अशोक चक्र विजेता शहीद हवलदार बहादुर सिंह बोहरा

प्रकाश चन्द्र पुनेठा

उत्तराखण्ड राज्य के जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ से लगभग 79 किलोमीटर दूर पश्चिम में गंगोलीहाट तहसील में लगभग 29 किलामीटर दूर रावलखेत गाँव है. रावलखेत गाँव हमारे देश के शाँन्तिकाल के सर्वाच्च वीरता पुरुस्कार अशोक चक्र विजेता, 10वीं बटालियन पैराशूट रेजिमेंट के स्वर्गीय हवलदार बहादुर because सिंह बोहरा का गाँव है. वर्तमान में जिला पिथौरागढ़ में शहीद हवलदार बहादुर सिंह बोहरा एकमात्र अशोक चक्र विजेता है. जब भी हम किसी गाँव में जाते है तो देखते है कि अक्सर गाँव में कई मकान एक दूसरे से सटकर बने हुए हैं, मकानों के आँगन आपस में मिले हुए है, गाँव का मुख्य मार्ग, मकानों के छोटे-छोटे मार्गों से जुड़ा होता है. जिस कारण गाँव में रहने वाले लोग एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं.

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इसके विपरीत शहर से दूर पहाड़ों के मध्य घनघोर बीहड़ जंगल के मध्य स्थित रावलखेत गाँव, विस्तृत क्षेत्र में बिखरा हुवाँ गाँव है. पहाड़ में बीहड़ जंगल के मध्य चार-पाँच मकानों का समूह because एक स्थान में, इसके पश्चात एक या दो किलोमीटर की दूरी में स्थित चार-पाँच मकानों का समूह, इसी प्रकार से लगभग समान दूरी में, समान संख्या में अन्य मकानों का समूह. अलग अलग स्थानों में, चार-पाँच मकानों के समूह में बिखरा हुवा गाँव, रावलखेत गाँव है.

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रावलखेत गाँव में वहाँ के लोगों की आजीविका का साधन मुख्य रुप से कृषी हैं. पहाड़ी क्षेत्र होने के because कारण बहुत कम भूमी कृषी योग्य है, अधिकतर भूमी पथरीली व पठारी हैं. पहाड़ी में जहाँ कही कृषी योग्य उपजाऊँ भूमी है वही लोगों ने अपना बसेरा बना रखा हैं. शायद इसी कारण रावलखेत गाँव पहाड़ में, जंगल के मध्य, अलग-अलग स्थान में कृषी भूमी के क्षेत्रफल को देखते हुए विभिन्न तोक के अनुसार बसा हुवा हैं.

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रावलखेत गाँव में धान, मडुवा, भट्ट, गेहूँ, जौ के अतिरिक्त अनेक पर्वतीय जलवायु के अनुसार फसल पैदा होती हैं. रावलखेत गाँव के किसान अपनी हाड़तोड़ मेहनत करने के पश्चात because अपने खेतों में फसल पैदा करते हैं. रावलखेत गाँव के निवासी बहुत अधिक मेहनत व कष्ट सहने के पश्चात भी रावलखेत गाँव के निकट जंगल में फसल को नुकसान पहुँचाने वाले जंगली पशु जैसे सुवर व बंदर बहुत हैं. इसलिए गाँव के लोग अपनी तैयार फसल को 24 पहर जंगली सुवरों से सुरक्षित रखने के लिए सतर्क रहते हैं.

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रावलखेत गाँव हरे भरे जंगल के मध्य होने के कारण पशुपालन के लिए उत्तम है. पशुओं के लिए चारा अच्छी मात्रा में उपलब्ध हो जाता है. इसलिए गाय भैंस तथा बकरी लगभग हर घर में because पाली जाती हैं. किन्तु पालतु पशुओं को जंगल के हिसंक जानवरों से बचाकर रखना पढ़ता हैं. फलों में मुख्य रुप से आम, संतरा, माल्टा व अमरुद बहुत होते हैं, दुविधा की बात यह है कि बंदरों का उत्पात भी बहुत हैं. अवसर मिलते ही बंदर फल खाते कम है, बरबाद अधिक कर देते हैं.

