संस्मरणों, यात्राओं और अनुभवों का पुलिंदा है हिमालय दर्शन

सुनीता भट्ट पैन्यूली

जैसा कि लेखक दिगम्बर दत्त थपलियाल लिखते हैं –

“जिस हिमालय की हिम से ढकी चोटियां मेरी अन्तश्चेतना और अनुभुतियों का अविभाज्य अंग बन गयी हैं, जहां एक क्वारी धरती गहरे नीले आकाश के नीचे सतत सौन्दर्य रचना में डूबी रहती है, उसकी विभूति और वैभव को किस प्रकार इन पृष्ठों पर उतारु? मैं चाहता हूं, हर कोई उस ओर चले, पहुंचे और देखे. अनुभव करे कि वहां परिचय की छोटी-छोटी सीमायें टूट जाती हैं. छोटे-छोटे आकाश नीचे,बहुत नीचे छूट जाते हैं और शुरू होती,एक विराट सुन्दर सत्ता. जिसके प्रभाव में हमारी नगण्य अस्मिता अनन्त के छोर छूने लगती है.”

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दिगम्बर दत्त की “हिमालय दर्शन” (Himalayas: In the pilgrimage of India)  पर्यटन साहित्य पर लिखा गया एक महत्त्वपूर्ण व शोधपरक दस्तावेज है.  दिगम्बर दत्त because थपलियाल की विद्वता, तथ्यनिष्ठा, व उत्तराखंड के हिमालय की यात्राओं के असंख्य अनुभवों और हिमालय पर पैनी दृष्टिपात का ही  परिणाम है कि यह किताब अपने आप में ही हिमालय पर एक एनसाइक्लोपीडिया है.

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किताब में लेखक के विचारों को पढ़कर ऐसा महसूस हो रहा है कि लेखक किसी खास व प्रभावपूर्ण भाषा शैली में अपने अनुभवों को लिपिबद्ध करने के लिए चिंतातुर नहीं है. जैसा कि वह because कहता है कि इस आनन्द की अभिव्यक्ति मेरी विवशता बन गयी है. यह मेरे स्वभाव में नहीं है कि इस मधुर रसानुभूति के बाद मैं गूंगा बना रहूं, अतएव मेरे लिए आवश्यक हो जाता है कि अधिक से अधिक लोगों को हिमालय दर्शन के लिए प्रेरित कर मन के बोझ को हल्का करूं. जिस प्रकार एक उफनता पहाड़ी नाला अपना मार्ग स्वत: निर्धारित करता जाता है, उसी प्रकार यह विवरण भी अपनी शैली की स्वत: रचना करेगा.

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यद्यपि लेखक के हृदय में एक कवि मन भी कुलांचे भरता है जैसा कि किताब के अवांतर बीच-बीच में और अंत में हिमालय के ऊपर असंख्य कविताओं का संजाल भरा पड़ा है जिन्हें पढकर मन हिमालय के प्रति अनायास ही श्रद्धा से झुक जाता है. फलत: किताब में हिमालय का समुच्चय वर्णन रोचक, प्रांजल व काव्यात्मक शैली में हुआ है because जिससे हिमालय की सत्ता में प्रवेश करना किसी वीरान बियांबान में अकेले प्रविष्ट होने जैसा महसूस नहीं होता है. किताब में लेखक द्वारा दिये गये तथ्य और कथ्य उनकी हिमालयी यात्राओं के दौरान किये गये विष्लेषण की गहन पुष्टि करते हैं.

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“हिमालय दर्शन” पढ़कर यूं महसूस हुआ मानो लेखक के साथ हिमालय की दुर्गम पहाड़ियों, हिम आवेष्टित शिखरों व पुष्प आवेष्टित बुग्यालों की जैसे मैंने ही सैर कर डाली हो. यद्यपि प्रयोगात्मक रूप से लेखक व उनके साथियों के लिए मार्ग-दर्शक के साथ संपूर्ण हिमालय के श्रंगों वहां के बुग्याल, ग्लेशियर, नदियों, सरोवरों, ताल, तलैयों, because पैनी व नुकीली चोटियों, सिर्फ जूते रखने जितनी जगह वाली पगडंडियों पर, बर्फ की जोखिम वाली गंतव्य तक पहुंचना, पालसियों, गुर्जरों व गद्दियों के मवेशियों के खुर के निशानों पर चढकर निश्चित ही रूह कंपाने वाली अविस्मरणीय घटना रही होगी लेखक के लिए किंतु उनके अनथक और जुनूनकारी प्रयासों का ही प्रतिफल है कि उपरोक्त किताब को पढ़कर हम पाठकों को उत्तराखंड हिमालय को बहुत क़रीब से जानने का अवसर मिला है.

