यदि आप घूमने-फिरने के शौकीन हैं और उत्तराखंड की सैर कर रहे हैं तो आप यहां तीथार्टन के साथ-साथ एडवेंचर का मचा भी ले सकते हैं, यहां बहुत से ऐसे दर्शनीय स्थल हैं जहां पहुंच कर आपको अलौकिक अनुभूति होगी. यहां बाबा केदार के दर्शनों के अलावा आप आस-पास के तीर्थस्थानों का भ्रमण कर अपनी आध्यात्मिक यात्रा और खूबसूरत बना सकते हैं. आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ तीर्थ स्थलों के बारे में…
मध्यमहेश्वर महादेव मंदिर
चौखंबा की गोद में समुद्रतल से 9700 फीट की ऊंचाई पर यह मंदिर अवस्थित है, जो ऊखीमठ से 30 किमी की दूरी पर अवस्थित है. यहां अन्य मंदिरों में बूढ़ा मध्यमहेश्वर क्षेत्रपाल मंदिर, हिंवाली देवी मंदिर हैं. यहां की पहाड़ियों में अनेक गुफाएं हैं. पंचकेदार के नाम से विख्यात शिव के पांच पावन धामों में से मध्यमहेश्वर दूसरा धाम है. यहां भगवान शिव की नाभि की पूजा की जाती है.
तुंगनाथ महादेव मंदिर
पंचकेदारों में तृतीय केदार तुंगनाथ मंदिर समुद्रतल से 12070 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. ऊखीमठ सड़क से 30 किमी की दूरी पर चोपता पर्यटक स्थल से 3.50 किमी की पैदल मार्ग से यहां पहुंचा जा सकता है. यहां के अन्य मंदिरों में भूतनी देवी एवं भैरोनाथ मंदिर हैं. मंदिर से कुछ ही दूरी पर चंद्रशिला मंदिर है. मंदिर के निकट ही रावण शिला भी है. यह मान्यता है कि लंकापति रावण ने इस शिला पर तपस्या की थी. इस स्थान से नंदा देवी, पंचाशूली, गंधमादन, द्रोणांचल, केदारनाथ, बद्रीनाथ और गंगोत्री की हिमाच्छादित हिम श्रृंखलाएं अनुपम छटा बिखेरती हुई श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध करती है. यहां भगवान शिव की भुजाओं की पूजा की जाती है.
ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ
रुद्रप्रयाग से 42 किमी दूर ओंकारेश्वर शिव का प्रसिद्ध मंदिर है. पौराणिक मान्यता के अनुसार मंदिर का निर्माण आदि गुरू शंकराचार्य के द्वारा कराया गया. यह मंदिर ऊषामठ परिसर में स्थित है. ऐसा कहा जाता है कि बाणासुर की पुत्री ऊषा का विवाह इसी स्थान पर हुआ था. मंदिर के नीचे विवाह स्थल की बेदी अभी भी है. शीतकाल में भगवान केदारनाथ तथा द्वितीय केदारनाथ मध्यमहेश्वर यहीं विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देते हैं.
गुप्तकाशी विश्वनाथ मंदिर
विश्वनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग गुप्तकाशी में स्थित है. प्रचलित मान्यता के अनुसार (गुप्त वाराणसी) तीन काशियों-वाराणसी (काशी) उत्तरकाशी और गुप्तकाशी में से एक है. मंदिर नागर शैली में निर्मित है. किंवदती के अनुसार भगवान शिव ने यहां पर गुप्तवास किया था. मंदिर के पास ही अर्द्धनारेश्वर मंदिर, चंद्रशेखर महोदव मंदिर और पांडवों की मूर्तियां दर्शनीय हैं.
रुद्रनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग
अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के संगम स्थल पर प्राचीन रुद्रनाथ मंदिर स्थित है. पास ही देवी पार्वती की प्राचीन मूर्ति है. मंदिर परिसर में शिव और लक्ष्मी नारायण मंदिर भी हैं. स्कंद पुराण केदारखंड के अनुसार इस स्थान पर एक पाद होकर महर्षि नारद की तपस्या से प्रसन्न होकर रुद्र ने उन्हें दर्शन देकर संगीत के रागों का ज्ञान दिया था.
कोटेश्वर महादेव मंदिर
रुद्रप्रयाग मुख्यालय से 2 किमी उत्तर-पूर्व की ओर अलकनंदा तट पर कोटेश्वर नामक अति प्राचीन मंदिर अवस्थित है. मंदिर के समीप प्राचीन गुफा है जिसके भीतर स्फटिक के कई शिवलिंग विराजमान हैं. स्थानीय मान्यता के अनुसार विद्या प्राप्ति, ऐश्वर्य प्राप्ति, सन्तति की कामना लेकर शिवरात्रि और श्रावण मास में इस मंदिर में शिवार्चन सकल मनोरथ पूर्ण करने वाला है. कोटि शिवलिंग की उत्पत्ति के कारण इस स्थान का नाम कोटेश्वर पड़ा.
