अनीता मैठाणी
हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक रंग देने वाले कई पेड़ पौधे और झाड़ियाँ हैं. दूसरी तरफ पूरी दुनिया में नेचुरल कलर को लेकर – प्राकृतिक रंगों की बहुत मांग बढ़ गयी है. कुछ वर्षों तक हम उत्तरखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में – सेमल के फूल, सकीना (हिमालयन इंडिगो), रुइन के फल (सिन्दूर) काफल की छल, किल्मोड की जड़ो, बुरांस के फूलों आदि को प्राकृतिक रंग के लिए उपयोग करते थे. लेकिन 5-6 वर्ष पूर्व – पहाड़ के हश्तशिल्प प्राकृतिक रंगों पर काम कर रही – सामाजिक संस्था अवनी को नार्थ ईस्ट के एक पौधे – आसाम नील के बारे में पता चला.
अवनी संस्था की निदेशक श्रीमती रश्मि जी ने बताया कि, आसाम नील पौधे जिसको अंग्रेजी में – Strobilanthes Cusia कहते हैं, आसाम में सिर्फ नील कहते हैं , इस पौधे के प्राकृतिक रंग की पूरी दुनिया में बहुत मांग है, लेकिन ये पौधा अभी उत्तराखंड में सबसे पहले अवनी संस्था ही लाई – अवनी 7-8 साल से आसाम नील के पौधे पर कार्य कर रही है, उनको बड़ी मुश्किल से इस पौधे की 4 कटिंग मिली थी, वो भी बाय एयर और उसमे से सिर्फ दो कटिंग ही बच पायी फिर उसी – से अब हजारों पौधे बनाकर बागेश्वर और पिथोरागढ़ में बांटे गए जो आज 70-80 किसानों को आजीविका दे रहे हैं . उस वक्त दो पौधों के लिए उनको हजारों रुपये खर्च करने पड़े थे.
Strobilanthes cusia, also known as Assam indigo or Chinese rain bell, is a perennial flowering plant of the family Acanthaceae. Native to South Asia, China, and Indochina, it was historically cultivated on a large scale in India and China as a source of indigo dye, which is also known as Assam indigo. – Wikipedia.
आज से दो साल पहले आगाज संस्था के अध्यक्ष श्री जे पी मैठाणी के आग्रह पर आसाम नील के पौधों की 7-8 कटिंग – अवनी संस्था से चमोली जनपद में आगाज संस्था को दी और आगाज ने दो वर्षों में – पाली हाउस आदि तकनीकों से पीपलकोटी के अपने बायो टूरिज्म पार्क में अब इसके 300 पौधे बना लिए है.
जे पी मैठाणी बताते हैं कि, अवनी संस्था की तरह आगाज भी पहाड़ में प्राकृतिक रंग देने वाले पेड़ पौधों पर ही काम करना था, इस खोज में ही आसाम नील का पता चला, नार्थ ईस्ट में इसकी पहले से ही खेती की जाती है. इस क्रम को आगे बढाते हुए अवनी ने आगाज संस्था को पौधो का सहयोग दिया. आगाज के कार्यक्रम समन्वयक जयदीप किशोर ने बताया कि-दो साल पहले कुमाऊँ में काम कर रही संस्था – अवनी के श्री कैलाश उपाध्याय जी सहयोग से – आसाम नील – Strobilanthas cusia की 7- 8 कटिंग हमको मिली थी. उन्ही कटिंग से अब हमने दो साल में 300 के आस पास पौधे बना लिए है, पौध बनाने के लिए रूटिंग हार्मोन और वर्मिकुलाइट के मिश्रण का प्रयोग किया जाता है. आसाम नील ठन्डे और सीलन भरे क्षेत्रों में बढ़िया उगता है. इसकी पत्तियों से रंग निकला जाता है. आसाम नील के दो साल पुराने पौधे की पत्तियों से ही नीला रंग निकाला जा सकता है. नयी नयी पत्तियों से रंग नहीं निकाला जा सकता है .
इस बरसात में आगाज संस्था अब बायो टूरिज्म पार्क पीपलकोटी तैयार किये गए आसाम नील के इन पौधों को आस पास के किसानों को निशुल्क देंगे फिर उनसे इनकी पत्तियां खरीद कर उनसे नीले रंग का प्राकृतिक रंग बनाया जाएगा. उस रंग का उपयोग – डांस कंडाली और भांग के रेशे से बने वस्त्रों को रंगने में किया जाएगा.
इस प्रयोग को बड़े स्तर पर करने के लिए- जयदीप किशोर, भूपेंद्र, अंजलि, रेवती देवी और आयुष ने कुछ पौधे मदर प्लांट के रूप में पीपलकोटी के बायोटूरिज्म पार्क में रोपने शुरू कर दिए हैं. कुछ कटिंग पाली हाउस में रोप दिए गए हैं. उत्तराखंड में प्राकृतिक रंग देने वाले पौधों में अभी तक – काफल की छाल, युकेलिप्टस की छाल, प्याज, बुरांस के फूल, – सकीना (इन्डिगोफेरा) की पत्तियां और फूल का उपयोग किया जाता है. लेकिन अब आसाम नील भी इस कडी में जुड जाएगा.
(लेखिका साहित्यकार एवं आगाज संस्था की सलाहकार हैं)