- भार्गव चंदोला
28, 29, 30 दिसंबर, 2019 उत्तरकाशी जनपद की रवांई घाटी के नौगांव में तृतीय #रवाँई_लोक_महोत्सव
अगली सुबह आंख खुली तो बाहर चिड़ियों की चहकने की आवाज रजाई के अंदर कानों तक गूंजने लगी, सर्दी की ठिठुरन इतनी थी की मूहं से रजाई हटाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। कुछ समय बिता तो दरवाजे के बाहर से आवाज आई, चाय—चाय, मनोज भाई ने दरवाजा खोला तो बाहर Nimmi Kukreti Rashtrawadi हाथ में चाय लिए खड़ी थी। प्रायः मैं चाय से दूरी रखता हूँ, मगर रवाँई की उस ठिठुरन में ऐसा करना संभव न था। मैंने निम्मी से आग्रह किया, निम्मी गुनगुना पानी पिला देती तो फिर चाय का स्वाद भी लेने का आनंद बढ़ जायेगा। निम्मी झट से गुनगुना पानी भी ले आई, निम्मी के हाथ से बनी चाय में गांव की गाय के दूध का स्वाद था, निम्मी ने सभी साथियों को बहुत आत्मियता के साथ चाय पिलाकर सुबह खुशनुमा बना दी थी। बिस्तर छोड़कर बाहर आये तो बाहर का खूबसूरत नजारा देखने लायक था, चारों ओर पेड़ों से घिरा भाटिया गांव व ठीक सामने की चोटी पर बर्फ की चादर बेहद मनमोहक थी। कुछ ही देर बाद शशि, उनकी भाभी विजया जी व बड़े भाई डॉक्टर मनमोहन सिंह जी भी वहाँ उपस्थित थे। शशि ने अपने बड़े भाई डॉक्टर मनमोहन रावत जी से परिचय करवाया। डॉक्टर मनमोहन सिंह जी बड़कोट में बायोलॉजी के प्रवक्ता हैं इससे पूर्व वो गाजियाबाद व दिल्ली में पत्रकारिता कर चुके हैं। बेहद सौम्य व ज़मीन से जुड़े लोग देखने हों तो रवांई घाटी से बेहतर उदहारण कम ही मिलेंगे। शशि को महोत्सव की तैयारी के लिए जाना था तो वो जल्दी घर से चले गए!
रात से ही निम्मी, Kusum Kandwal, Indu Negi की नज़र कीचन में रखे लोकल आलू, घर के घी, सिल्वट्टे में पिसे नमक पर थी, शशि की भाभी विजया जी से अनुमति लेकर वो आलू के परांठे बनाने में मशगूल हो गए। डॉक्टर मनमोहन सिंह जी ने बाहर चौक पर नहाने—धोने के लिए पानी का कंटर गर्म कर दिया। मैं व Manoj Istwal भाई इतनी सर्दी में नहाने जाने से तो रहे, लिहाजा हमने गर्म—गर्म पानी से पंच स्नान करने की हिम्मत जुटाई। विजया जी व डॉक्टर मनमोहन अपनी क्यारी में खुदाई करने लगे, दिखावे के लिए ही सही उनके साथ कुदाल हाथ में लेकर मैं भी क्यारी खोदने लगा व मनोज भाई से फोटो खींचने का आग्रह किया (फोटो वीडियो संलग्न)। अब तक वरिष्ठ पत्रकार Vijendra Rawat जी भी वहां पहुंच चुके थे, उनसे वार्ता से मालूम हुआ कि वहां के किसान जितनी मेहनत कर कृषि उत्पाद तैयार करते हैं, उस उत्पादन का वहां के किसानों को वो लाभ नहीं मिल पाता है जो मिलना चाहिए बल्कि कई मौकों पर उनका उत्पाद लूट के भाव बिकता है, इसका मूल कारण है वहां मंडी का न होना, जिस कारण वहां के किसानों को अपना उत्पाद देहरादून, सहारनपुर की मंडी में लाना पड़ता है जिसमें उनका समय व ट्रांसपोर्ट व्यय अत्यधिक होता है, मज़बूरीवस उन्हें अपना उत्पादन लूट के भाव बेचना पड़ता है। सरकार से वो रवांई घाटी में मंडी के लिए कई बार निवेदन कर चुके हैं मगर सरकार के कानों में अब तक जूं नहीं रेंगी। इसी पोस्ट के माध्यम से कृषिमंत्री Subodh Uniyal भाई से मैं रवांई घाटी में मंडी खोलने का आग्रह करना चाहता हूं आशा है आप रवांई के किसानों की पीड़ा समझेंगे व तत्काल मंडी की मांग पूरी करेंगे!