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रावलखेत गाँव के निवासी परिश्रम करते हुए अपना पसीना बहाकर, जंगली सुवरों से अपने खेतों को ऐनकेन प्रकारेण अपने खेतों की फसल को सुरक्षित करके,  बंदरों के उत्पात से पेड़ों में because लगे फलों को बचाकर तथा स्वयं अपने को व अपने पालतु पशुओं की जंगल के हिसंक जानवरों से रक्षा करके, धैर्य के साथ संघर्ष करते हुए अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं.

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इस प्रकार संघर्षमय जीवन ब्यतीत करते हुए रावलखेत गाँव के तोक गागर के निवासी गोविन्द सिंह बोहरा की पत्नी देवकी देवी बोहरा ने, हमारे देश की सेना के पराक्रमी, शौर्यशाली, वीरयोद्धा तथा अशोक चक्र विजेता शहीद हवलदार बहादुर सिंह बोहरा को 5 अक्टूबर सन् 1977 के दिन अपनी कोख से जन्म दिया. बहादुर सिंह अपने because पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. बहादुर सिंह से बड़ी तीन बहनें तथा एक बड़े भाई हैं. बहादुर सिंह के पिता गोविन्द सिंह बोहरा केन्द्रीय सरकार में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे. केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी होने के कारण गोविन्द सिंह बोहरा घर से बाहर दूर नौकरी में थे, अतः घर-गृहस्थी को संभालने का उत्तरदायित्व  बहादुर सिंह की माता जी श्रीमती देवकी देवी के कंधों में रहती थी.

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पहाड़ों की शुद्ध वायु के मध्य रहने, स्वच्छ जल के सेवन, पुष्ट व स्वास्थवर्धक अनाज ग्रहण करने तथा because अपने घर के पालतु पशुओं गाय, भैंस के दुध पीने से बालक बहादुर सिंह पाँच वर्ष की अवस्था में अपने हमउम्र के बालकों के समक्ष, अपने अच्छे स्वास्थ के कारण, दिखने में उनसे बड़े लगते थे. बहादुर सिंह चाहे कितनी अधिक विषम परिस्थितियाँ हो, वह सदैव प्रसन्नचित्त अवस्था में रहते थे.

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पाठशाला जाने योग्य आयु होते ही बहादुर सिंह को  गाँव की प्राथमिक पाठशाला में प्रवेश दिलाया गया. विद्या अध्यन की लगन होने के कारण, पहाड़ की कठीन परिस्थितियों से because संघर्ष करते हुए, बहादुर सिंह ने गाँव की प्राथमिक पाठशाला से कक्षा पाँच की परीक्षा, समय में उतीर्ण कर ली थी. कक्षा पाँच उत्तीर्ण करने के पश्चात बहादुर सिंह के घरवालों ने बहादुर सिंह को 12 किलोमीटर दूर, तारा इंटर कालेज तामानौली में आगे की पढ़ाई के लिए भर्ती कर दिया. क्योकि गाँव में मात्र कक्षा पाँच तक ही पढ़ाई होती थी.

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उस समय बहादुर सिंह के बड़े भाई त्रिलोक सिंह तारा इंटर कालेज तामानौली में कक्षा 12वी़ं में अध्यनरत थे. अतः बहादुर सिंह अपने बड़े भाई त्रिलोक सिंह व आस पड़ौस के विद्याार्थियों के साथ कक्षा छः में अघ्यन करने के लिए तामानौली इंटर कालेज जाने लगे. तारा इंटर कालेज तामानौली में अध्यन करने वाले सभी विद्यार्थी एक because साथ संगठित होकर जाते थे, क्योकि जंगल में हिसंक जानवर होने के कारण जानवर अपनी प्रकृति अनुसार गाँव के निवासियों के उपर हिसंक आक्रमण करने में देर नही करते थे. इसलिए रावलखेत गाँव से तामनौली स्कूल जाने तक, गाँव के सभी विद्यार्थी आपस में संगठित होकर मेल मिलाप से, सजग रहते हुए,  आसानी से स्कूल पहुँच जाते थे.

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पहाड़ में स्कूल पढ़ने वाले विद्यार्थी विद्या अध्ययन करने के अतिरिक्त अपने घर के रोज के कार्यो में भी अपने माँ बाप का हाथ बटांते हैं. चाहे वह खेतों में हल चलाने का कार्य हो, खेतों में फसल के लिए अनाज बुआई का कार्य हो, खेत में तैयार because अनाज को समेटकर घर लाने का कार्य हो या जंगल से अपने पालतु पशुओं के लिए चारा लाने का काम हो आदी सभी कार्य करते हैं साथ में विद्या अध्यन भी करते हैं. बहादुर सिंह भी विद्या अध्यन के साथ अपने भाई बहनों के साथ घर के प्रायः सभी कार्य करते थे.

