- अनीता मैठाणी
रोज सुबह हड़बड़ाहट में कोचिंग क्लास के लिए तैयार होती. पाण्ड्स ड्रीमफ्लॉवर पाउडर को हाथों में लेकर चेहरे पर ऐसे मलती कि बस जैसे उसके लगाते ही चेहरा दमकने लगेगा. पर सच में ऐसा होता था, चेहरा दमकने के साथ-साथ चमकने भी लगता था. अपनी लाल रंग की साइकिल निकालती और 5 किमी. दूर कोचिंग सेन्टर पहुँच जाती.
रास्ते में आते-जाते हुए अक्सर एक साइकिल वाला लड़का दिखता जो लगभग रोज दिखता था. हालांकि मैंने कभी उसके चेहरे की तरफ नहीं देखा पर मुझे पता था कि वही एक लड़का है जो रोज दिखता है. एक दिन उसकी ब्राइट यैलो शर्ट कोचिंग सेन्टर में भी दिखी तो पता चला वो भी वहीं जाता था. वो शायद एम.ए. कर रहा था क्योंकि मैंने उसे एम.ए. वालों के रूम में जाते देखा था. किन्हीं अपिहार्य कारणों की वजह से मुझे बारहवीं की व्यक्तिगत परीक्षा देनी पड़ रही थी.
अगले दिन जब मैं स्टैण्ड पर पहुँची मैं क्या देखती हूँ, आज बिना साइकिल के वो स्टैण्ड पर खड़ा ऑटो का वेट कर रहा है. और मुझे देखकर ऐसे मुस्करा रहा था जैसे मैं उसकी परिचित हूँ. पर मुझे भी बरबस हंसी आ गयी, और मुझे मुस्कराता देखकर उसका चेहरा खुशी से चमकने लगा.
एक दिन मैंने ट्यूशन जाने के लिए साइकिल निकाली और जैसे ही चलाई उसमें से खर्ड़न खर्ड़न की आवाज आने लगी. मैंने तेज चलाकर देखा तो वो और जोर-जोर से आवाज करने लगी. मैंने साइकिल घर की तरफ मोड़ दी. और तेज-तेज कदमों से चलते हुए, आटो स्टैण्ड गयी.
साइकिल थी तो लाल रंग की पर जेन्ट्स साइकिल थी. लाल मेरी पसंद थी और जेन्ट्स इसलिए ली थी कि डैडी भी चला सकें. तो ये लाल रंग की जेन्ट्स साइकिल डैडी और मेरी म्यूचुअल अंडरस्टैण्डिंग पर ली गयी थी. अगले दिन साइकिल नहीं बन पाई थी तो मैं फिर ऑटो में चली गयी. मैंने देखा वो लड़का विक्रम स्टैण्ड पर साइकिल लिए खड़ा था, मुझे देखकर वो झेंप गया और आगे बढ़ गया. उसके अगले दिन जब मैं स्टैण्ड पर पहुँची मैं क्या देखती हूँ, आज बिना साइकिल के वो स्टैण्ड पर खड़ा ऑटो का वेट कर रहा है. और मुझे देखकर ऐसे मुस्करा रहा था जैसे मैं उसकी परिचित हूँ. पर मुझे भी बरबस हंसी आ गयी, और मुझे मुस्कराता देखकर उसका चेहरा खुशी से चमकने लगा.
अब ऑटो में वो मेरे ठीक सामने की सीट पर बैठा था. मुझे पूरा आभास हो रहा था कि वो लगातार मेरी ओर देख रहा है. तभी मुझे लगा जैसे उसने कुछ कहा मैंने उसकी ओर देखा तो वो हौले से मुस्करा दिया. मुझे बड़ा बेशर्म लगा उसका इस तरह ताकना और फिर कुछ कहना और देखने पर वो ढीठ की तरह उसका मुस्करा देना.