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ऐसा मुझे महसूस नहीं हुआ because कि “हिमालय दर्शन” किताब में हिमालय के अलंघ्य संसार का कोई भी तत्व व कारक अनछुआ रह गया हो इस किताब में. बहुत गहन विश्लेषण की रोचक अभिव्यक्ति है “हिमालय दर्शन”.

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किताब में जो ग्राह्य व महत्त्वपूर्ण तथ्य महसूस किये मैंने वह मोटर मार्ग के गंतव्यों की दूरी का सटीक आंकलन, समतल भूभाग से ऊपर चढ़ते-चढ़ते रई, सुरई, कैल, ब्लू- पाइन, बांज, because बुरांस, खरसू और त्रकोणाकार वृक्षों की ऊंचाई,वनस्पतियों का प्राकृतिक व्यवहार, गांवों तक पहुंचने के पैदल रास्तों का अनुभव, वहां के लोगों का खान-पान उनकी आर्थिक स्थिति,जंगलों से गुजरते हुए वन विभाग के विश्रामगृह का वर्णन और कौन सा मौसम हिमालयी यात्राओं के लिए सुविधाजनक है? कहां वृक्ष सीमा ख़त्म होती है, कितनी ऊंचाई से बुग्याल शुरु होते हैं?

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कितनी ऊंचाई पर कौन से हिमालयी पक्षी और हिमालयी जानवर रहते हैं किस मौसम में वह ऊंचाई से खेत-खलिहानों में उतरते हैं? किस भौगोलिक वातावरण में उनके शरीर का रंग बदलता है, because उनका व्यवहार, भोजन, वास, किस प्रकार पहाड़ों पर बादल लगते हैं, कब धूप निकलती है कब बारिश होती है, कब मौसमों का मिजाज़ बदलता है, कौन सा मौसम पहाड़ों और ग्लेशियर पर चढ़ने के लिए उपयुक्त होता है, कब बुग्यालों पर कौन से फूल और वनस्पति खिलती है कब वह मुरझाती हैं?

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ब्रहम कमल, श्वेत कमल, नील कमल because और फेन कमल कौन सी जगह और कितनी ऊंचाई पर उगते हैं? मानव जीवन पर उनका क्या प्रभाव पड़ता है. कहां-कहां गर्म पानी के सोते हैं कौन-सी वनस्पति किस उपचार के काम आती है इत्यादि.

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कौन से हिम श्रंग का क्या नाम है? because उनसे संबद्ध पौराणिक कथायें, मंदिर निर्माण की अवधि और उनके विस्थापन के एतिहासिक और पौराणिक तथ्यों को पढ़ना इस किताब में ना केवल  हिमालय के रहस्यमयी संसार में प्रवेश करना है बल्कि हिमालय से संबद्ध रोचक व ज्ञानवर्धक तथ्यों को भी अर्जित करना है.

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किताब में उपलब्ध सामग्री में गोहना, ताल,विरही ताल, because क्वारी के पुष्पित बुग्याल, नंदा देवी राजजात यात्रा में रूपकुंड और उसके रास्ते भूना में “वर्नीड हट” वअन्य पड़ावों के साथ चौसिंघिया मेढे  और वहां तक पहुंचने की लेखक की जीजिविषा और अनथक संघर्षों की स्मृति के साथ वेदिनी बुग्याल की सैर का रोमांचकारी वर्णन है.

