‘लोखंडी’ मतलब पर्यटकों का ‘स्वर्ग’

Lokhandi Chakrata

भारत चौहान

चकराता से 20 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से लगभग 2500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित लोखंडी दो पर्वतों के बीच की एक घाटी है. जो दो जंगलों को आपस में जोड़ती है- बुधेर जंगल और देवबन जंगल. यह स्थान प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत सुंदर है. यहां से हिमाचल के सिरमौर क्षेत्र के दर्शन आसानी से होते हैं.

ऐसी मान्यता है कि यहां  पारियों (आछरियों) का वास होता है. जिनको ‘अगाशी देवी’ अर्थात् आकाश की देवी और ‘वन देवी’ के नाम से भी जाना जाता है. स्थानीय बुजुर्गों का मानना है कि जहां देवियां वास करती है वह स्थान अत्यंत पवित्र रहना चाहिए, वहां किसी प्रकार की गंदगी या ऊंची आवाज में चिल्लाना खतरे से खाली नहीं होता है. अर्थात देवी उस आदमी पर प्रकट हो जाती है और वह तरह-तरह के कृत्य और नृत्य करने लग जाता है. (इसलिए पर्यटकों से विशेष आग्रह रहता हैं कि इस प्रकार के पवित्र स्थान पर किसी प्रकार का शोरगुल अथवा गंदगी ना फैलाएं.)

लोखंडी का अर्थ लोहे के खंड से है. ऐसी मान्यता है कि यहां की धातु में लोहे की मात्रा अत्यधिक मिलती थी और प्रारंभ में लोग यहां लोहे की धातु ढूंढने आते थे. इसीलिए इसका नाम लोखंडी पड़ा, अर्थात लोहे के कण या खंड की अधिकता के कारण.

स्थानीय बोली भाषा में ‘अगाशि देवी’ को ‘कंडा रानी’ भी कहते है. इसी के कारण खत (पट्टी) धुनों, खत कंडमान नाम भी जुड़े हुए हैं, जो चार खतो का एक समूह है, जिसे कंडाई भी कहा जाता है. लोखंडी पर्यटकों के लिए पहली पसंद है.‌ सघन बाज- बुरांस और देवधार के जंगल यहां से दृष्टिपात होते हैं. चकराता‌- त्यूणी मोटर मार्ग सबसे अधिक ऊंचाई पर इसी स्थान पर पहुंचता है. इसके बाद त्यूणी के लिए ढलान शुरू हो जाती है.

यह स्थान आध्यात्मिक, भौगोलिक और पर्यटक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. यहां से 2 किलोमीटर की दूरी पर बुंधेर वन विभाग का विश्रामगृह है जो ब्रिटिश सरकार के फॉरेस्ट के अधिकारियों ने 1868 में बनाया था. यहीं से 4 किलोमीटर की दूरी देवबंद पैदल ट्रैक है जिसे सरस्वती ट्रैक कहते हैं. अर्थात बहुत ऊंचाई पर अनेक जल स्रोत निकलते हैं इसलिए इसका नाम सरसत भी कहा गया है. 5 किलोमीटर की दूरी पर अत्यंत सुंदर मोहिला टॉप है जिस स्थान पर अनेक फिल्मों की शूटिंग भी हुई है.

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