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बहादुर सिंह अपने बड़े भाई त्रिलोक सिंह के साथ तामानौली इंटर कॉलेज में बड़े लगन के साथ पढ़ रहे थे. ग्रीष्मकाल में उनका विद्यालय प्रातः ही सात बजे से आरंभ हो जाता था. because रावलखेत गाँव से लगभग 12 किलोमीटर दूर तामानौली में स्थित विद्यालय में प्रातः सात बजे पहुँचने के लिए बहादुर सिंह अपने बड़े भाई त्रिलोक सिंह व पड़ौस के अन्य विद्यार्थियों के साथ सूर्य उदय से पूर्व अंधेरे में ही छ्यूला (चीड़ की लकड़ी का अति ज्वलनशील भाग) को जला कर मार्ग में रौशनी करते हुए जाते थे. जंगल का मार्ग होने के कारण कई बार हिसंक जानवर गुलदार भी दिख जाता था.

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लेकिन विद्यार्थियों के हाथों में जलती हुए मशाल नुमा छ्यूले की जलती लौ देखकर गुलदार आगे बढ़ने की हिम्मत नही करता था. इसी प्रकार से अनेक प्रकार की कठिनाईयों में व because विषम परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए, विद्या अध्यन करते हुए  बहादुर सिंह व उनके बड़े भाई त्रिलोक सिंह तामानौली इंटर कॉलेज से, अपनी-अपनी कक्षाओं में, त्रिलोक सिंह कक्षा 12 और बहादुर सिंह कक्षा छः उतीर्ण हो गए थे.

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बहादुर सिंह और उनके बड़े भाई त्रिलोक सिंह का तामानौली के विद्यालय में मात्र एक वर्ष तक का साथ रहा. क्योकि बहादुर सिंह के बड़े भाई त्रिलोक सिंह कक्षा 12 उतीर्ण करने के because पश्चात रोजगार की तलाश में घर से दूर शहर की ओर निकल गए थे. और बहादुर सिंह के आस-पड़ौस के विद्यालय साथ में जाने वाले कुछ अन्य विद्यार्थी भी कक्षा 12 उतीर्ण कर चुके थे. अब बहादुर सिंह तामानौली के विद्यालय जाने के लिए अकेले रह गए थे. इस समस्या को देखते हुए घरवालों ने बहादुर सिंह को दूर तामानौली न भेजकर, निकट के आठ किलोमीटर दूर उच्चतम माध्यमिक विद्यालय छडौली में कक्षा सात में दाखिल कर दिया.

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बहादुर सिंह का अपने गाँव के प्राथमिक विद्यालय से विद्या अध्यन की यात्रा कक्षा एक से आरंभ कर कक्षा पाँच तक की शिक्षा उत्तीर्ण कर प्रथम चरण पूर्ण कर लिया था. द्वितीय चरण मात्र because एक वर्ष तारा इंटर कॉलेज तामानौली में कक्षा छः उतीर्ण कर पूर्ण किया. तृतीय चरण उच्चतम माध्यमिक विद्यालय में कक्षा सात में दाखिला लेकर आरंभ कर चुके थे. बहादुर सिंह अब अपने ही बलबूते अध्यन में आगे बढ़ रहे थे. उनके समक्ष जो भी चुनौति खड़ी दिखती वह अपने नाम के अनुरुप उस चुनौति का बहादुरी से सामना करते थे, अन्त में वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते थे.

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बहादुर सिंह के परिवार में उनके बूबू, काका और ठुलबाबू सब सैनिक पृष्टभूमी के थे. वह उनके सैनिक जीवन की बहादुरी से भरी घटनाओं को बहुत उत्सुकता से सुनते थे. उनके गाँव में सेना में सेवारत सैनिक को घर अवकाश आए हुए, उनके व्यक्तित्व को तथा उनके अनुशासन मय जीवन को देख वह बहुत आकर्षित तथा प्रभावित होते थे. because इस कारण बहादुर सिंह के हृदय में सेना के प्रति बहुत अधिक आकर्षण पैदा हो गया था. वह भविष्य में सेना का सैनिक बनने का सपना देखने लग गए थे. बहादुर सिंह को यह ज्ञात था कि सैनिक बनने के लिए अच्छे नंबरों से हाईस्कूल उतीर्ण होना आवश्यक है. अतः बहादुर सिंह ने अपने सुरक्षित भविष्य के लिए एक लक्ष्य निर्धारित कर लिया था, परिश्रम करके समय में हाईस्कूल उतीर्ण करना उसके पश्चात भारतीय सेना का सिपाही बनना.

