मंजू दिल से… भाग-24
कृष्ण-कटिकम: जब आप ‘गीत गोविंद’ का नृत्य करते हैं, तो कृष्ण को अपने आस-पास महसूस कर सकते हैं
- मंजू काला
नृत्य एक ऐसी विधा है जो मनुष्य के जन्म के बाद ही शुरू हो जाती है, या यूँ कह लीजिए की ये इन्सान के जन्म के साथ ही अभिव्यक्तियाँ देना आरम्भ कर देती है. जब कोई बच्चा धरती पर जन्म लेता है तभी वह रोकर हाथ-पैर मारकर अपनी भावाव्यक्ति करता है. उसे भूख लगती है तो वह रुदन करता है,
और माँ समझ जाती है कि बच्चा भूखा है. इन्ही आंगिक-क्रियाओं से इस रसमय कला-नृत्य की उत्त्पत्ति हुई है. यह कला देवी-देवताओं, दैत्य-दानवों, मनुष्यों एवम पशु-पक्षियों तक को प्रिय है. हमारे हिन्दुस्तान में तो यह विधा ईश्वर प्राप्ति का साधन मानी गई है, यह बात हिन्दुस्तान का हर गृहस्थ जनता है कि जब समन्दर मंथन के पश्चात दानवों को अमरत्व प्राप्त होने का खतरा उत्त्पन हुआ, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर, अपने “लास्य” नृत्य से तीनों लोकों को दानवों से मुक्त करवाया था.ज्योतिष
हिंदुस्तान की संस्कृति एवं धर्म आरम्भ से ही नृत्य कला से जुडे हैं, और इंद्र का अच्छा नर्तक होना तथा स्वर्ग में अप्सराओं के अनवरत नृत्य की धारणा से. हिंदुस्तानियों का प्राचीन काल से ही नृत्य की ओर जुड़ाव होने का संकेत मिलता है. स्पष्ट है कि हम आरम्भ से नृत्यकला को धर्म से जोड़ते आये हैं. पत्थर के समान कठोर
व दृढ़ प्रतिज्ञ मानव ह्रदय को भी मोम के सदृश्य पिघलाने की क्षमता इस कला में है, यही इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष भी है. जिसके कारण यह मनोरंजक तो है ही, धर्म, अर्थ और मोक्ष का साधन भी है. अगर ऐसा नहीं होता तो यह कला धारा पुराणों-श्रुतियों से होती हुई आज तक के अपने शास्त्रीय स्वरूप में धरोहर के रूप में हम तक प्रवाहित नहीं हुई होती.ज्योतिष
हमारे देवी देवताओं को
तो यह कला अत्यंत प्रिय है. भगवान शंकर नटराज कहलाते हैं, यह उनकी नृत्य सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवम संहार का प्रतीक भी है. और जब वे माँ पार्वती के साथ “लास्य” करते हैं तो सारी पृथ्वी पर रक्ताभ खिल उठते हैं
ज्योतिष
हमारे देवी देवताओं को तो यह कला अत्यंत प्रिय है. भगवान शंकर नटराज कहलाते हैं, यह उनकी नृत्य सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवम संहार का प्रतीक भी है. और जब वे माँ पार्वती के साथ “लास्य” करते हैं तो सारी पृथ्वी पर रक्ताभ खिल उठते हैं, और कहते हैं कि जब हम सबके प्रिय कृष्ण, “चलो री सखी ब्रज में देखन
होली” गाते हुए नृत्य करते थे तो ब्रज के ग्वाल-बाल, पशु पक्षी ब्रज की बालाएं, बधूएं, सगरजन सब अपना काज छोड़कर कृष्णमय हो जाते थे, और गउएँ भी जुगाली करना भूलकर, “आकर्षयती इति कृष्ण:” के स्वर में रम्भाने लगती थीं ऐसा वेदों में कहा गया है.ज्योतिष
शास्त्रीय नृत्य की दुनिया में श्री
कृष्ण की प्रतिष्ठा अनायास नहीं है वे तो नृत्य को भी योग बना देते हैं. जब वे मधुवन में गोपियों संग नृत्यमग्न होते हैं तो सृष्टि का विराट स्वरूप धारण कर लेते हैं योगेस्वर जो ठहरे.ज्योतिष
