाना है सर.. .इसकी गैस महीनों से भर रही है और हर दिन सुबह खत्म हो जाती है.’ कुछ देर
पहले घासी ने गर्दन झुकाते ही कहा था ‘सरजी प्रणाम! थोड़ा लेट हो गए हैं… गैस भरवानी थी…….’ यह बहाना इतना पुराना और घिसा पिटा हो गया था कि हर टीचर जानता था जो देर से आ रहा है उसकी गैस ही खत्म हुई होगी. कुर्सी पर बैठा शख्स सकपका गया. पहले घासी और फिर मेरी तरफ हिकारत भरी नजरों से देखा. कुछ देर शांत रहने के बाद दोनों को कक्षा से बाहर भेज दिया. घासी मेरे कान में धीमे से बोला. ‘भौसड़ी के.. ये तो सच्ची वाला गुरु निकला. रोज पढ़ाने आएगा क्या’घासी
दरअसल, घासी हमको किसी भी वक्त चौंका सकता था. एक बार आधी रात को वह अचानक उठ बैठा. बीड़ी जलाई और बड़बड़ाने लगा. उसकी आवाज सुन पंडित जाग उठा. मेरी भी
नींद खुल गई. ‘ससुरे क्या हुआ जो इतनी रात को बीड़ी फूंक रहा है. ऐसी क्या आग लगी है!’ पंडित ने गालों की तरफ बढ़ते हुई मच्छर को दोनों हाथ से मसलते हुए कहा. घासी उठा. कमरे के एक कोने में रखे हुए मटके से दो-तीन गिलास पानी निकाल घटक गया. उसके बाद तसल्ली से बोला.घासी
पंडित चद्दर के भीतर से धीमी आवाज में हंसा और जवाब दिया ‘अगले हफ्ते कमरे पर लिट्टी-चौखा खाने आ रहा है.. अपना रवीश भाई.’ घासी ने कुढ़ते हुए कहा ‘तू
साले पढ़ते-पढ़ते ही बड़का पत्रकार हो गया है. मैंने कई बार ‘हाई’ लिखा पर ससुरा कोई जवाब नहीं दिया. पूरे बिहार का ही अपमान कर दिया.’ पंडित ने हंसी दबाते हुए करवट बदल ली.
घासी
‘दोपहर में मन में बड़ी मुश्किल से रवीश कुमार बनने का ख्याल आया था.. .ये आधी रात को सपने में भौ… का.. चौरसिया कहां से आ गया? अकेले ने मंत्र फूंका है क्या कोई?’
उसने बीड़ी की ठूंठ दरवाजे की तरफ फेंकी और सोने से पहले आखिरी बार पूछा.. ‘ये पंडितवा सच बता फेसबुक पर तुझे रवीश कुमार का रिप्लाई आया था क्या?’घासी
पंडित चद्दर के भीतर से धीमी आवाज में हंसा और जवाब दिया ‘अगले हफ्ते कमरे पर लिट्टी-चौखा खाने आ रहा है.. अपना रवीश भाई.’ घासी ने कुढ़ते हुए कहा ‘तू साले पढ़ते-पढ़ते ही
बड़का पत्रकार हो गया है. मैंने कई बार ‘हाई’ लिखा पर ससुरा कोई जवाब नहीं दिया. पूरे बिहार का ही अपमान कर दिया.’ पंडित ने हंसी दबाते हुए करवट बदल ली.घासी
घासी और मेरे संबंधों को एक दशक होने को आया है. वो मेरे दिमाग की उपज नहीं- बल्कि मेरे मगज में बैताल की तरह बैठा हुआ है… उसे बाहर निकालने के लिए मैंने बस कल्पनाओं की
चाबी घुमाई है. उसे पता नहीं कहां से खबर लगी कि मैं उसके ऊपर किताब ही लिख रहा हूं, तभी आनन-फानन में गुस्से से उबलता हुआ मेरे घर आ पहुंचा था. यह मार्च 2020 की बात है, कुछ दिनों बाद होली आने वाली थी और चीन में उस वक्त एक ऐसा वायरस घूम रहा था जिस पर हम लोग बात कर रहे थे, पर डर कतई नहीं रहे थे. जब वह नाराज होकर सीढ़ियों से उतरा था, तो मैं भी उसके पीछे भागा था.गुरुजी
‘देखो गुरुजी… तुम घर के भीतर की बात को चौराहे पर ले जा रहे हो. अब घर वाले नाराज होंगे ही. ऐसी प्रसिद्धि जाए भाड़ में. कहो तो कल से मैं भी आपको सोशल
मीडिया पर फेमस कर देता हूं. तुम्हारे बारे में सारे चीजें लिख देता हूं जो तुमको, मुझको और कुछ को ही पता हैं.’
तेवर
‘यार घासी तेवर दिखाने से क्या होगा? तुझे तो खुश होना चाहिए मैं तुझपर किताब लिखकर तुझे प्रसिद्ध कर रहा हूं. साले तुझे जानता कौन है ये बता?’ बाहर की खुली हवा में आते ही घासी पूरा खुल गया
और जोर से चिखते हुए बोला ‘देखो गुरुजी… तुम घर के भीतर की बात को चौराहे पर ले जा रहे हो. अब घर वाले नाराज होंगे ही. ऐसी प्रसिद्धि जाए भाड़ में. कहो तो कल से मैं भी आपको सोशल मीडिया पर फेमस कर देता हूं. तुम्हारे बारे में सारे चीजें लिख देता हूं जो तुमको, मुझको और कुछ को ही पता हैं.’घासी
घासी ने सोसायटी से बाहर निकलकर खोखे से
सिगरेट ली और थोड़ा नरमी बरतते हुए आगे कहा. ‘मैं तो तुमको समझदार बुद्धिजीवी समझता था. तुम तो महामूर्ख निकले. बस एक गुजारिश है…भौसड़ी के’ मेरा असली नाम आया तो चेला दुश्मन हो जाए. अब तक घासी की कैब आ गई और वह बिना मेरी तरफ देखे चल दिया.(ललित फुलारा के आने वाले उपन्यास से)