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बहादुर सिंह पढ़ाई में भी अच्छे थे. पढ़ाई के अतिरिक्त वह घर के काम भी बड़ी निपुणता से करते थे. घरवालों को वह किसी प्रकार की शिकायत का अवसर नही देते थे. छडौली के विद्याालय में पढ़ाई करते हुए उन्होंने कक्षा सात, कक्षा आठ because आसानी से उतीर्ण हो गये थे. जब कक्षा नौ में पहुँचे तो वह सेना में जाने के अपने लक्ष के प्रति ओर अधिक गंभीर हो गए थे. कक्षा नौ में पहुँचने के साथ ही वह गाँव के अपने हमउम्र साथियों को सेना में भर्ती की तैयारी के लिए प्रेरित करते और प्रातः ही अपने साथियों के साथ सूर्योदय से पहले चार बजे उठ कर दंड बैठक लगाकर शारिरीक अभ्यास करते, सूर्य की किरणों के प्रकाश फैलते ही पहाड़ की पतली और पथरीलि पगदंडियों में दौड़ने का अभ्यास करते थे.

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सेना में जाने के लिए बहादुर सिंह का प्रत्तेक दिन शारिरीक अभ्यास का क्रम लगातार अनवरत जारी रहा. प्रातः सेना में जाने के लिए शारिरीक अभ्यास, दिन में विद्या अघ्यन के लिए विद्यालय, विद्यालय से घर आकर घर के आवश्यक कामों को पूरा करना और उसके बाद रात को लालटेन, डिभरी या छ्यूले की रौशनी में पढ़ाई करना एवं because विद्यालय के पाठ्य कर्म को पूर्ण करना. बहादुर सिंह के विद्या अघ्यन के समय रावलखेत गाँव में विधुत विभाग की बिजली नही पहुँची थी. अतः रावलखेत गाँव के निवासी लालटेन, डिभरी या छ्यूले की रौशनी के सहारे अपना काम चला रहे थे. बहादुर सिंह को अपने जीवन को गतिमय रखने के लिए अभाव से संघर्ष करना पढ़ रहा था. पहाड़ के दूर-दराज के गाँव में रहते हुए इन संघर्षों ने बहादुर सिंह को ओर अधिक शक्तिशाली बना दिया था.

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प्रकृति की कठीन विषम परिस्थितियों में रहते हुए तथा मानव जीवन के अभावों से संघंर्ष करते हुए बहादुर सिंह ने 16 वर्ष की अवस्था में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय छड़ौली से अच्छे नंबरों से हाईस्कूल उतीर्ण कर लिया. सेना में जाने के लिए आयु सीमा 17 वर्ष पूर्ण होनी चाहिए. बहादुर सिंह ने लगभग एक वर्ष तक घर में रह कर because 17 वर्ष पूर्ण होने तक सेना में जाने के लिए तैयारी की. प्रातः चार बजे उठकर व्यायाम करना, दिन भर खेतों मे काम करना, पशुओं को चराना फिर सांय को फिर दौड़ लगाना. बहादुर सिंह को सेना में जाने का एक जनून सवार हो गया था. अतः वह अपने जनून को पूरा करने के लिए प्रत्तेक कठिनाई का सामना करने के लिए तत्पर रहते थे.

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बहादुर सिंह ने अपनी सत्रह वर्ष की आयु पूर्ण होते ही, सेना में भर्ती होने के लिए प्रयास आरंभ कर दिया था. बहादुर सिंह को जैसे ही पता चलता कि अमुक स्थान में सेना की भर्ती होने वाली है तो बहादुर सिंह तुरंत ही उस स्थान में पहुँच जाते थे. बहादुर सिंह सेना की भर्ती प्रक्रिया में शारिरीक परीक्षण में सफल हो जाते थे, because जैसे दौड़, दंड-बैठक, लंबी कूद व शारिरीक नाप-तौल आदी में. लेकिन चिकित्सा परीक्षण में असफल हो जाते थे. क्योकि बहादुर सिंह के पाँव के तलवे समतल थे, जिस कारण सेना की भर्ती की चिकित्सा परीक्षण में वह असफल हो जाते थे. बहादुर सिंह सेना में भर्ती की चिकित्सा परीक्षण में असफल होने के कारण, कुछ समय तक निराश अवश्य होते थे, लेकिन पुनः सेना में भर्ती होने के लिए प्रयास आरंभ कर देते थे.