ख़ैर, अगले दिन मेरी साइकिल बन चुकी थी सो मैं साइकिल से गयी. पर उस बेचारे को क्या पता था. वो अगले दिन भी ऑटो का वेट कर रहा था. मुझे साइकिल में आता देखकर उसके चेहरे पर कई तरह के भाव आ जा रहे थे. और मुझे मन ही मन हंसी. अब वो अक्सर दिखने लगा, अब मैं भी कभी-कभी उसकी ओर देखकर मुस्करा देती थी.
पहले की तरह तैयार तो मैं आज भी पॉण्ड्स टैलकम पाउडर लगा कर होती थी. पर जब से वो लड़का दिखने लगा था, मैं अपने बाल-वाल संवारने में कुछ ज्यादा टाइम लेने लगी थी. वो मेरी तरफ देखता और मेरे गाल मारे शर्म के लाल हो जाते. आज के समय की तरह ब्लश करना नहीं कहा जाता था उन दिनों गालों के लाल होने को. नज़रें मिलने पर वो हौले से गर्दन झुकाकर हैलो कहने की कोशिश करता और मैं नज़रें चुराकर निकल जाती. कोचिंग सेन्टर पहली मंजिल पर था, और ऊपर जाने के लिए जो सीढ़ी थी वो बहुत ऊँची-ऊँची थीं और बहुत संकरी थीं.
मैं आंसू पोंछते हुए क्लासरूम की तरफ बढ़ी और जाकर आगे की खाली सीट पर बैठ गयी. क्लासरूम भरा होने पर भी आगे की सीटें खाली रहती थी. आगे बैठे स्टूडेन्ट्स से सर प्रश्न पूछते थे, इसलिए सभी पीछे बैठना पसंद करते थे. तभी मैंने देखा वो दूसरे रूम में आगे की सीट पर बैठा था और इसी ओर देख रहा था.
मुझे एक दिन पहुँचने में देर हो गयी, मैं ज्यों ही ऊपर चढ़ने लगी मैंने देखा वो सीढ़ी पर रास्ता रोके खड़ा मुस्करा रहा है, मैं भीतर तक सिहर गयी. मेरे पास पहुँचने पर वो हटा नहीं उसने धीरे से हैलो कहा, मैंने उसे आँखों ही आँखों में रास्ता छोड़ने के लिए कहा पर उसने रास्ता नहीं छोड़ा. तभी मुझे लगा कि कोई ऊपर सीढियों से नीचे उतर रहा है, देखे जाने के डर से मेरी आँखों में आँसू आ गये, मुझे रोता देखकर वो घबरा गया और रास्ता छोड़कर साईड हो गया और उसने धीरे से साॅरी कहा. मैं आंसू पोंछते हुए क्लासरूम की तरफ बढ़ी और जाकर आगे की खाली सीट पर बैठ गयी. क्लासरूम भरा होने पर भी आगे की सीटें खाली रहती थी. आगे बैठे स्टूडेन्ट्स से सर प्रश्न पूछते थे, इसलिए सभी पीछे बैठना पसंद करते थे. तभी मैंने देखा वो दूसरे रूम में आगे की सीट पर बैठा था और इसी ओर देख रहा था. आसपास की लड़कियां कानाफूसी करने लगीं, देख वो लड़का कैसे इधर घूर रहा है, मुझे बड़ी झल्लाहट हो रही थी.
एक दिन मैं छुट्टी में अपनी कुछ फ्रेण्ड्स के साथ काॅलेज के गेट से बाहर आ रही थी. तभी मेरी एक फ्रेण्ड ने मेरा हाथ खींचते हुए कहा, सुन उस लड़के को देख. भीड़ होने की वजह से मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. तभी मैंने देखा- अरे! वो कोचिंग वाला लड़का. मैंने कहा- हाँ देखा, क्या बात है बता. तो, वो चहकते हुए बोली- कितना डैशिंग है ना!