कार्तिक स्वामी मंदिर
रुद्रप्रयाग-दशज्यूला-कांडई मोटर मार्ग पर कनकचैरी से 3 किमी ऊंचाई पहाड़ी पर शिवपुत्र कार्तिकेय का भव्य मंदिर है. यहां पर कार्तिकेश्वर महादेव मंदिर, भैरोंनाथ, हनुमान तथा ऐड़ी आछरियों के मंदिर हैं. यहां से चैखंभा पर्वत श्रृंखला केदारनाथ, सुमेरू पर्वत श्रृंखला, नंदा देवी, गंगोत्री पर्वत श्रृंखला का दृश्य दर्शनीय है.
त्रियुगीनारायण मंदिर
सोनप्रयाग-त्रियुगीनारायण मोटर मार्ग पर त्रियुगीनारायण का मंदिर है. यह शैव और वैष्णव दोनों सम्प्रदायों की आस्था का केंद्र है. स्थानीय मान्यता के अनुसार सतयुग में यहां शिव-पार्वती का विवाह हुआ था, तब से प्रज्वलित अग्नि (धूनी) अभी तक निरंतर जल रही है.
जाख देवता मंदिर
रुद्रप्रयाग-गुप्तकाशी मोटर मार्ग पर नारायणकोटि से लगभग 3 किमी की दूरी पर जाख देवता का मंदिर स्थित है. जाख यानि यक्ष देवता के मंदिर में वैशाख माह में मेला लगता है. जिसमें देवता का अवतारी (पश्वा) व्यक्ति दहकते अंगारों के ऊपर चलता है.
अगस्त्यमुनि मंदिर
रुद्रप्रयाग- गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग पर मंदाकिनी नदी के तट पर अगस्त्यमुनि में महर्षि अगस्त्य का प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर में महर्षि की प्रतिमा पाये के नीचे स्थित है. मंदिर के पास ही अगस्त्य धोंधा जी की प्रतिमा भी है.
वसुकेदार
वसुकेदार अगस्त्यमुनि-डडोली-गुप्तकाशी मोटर मार्ग पर बसा है. कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान शंकर ने एक रात्रि निवास किया था, इसीलिए इस स्थान को वसुकेदार कहते हैं. यहां पर शंकर भगवान का विशाल मंदिर है तथा केदारनाथ के दर्शनों का फल भक्तों को मिलता है. यह अत्यंत रमणीक स्थान है.
काली शिला मंदिर
रुद्रप्रयाग-कालीमठ मोटर मार्ग पर काली शिला मंदिर कालीमठ से लगभग 06 किमी पूरब की ओर खड़ी चढ़ाई चढ़कर व्यूंखी गांव के ऊपर है. प्रचलित मान्यता के अनुसार इस शिला पर 64 यंत्र हैं जिनमें शक्ति पुंज पैदा होते हैं. स्थानीय मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी से वरदान पाकर गर्वित असुर रक्त बीज के विनाश के लिए देवी दुर्गा इसी शिला पर महाकाली के रूप में अवतरित हुई थी तथा महाकाली के रूप में उन्होंने अपना विशाल आकृति का मुंह फैलाकर रक्त बीज के रक्त को चाटना शुरू किया ताकि अन्य रक्त बीज पैदा न हो, इस तरह रक्तबीज का अंत हुआ था.
कालीमठ सिद्धपीठ
उत्तराखंड के प्रमुख सिद्धपीठ में कालीमठ प्रसिद्ध है. रुद्रप्रयाग-गुप्तकाशी मोटर मार्ग पर गुप्तकाशी से 10 किमी की दूरी पर नागर शैली में निर्मितहै. यहां पर महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती के मंदिर के अलावा हर गौरी मंदिर, भैरव मंदिर, मातंग शिला प्रमुख है. कालीमठ मंदिर से डेढ किमी दूरी पर महाकवि कालीदास का जन्म स्थान कविल्ठा भी स्थित है.
हरियाली देवी
नगरासू-डांडाखाल मोटर मार्ग पर जसोली गांव में हरियाली देवी मंदिर प्रसिद्ध सिद्धपीठों में एक है. जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से लगभग 39 किमी0 पर अवस्थित इस सिद्धपीठ के विषय में प्राचीन मान्यता है कि इस मंदिर में श्रद्धापूर्वक मां की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
मैठाणा देवी
तिलवाड़ा-सौंराखाल मोटर मार्ग पर भरदार पट्टी में घेंघड़खाल से 5 किमी दूरी पर मैठाणा देवी का प्रसिद्ध मंदिर है. दशहरे के अवसर पर यहां पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.