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कुमाउ रेजिमेंट सेन्टर रानीखेत में सेना की भर्ती होने वाली थी. बहादुर सिंह ने जैसे ही सुना वह नियत समय में सेना में भर्ती होने के लिए रानीखेत पहुँच गए. इस बार बहादुर सिंह because सेना में भर्ती होने के लिए बहुत आत्म विश्वास था. बहादुर सिंह ने रानीखेत में भर्ती की शारिरीक मानकों को पूरी सफलता के साथ पूर्ण कर लिया था, लेकिन रानीखेत में भी वह चिकित्सा परिक्षण में अस्फल हो गए. रानीखेत में भी सेना की भर्ती में असफल होने के कारण इतना अधिक निराश हो गए कि, दुख के कारण उसके आँखों से आँसू निकल पढ़े थे.

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बहादुर सिंह को भर्ती न होने के कारण, दुखी होकर आँसू बहाता देखकर कुमाउ सेन्टर रानीखेत में कार्यरत सूबेदार बंसत राम को उनसे सहानुभूती उत्पन्न हुई. उदार दिल के सूबेदार साहब बहादुर सिंह से उसके गाँव घर के बारे में पूछने लगे. बहादुर because सिंह ने जब कहा कि वह गंगोलीहाट के रावलखेत गाँव का रहने वाले है, सूबेदार बसंत राम रावलखेत गाँव के निकट गाँव दौला के रहने वाले थे, सूबेदार साहब को बहादुर सिंह के अपने निकट गाँव का जानकर बहादुर सिंह के प्रति सहानुभूति उत्पन्न हो गयी. सूबेदार साहब ने बहादुर सिंह की सेना में जाने की शौक को देखते हुए, रानीखेत सैन्टर में रहने-खाने का प्रबन्ध करवा दिया, ताकि बहादुर सिंह सेना में भर्ती होने के लिए तैयारी करता रहे.

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रानीखेत कुमाउ रेजिमेन्ट सैन्टर में रहते हुए बहादुर सिंह को बहुत अधिक लाभ हुवाँ, वह रानीखेत कुमाउ सैन्टर में प्रशिक्षण लेते हुए रंगरूटों को देखते, रंगरूटों को प्रशिक्षण दे रहे because उस्तादों को प्रशिक्षण देने का ढ़ग देखते और सैनिकों की रोजाना की गतिविधियों को बड़ी गहराई के साथ देखते और  अपने आप को मानसिक रुप से,सेना में जाने के लिए ओर अधिक तैयारी करते थे. बहादुर सिंह को वहाँ रहते हुए सेना की भर्ती किस स्थान में है, किस दिन है, इसकी सूचना का पता चल जाता था. इस दौरान सूबेदार बसंत राम बहादुर सिंह का हौसला बढ़ाते रहते थे.

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बहादुर सिंह की आयु भर्ती होने की आयु सीमा से अधिक होने वाली थी, यह सोचकर कभी बहुत चिन्तित हो जाता था. तभी बहादुर सिंह को एक दिन पिथौरागढ़ के भर्ती कार्यालय में सेना भर्ती की जानकारी प्राप्त हुई. बहादुर सिंह तुरंत ही सूबेदार बसंत राम को हृदय से धन्यवाद कर पिथौरागढ़ के लिए प्रस्थान कर गए.because बहादुर सिंह के पास सेना में भर्ती होने का यह अंतिम अवसर था, क्योकि इसके पश्चात उसकी आयु, भर्ती होने के लिए सीमा से अधिक हो जाने वाली थी. बहादुर सिंह सेना में भर्ती होने के दृढ विश्वास के साथ पिथौरागढ़ पहुँच गए. निश्चित तिथि के अनुसार भर्ती कार्यालय पिथौरागढ़ में सेना में भर्ती हेतु प्रक्रिया आरंभ हुई, भर्ती होने के इच्छुक नवयुवक लाइन में लगे हुए अपनी बारी की प्रतिक्षा में लगे हुए थे.