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हिम श्रंगों की उपत्यकाओं में बदरी, केदार, गंगोत्री, यमनोत्री के अतिरिक्त विश्व के सर्वोच्च तीर्थ-स्थल सतोपंथ झील, स्वर्गारोहिणी, हेमकुंड लोकपाल होमकुंड उनकी तलहटी में भ्युंडार की विश्वविख्यात फूल घाटी, औली, गुरसों और क्वारी के पुष्पित शिखर, औली, वेदनी की फूलों की घाटियां, खतलिंग ग्लेशियर, पंवाली के पुष्पित बुग्याल, सहस्रताल, because कुशकल्याण और क्यार्की की फूलघाटी,गोमुख,नन्दनवन और तपोवन ट्रैक, सुक्खी शिखर, रूद्रगैर हिमशिखर, दयारा के पुष्पित बुग्याल और पुष्पित भू-भाग तथा नीतिहोति और ऋषिगंगा गौर्ज की पर्वतमालाओं के साथ ही बदरी विशाल में “गंधमादन हिमशिखर पर नर-नारायण, “सतोपंथ और स्वर्गारोहणी” में प्रसिद्ध हिमश्रृंगों की विलक्षण श्रंखला में नीलकंठ, चौखंभा, कामेट, त्रिशूल,  नंदा देवी,बासुकी ताल और गांधी सरोवर (चोरबाड़ी ताल) के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है.

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“हिमालय दर्शन” को संस्मरणों का पुलिंदा या यात्राओं के अनुभवों की किताब कहा जाये? या हिमालय के संसार पर आधारित शोधपरक दस्तावेज कहा जाये हर दृष्टि से हर प्रकार के पाठकों की अभिरूचि के अनुरूप किताब अपने आप में खरी उतरती है. जहां लेखक के गुजर व पालसियों की झोपड़ियों व छानीयों में रहने व उनके खान-पान के अनुभव हैं,उनकी समस्याओं से सरोकार है, हिमालय के अत्यंत शीत वातावरण में बर्फीले तूफानों से बचाव के लिए हिमालय के गह्वर में दिन और रात-बिताने because और खाना-बनाने के लिए सुविधा जुटाने के रोचक किस्से हैं. मोर (मुनाल) चकोर, घ्वीड़, काखड़ के बसेरों के अतिरिक्त, भरल या हिमालयी भेड़, थेर या हिमालयी बकरा,पालसियों की छान और उनकी छोपड़ियों आग में ढुंगले सेंकने,पंवाड़ों का सुखद ज़िक्र भी है. वहीं संदर्भ ग्रंथ  जैसे ऋग्वेद, केनोपनिषद,स्कन्ध पुराण, मेघदूत,व केदारखंड के सूक्ष्म प्रसंग किताब को पौराणिक व धार्मिक कलेवर  भी देते हैं.

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लेखक के इन्हीं यात्राओं के छोटे-छोटे because अनुभवों और संस्मरणों से हम पाठकों को अदृश्य रुप से जानकारी मिलती है कि यात्रा के दौरान किसी भी यात्रा प्रेमी को अपने साथ अनिवार्य रूप से क्या-क्या साथ में लेकर चलना चाहिए?

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किताब के अंतिम पृष्ठों में हिम पक्षियों, बर्फ के पशुओं उनके अंग्रेजी नाम के साथ हिम पुष्पों व पौधों के वानस्पतिक नाम, “चोरा, आर्चा, मीठा जहर, कूथ, गुग्गल, जटामांसी, लालजड़ी, because बरमोल, फरण वनौषधियों और जड़ियों की दुलर्भ जानकारी के साथ ही विभिन्न शारीरिक रोगों में उनके प्रयोग का विस्तृत वर्णन भी है. हिमालयी यात्रा के दौरान किताब में दिये गये उपयोगी सुझाव भी पाठकों के लिए लाभप्रद सिद्ध होंगे. बहुत सुखद है यह जानना भी कि उत्तरकाशी से हरकीदून की ओर जाते हुए कि राड़ी पर्वत के पूरब में गंगा और पश्चिम में यमुना यानी कि रवांई घाटी है.गंगा में पांडव और रवांई में दुर्योधन को पूजा जाता है.

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किताब में सबसे सार्थक व सम्यक प्रसंग because लेखक की पर्यावरण के प्रति गहन सजकता ,गुज्जरों,पालसियों,और गद्दी के मवेशियों द्वारा ख़ूबसूरत बुग्यालों के नष्ट होने वहां गंदगी फैलाने और हिमालय के आंतरिक रूप से जर्जर ,होने के प्रति सरकारों और अफसरशाही की लापरवाही और इस ओर नीरसता का स्पष्ट आह्वान है.

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उत्तराखंड  हिमालय  या गढवाल पर्यटन because और उसके सीमांत गांवों  को  जो भी पाठक जानना या जीवंतता के साथ अनुभव करना चाहते हैं “हिमालय दर्शन” उस दृष्टिकोण से बहुत उपयोगी सिद्ध होगी ऐसे सुधी पाठकों के लिए.

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