उस दिन के बाद वो जब भी दिखा मैंने देखा वो अब कुछ झेंप जाता था. उसने फिर कभी बात करने की कोशिश नहीं की, मैंने भी राहत महसूस की. हालांकि कुछ दिन जब यूं ही चलता रहा तो; मैंने ये महसूस किया कि उसका मेरी ओर से बेपरवाह होना मुझे भी कहीं नाग़वार लगा. खै़र बात आयी-गयी हो गयी.
काॅलेज में उस साल मेरा ग्रेजुएशन का फाइनल ईयर था, एक दिन मैं छुट्टी में अपनी कुछ फ्रेण्ड्स के साथ काॅलेज के गेट से बाहर आ रही थी. तभी मेरी एक फ्रेण्ड ने मेरा हाथ खींचते हुए कहा, सुन उस लड़के को देख. भीड़ होने की वजह से मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. तभी मैंने देखा- अरे! वो कोचिंग वाला लड़का. मैंने कहा- हाँ देखा, क्या बात है बता. तो, वो चहकते हुए बोली- कितना डैशिंग है ना! ओ.एन.जी.सी. में जाॅब करता है, एलिजिबल बैचलर. मैंने हल्के से कहा- मैं जानती हूँ हमारी तरफ रहता है. इस पर वो बोली, ‘मुझे लग रहा था तू उसे जानती होगी. बता कैसे जानती है‘. मैंने उसे तीन साल पहले कोचिंग क्लासेज़ के दौरान हुई बातें सरसरे तौर पर चार लाईनों में बता दी. उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर एक गहरी सांस ली और बोली- ## हैलो मैडम, हीरा है वो लड़का हीरा##…… जिसे तुमने अपनी अक्लमंदी से गंवा दिया.
हैलो मैडम, हीरा है वो लड़का हीरा. जिसे तुमने अपनी अक्लमंदी से गंवा दिया. मैं अकेले में मुस्करा दी, हारे हुए जौहरी की तरह. और तब मुझे ध्यान आया कि ऑटो वाला कुछ कह रहा है. मैंने ऑटो से उतरते हुए उसको को पांच का सिक्का थमाया. और मजे की बात देखिये वही स्टॉप था जहाँ मैं अभी अभी उतरी थी, कुछ पल रुक कर उस लैंप पोस्ट की तरफ देखा मैंने, वो अब भी वहीं खड़ा मुस्कुरा रहा था, मैं आगे बढ़ गयी…
सामने घंटाघर आ चुका था, वहाँ से वे सब फ्रेंड्स बस अड्डे की तरफ जाते थे और मैं चकराता रोड की तरफ, मैं उन्हें बाय कहकर आगे बढ़ गयी. अब मेरी आँखों के सामने तीन साल पहले बीते उन दिनों की यादें दौड़ने लगी, किसी चलचित्र की तरह.
ऑटो वाला कुछ कह रहा था; पर मुझे जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था. मेरे कानों में मेरी दोस्त के शब्द गूंज रहे थे- हैलो मैडम, हीरा है वो लड़का हीरा. जिसे तुमने अपनी अक्लमंदी से गंवा दिया. मैं अकेले में मुस्करा दी, हारे हुए जौहरी की तरह. और तब मुझे ध्यान आया कि ऑटो वाला कुछ कह रहा है. मैंने ऑटो से उतरते हुए उसको को पांच का सिक्का थमाया. और मजे की बात देखिये वही स्टॉप था जहाँ मैं अभी अभी उतरी थी, कुछ पल रुक कर उस लैंप पोस्ट की तरफ देखा मैंने, वो अब भी वहीं खड़ा मुस्कुरा रहा था, मैं आगे बढ़ गयी…
(लेखिका कवि, साहित्यकार एवं जागर संस्था की सचिव हैं)
Beautifully written . cannot wait to read the next part.
You are an amazing poet and storyteller!
Many thanks Dear, there are stories that don’t have cliche ending, some are abrupt this is one of them.