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बहादुर सिंह भी बड़े ही आत्मविश्वास के साथ लाइन में लगा हुए थे. जैसा कि इससे पूर्व सेना की भर्तियों में बहादुर सिंह शारिरीक नाप-तौल, दौड़, दण्ड-बैठक में आसानी के साथ सफल हो जाते थे, लेकिन चिकित्सा परिक्षण में असफल हो जाते थे. इस बार भी बहादुर भर्ती की प्रारंभिक परीक्षण में सफल हो गए थे, अब शेष रह because गई थी चिकित्सा जांच. अब तक सेना में भर्ती होने के लिए आये हुए नवयुवकों में आधे से अधिक दौड़ में नियत मांप दंडों को पूर्ण न करन के कारण प्रक्रिया से बाहर हो चुके थे. और कुछ शारिरीक नाप-तौल में बाहर हो चुके थे. अब कुछ ही नवयुवक चिकित्सा परीक्षण के लिए शेष थे, उन भाग्यशाली नवयुवकों में बहादुर सिंह भी एक थे.

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सेना के चिकित्सक अब तक के परीक्षण में सफल नवयुवकों की बड़ी गहनता के साथ चिकित्सा जांच कर रहे थे. जैसे जैसे नवयुवक की जांच हो रही थी, कोई नवयुवक पूर्णतया सफल हो जाता तो सभी नवयुवकों को संबल मिल जाता था, एक नई आशा का संचार मिल जाता था. अगर कोई नवयुवक चिकित्सा के अंतिम परीक्षण because में असफल हो जाता था तो उस नवयुवक के साथ अन्य प्रतिक्षारत नवयुवक भी निराश हो जाते थे. बहादुर सिंह बड़ी बेचैनी के साथ अपना नंबर आने की प्रतिक्षा कर रहे थे. उनका दिल लगातार धड़क रहा था. जैसे ही बहादुर सिंह का चिकित्सा परीक्षण के लिए नाम पुकारा गया वह अपने ईष्टदेव तथा अपने माता पिता का नाम स्मरण करके सेना के चिकित्सा अधिकारी के समक्ष अपनी चिकित्सा परीक्षण के लिए दृढ़ता के साथ खड़े हो गए.

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सेना के चिकित्सा अधिकारी ने because बहादुर सिंह के देह का पूर्ण रुप से परीक्षण किया और बहादुर सिंह प्रत्तेक परीक्षण में सफल हो गए. बहादुर सिंह की प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा, उनका भारतीय सेना का सैनिक बनने का स्वप्न पूरा हो गया था. बहादुर सिंह 25 अगस्त सन् 1996 को भारतीय सेना की पैराशूट रेजिमेन्ट में भर्ती हो गए.

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पैराशूट रेजिमेन्ट ट्रेनिंग सैन्टर बंगलौर में बहादुर सिंह ने अपनी रंगरुटी ट्रेनिंग का आरंभ किया. बहादुर सिंह ने अपने शरीर को पहाड़ में जन्म से लेकर युवावस्था तक परिश्रम से संघर्ष करते हुए, तपा -तपा कर “डासी ढुंगे” की तरह कठोर और शक्तिशाली बना रखा था. बहादुर अपने नाम के अनुरुप बहादुरी से अपनी रंगरुटी की ट्रेनिंग कर रहे थे, उनको किसी प्रकार की परेशानी नही हो रही थी. पैराशूट रेजिमेन्ट में सेना की अन्य रेजिमेन्टों की तुलना में अधिक कठोर टेªनिंग होती हैं. because बहादुर सिंह ने बहुत उत्साह व साहस के साथ अपनी रंगरुटी की ट्रेनिंग को पूर्ण किया. रंगरुटी ट्रेनिंग पूर्ण करते ही बहादुर सिंह को सन् 1997 में एक माह की हवाई जहाज से पैराशूट के साथ जम्प करने की ट्रेनिंग के लिए आगरा में भेजा गया. इस ट्रेनिंग को करने के बाद बहादुर सिंह पैराशूट रेजिमेन्ट का पक्का सिपाही बन गए थे.  पैराशूट रेजिमेन्ट का सिपाही बनते ही बहादुर सिंह का स्थानान्तरण 10वीं  बटालियन पैराशूट रेजिमेन्ट (विशेष बल) में हो गया.