हिन्दुस्तान में कृष्ण का विभीन्न रूपों मे निदर्शन होता रहा है, यह सर्वविदित है, फिर चाहे वह चित्रकारी हो, मिनियेचर हो, स्थापत्य हो, साहित्य हो या संगीत नृत्य के संसार की सभी शैलियों
में कृष्ण की मौजूदगी बहुत प्रमुखता से रही है, और कृष्ण, कलाओं में विराट और व्यापक सोच के प्रतीक हैं. वे सर्वशक्तिमान है, हमारे योग एवम छेम को वरण करते हैं. वे जारा के तीर से घायल हो कर अपना शरीर त्यागते हैं. और कुरूप कुब्जा के साथ..इसलिए विहार करते हैं, जिस से स्त्री के मान की रक्षा हो सके. कहना ये चाहती हूँ कि कृष्ण: एक साथ अत्यंत पारंपरिक और आधुनिक दोनों ही रुपों में सम्पन्न चरित्र ठहरते हैं और कलाओं की दुनिया से अलग, वे मिथकीय समाज में वे अकेले ऐसे व्यक्ति हैं, जिनका जीवन होली, सावन, झूला, नटवारी नृत्य, सतवारी, कृष्ण कटिकम आदि नृत्यों का प्रतीक है.ज्योतिष
यह नृत्य नाटिका कृष्ण-गीता पाठ पर आधारित है, जो की संस्कृत में है. यूँ कह लीजिये की यह केरल की एक शास्त्रीय नृत्य नाटिका शैली है. इसमें कृष्ण की
पूरी कहानी एक नाटक के चक्र में दिखाई जाती हैं, जिसके निर्माण में आठ रातें लगती हैं. इस नृत्य शैली मे भगवान कृष्ण के सम्पूर्ण चरित्र का वर्णन किया जाता है.
ज्योतिष
‘कृष्ण कटिकम”, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारा प्यारा हिन्दुस्तान बहुत-सी रंग-वालियों का देश है. जितनी तरह की इसकी संस्कृतियाँ: उतनी ही तरह की इसकी भाषाएँ, परिधान, भोजन और नृत्य कलाएं. कथक से लेकर बीहू तक, यहाँ पर हर तरह की नृत्य विधाएँ मौजूद हैं, और ” कृष्ण कट्टीकम “अथवा “कृष्ण अट्टम”केरल के”गुरुवायूर”मंदिर में उसकी क्षमतानुसार आज भी किया जाता है. यह नृत्य नाटिका कृष्ण-गीता पाठ पर आधारित है, जो की संस्कृत में है.
यूँ कह लीजिये की यह केरल की एक शास्त्रीय नृत्य नाटिका शैली है. इसमें कृष्ण की पूरी कहानी एक नाटक के चक्र में दिखाई जाती हैं, जिसके निर्माण में आठ रातें लगती हैं. इस नृत्य शैली मे भगवान कृष्ण के सम्पूर्ण चरित्र का वर्णन किया जाता है. “विल्वमंगल”नामक कृष्ण का एक भक्त कृष्ण की पोशाक बनाने में मदद करता है, और इस नृत्य नाटक में अभिनय करने वाले व्यक्ति को बैले तत्व और अनुकरण करने की पद्धति से युक्त होने की आवश्यकता होनी चाहिए..ज्योतिष
प्राचीन धार्मिक लोक नृत्यों जैसे-‘ठियाट्टम’,एवं थियाम, की क्ई विशेषताओं को कृष्ण अट्टम मे देखा जा सकता है, जिनमे चेहरे पर पेंटिंग करना, रंगीन मुखोटे का उपयोग, सुन्दर वस्त्र
विन्यास का उपयोग महत्वपूर्ण है. मुखौटे लकड़ी के बने होते है. कृष्ण अट्टम के अलावा किसी अन्य नृत्य में कृष्ण के इतने रुपों का चरित्रण नहीं किया जाता है. इस नृत्य कला में “मदलम एलथलम” और चिंगला नामक संगीत के यन्त्रों का प्रयोग होता है.ज्योतिष
कहना चाहूंगी की जो लोग कला के प्रदर्शन को देखते है उनकी दुनिया स्थाई होती है, मगर कलाकार अपनी एक नई दुनिया निर्मित करता है, जिसमे उसके भाव संसार की सृष्टि करते हैं.
वह नृत्य के द्वारा रो सकता है, हँस सकता है. पहले मैं भी सोचती थी कि हर भाव को शब्दों में ढालना मुश्किल होता है, लेकिन एक नृत्यांगना के तौर पर मैं जान पाई की जब आप “गीत गोविंद” का नृत्य करते हैं, तो कृष्ण को अपने आस-पास महसूस कर सकते हैं.