विजेंद्र रावत जी से वार्ता चल ही रही थी कि निम्मी ने परांठे खाने के लिए आवाज लगाई तीसरी मंजिल पर शशि मोहन के घर की रसोई में चढ़ना किसी एडवेंचर से कम न था। घी, नमक के साथ हमने कुसुम जी के हाथों बने परांठे का स्वाद लिया और विजया जी से रास्ते में फलों के लिए नमक बंधवा दिया। विजया जी ने न केवल रास्ते के लिए नमक बांध दिया बल्कि पांचों के लिए पांच पुड़खी नमक बांध कर दे दिया जिसका स्वाद मेरे घर में आज भी लिया जा रहा है। गर्मा—गर्म चाय के बाद निम्मी ने रसोई पूर्व की भांति व्यवस्थित की और हम महोत्सव में जाने को तैयार होने लगे, विजया जी व डॉक्टर मनमोहन जी से विदा लेते हुए हम ऊपर सड़क की ओर चल पड़े रास्ते भर में यादें संग्रह करते हुए आज हम समय से पूर्व रवांई महोत्सव स्थल पहुंच गए।
महोत्सव स्थल में आज दूसरे दिन सर्वप्रथम हम देहरादून से आये Samaya Sakshaya प्रकाशन के स्टाल में गए जहां साथी प्रवीन भट्ट व Vinod Bagiyal ने रवांई को पुस्तकों से जोड़ने के लिए मोर्चा संभाले हुवा था। समझने—समझाने के लिए पढ़ना जरुरी है और पढ़ने के लिए अच्छी पुस्तकों तक पहुंच जरुरी है। इसके बाद हम रवांई रसोई के स्टाल में पहुंचे जिनके उत्पादों का स्वाद हम पिछले वर्ष भी ले चुके थे, फिर हम रवांई महोत्सव की आयोजक टीम के पास पहुंचे आयोजक टीम के साथी Shashi Mohan Ranwalta, Prem Pancholi, Pradeep Rawat, Ashi Dobhal Semwal, दिनेश रावत, Naresh Nautiyal, सीमा रावत, बधानी जी, बहुगुणा जी, उनियाल जी आदि ने आज फिर पुनः गर्मजोशी के साथ स्वागत किया व बैच लगाकर सम्मानित किया, ये हम सभी के लिए पुनः गदगद होने के क्षण थे। धीरे—धीरे पंडाल में भीड़ बढ़ती गई, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों से जुड़े लोग आते गए कुछ ही पलों में पंडाल आगे से पीछे तक भर चुका था, ये रवांई महोत्सव के सफल संचालन का प्रमाण था। इधर, स्टेज पर संगीतमय धुन बजनी शुरू हो गई थी, देहरादून से दूरदर्शन डाइरेक्टर Subhash Thaledi जी दूरदर्शन की अपनी टीम के साथ अगली रात को ही महोत्सव को कवर करने के लिए पहुंच चुके थे, पत्रकार व कवि साथी Neeraj Uttarakhandi रवांई की शान कवि/लेखक साथी Mahabeer Ranwalta जी से मुलाकात आज खाश रही।
आज का दिन रवांई लोक संस्कृति को जीवंत करने के लिए पारंपरिक सारंगी नृत्य से शुरू हुआ, जिसके बारे में युवा पीढ़ी कम ही जानती है। सारंगी नृत्य को जंगी नृत्य भी कहा जा सकता है, लोक गायक अनिल बेसारी, जौनसार के लोग गायक सुरेंद्र राणा, अंकित सेमवाल सहित 12 लोक गायकों की एकसाथ मंच से प्रस्तुति दर्शनीय थी। दर्शक दीर्घा का उत्साह देखते ही बन रहा था, देर शाम कड़ाके की ठंड में तांदी नृत्य व उसमें झूमती पूरी रवांई मानों प्रकृति ने पूरी घाटी में कलाकारों की फसल बोई हो, जो अब लहलहा रही है। इन सबको एकजुट कर एक मंच पर लाने के लिए शशिमोहन रवांल्टा व उनकी साथी टीम की जितनी सराहना की जाए कम है। आज के कार्यक्रम के समापन के बाद हम नीचे नौगांव बाजार पहुंचे व राणा जी के यहां भोजन कर हम 10 किलोमीटर दूर नौगांव स्थित फॉरेस्ट गेस्ट हाउस की तरफ रात्रि विश्राम को चल दिए। मेन सड़क से कटती संकरी सड़क, घुप अंधेरा, उबड़—खाबड़ सड़क वहां पहुंचना कितना रोमांचक व खौफ़नाक था ये आप महसूस कर सकते हैं। गेस्ट हाउस पहुंचे तो फिर वही महफ़िल गीत, गजल, चुटकिले… हंसी—मजाक के साथ एक और यादगार व शानदार दिन व शाम का अंत हुवा… अगली सुबह…..
क्रमशः…
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)