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10वीं बटालियन पैराशूट रेजिमेन्ट (विशेष बल) का इतिहास भारतीय सेना में एक गौरवशाली रेजिमेन्ट के रुप में होता है. वीरता, पराक्रम, शौर्यशली तथा साहसिक कार्यो से 10वी बटालियन पैराशूट रेजिमेन्ट का इतिहास परिपूर्ण है. इस रेजिमेन्ट का सिपाही बनना सेना में भर्ती हुवा प्रत्तेक नवयुवक अपना परम सौभाग्य समझता है. देश के अन्दर आतंकवादी तथा देशद्रोही गतिविधियों को कुचलने में because इस रेजिमेन्ट की प्रमुख भूमिका रही है. बहादुर सिंह बोहरा ने 10वीं बटालियन पैराशूट रेजिमेन्ट का सिपाही बनने पर अपने आप को परम सौभाग्यशाली माना. बहादुर सिंह ने बटालियन में आने के पश्चात शारीरिक रुप से दक्ष होने के लिए तीन महिने का कमांडो कोर्स पूर्ण किया. कोर्स करने के पश्चात बहादुर सिंह एक बेहतरीन कमांडो बन गए थे.

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पर्वत पुत्र बहादुर सिंह 10वीं बटालियन का अंग बनने के पश्चात उत्साह के साथ अपनेे उत्तरदायित्व को पूरा किया करते थे. आतंकवादीं तथा देशविरोधी गतिविधियों से निपटने में बहादुर सिंह ने बहुत अच्छी कुशलता प्राप्त करली थी, इसलिए बहादुर सिंह ने चयन होकर 4 विकास में भी अपनी सेवायें दी. अनुशासन से रहना because और अपने ज्येष्ठ पदाधिकारी का आज्ञा पालन करना उनके रक्त की प्रत्तेक बूंद में बसा हुवा था. इसी कारण वह अपने कनिष्ठों के लिए एक प्रेरणादायक आदर्श थे और ज्येष्ठों के लिए सर्वश्रेष्ठ थे. बहादुर सिंह अपनी बटालियन के साथ कश्मीर के उग्रवाद ग्रस्त क्षेत्रों में अधिक रहा. आतंकवादियों के विरुद्ध अनेक सैन्य अभियानों में वह अपनी बटालियन के अंग रहे.

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सन् 1998 में बहादुर सिंह कुपवाड़ा में तैनात थे उस समय उनकी शादी मनगड़ गाँव के सभ्रांत परिवार की कन्या शान्ति देवी के साथ संपन्न हुई. बहादुर सिंह का सैनिक जीवन व गृहस्थ जीवन बहुत अच्छा व्यतीत हो रहा था. इसी मघ्य बहादुर सिंह को समय अंतराल में पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुवा, वह दो कन्याओं मानसी तथा because साक्षी के पिता बने, वह  पति व पिता के रुप में श्रेष्ठ तथा अनुकरण्ीय थे. जैसे-जैसे बहादुर सिंह का सैनिक जीवन आगे की ओर अग्रसर हो रहा था वह सर्वश्रेष्ठ होते जा रहे थे. बहादुर सिंह हमेशा प्रसन्नचित्त रहते थे साथ ही वह अपने गाँव घर के समाज में और अपने सैनिक साथियों के मघ्य मिल-जुलकर रहते थे.

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सन् 1999 में कारगिल में पाकिस्तान के घुसपैठियों ने शीतकाल में  कुछ सामरिक रुप से महत्वपूर्ण चोटियों में कब्जा कर लिया था. शत्रु की इस प्रकार की नापाक हरकत का पता चलते ही हमारे देश की सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए, सन् 1999 में मई के प्रथम सप्ताह कार्यवाही आरंभ कर दी थी. बहादुर सिंह की because 10वीं बटालियन पैराशूट रेजिमेंट भी करगिल में दुश्मन कें विरुद्ध मोर्चा लेने के लिए कारगिल पहुँच गयी थी. कारगिल युद्ध में बहादुर सिंह भी अपनी बटालियन के साथ इस विजय युद्ध में सम्मिलित थे. कारगिल में पाकिस्तानी आतंकवादी घुसपैठियों के विरुद्ध मई महिने में आरंभ हुए युद्ध और  जुलाई महिने में, शत्रु के उपर विजय प्राप्त करने के उपरांत, समाप्त हुए कारगिल युद्ध में, बहादुर सिंह साहस और पराक्रम के साथ पाकिस्तानी घुसपैठियों के विरुद्ध युद्ध लड़े थे.

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सेना में अपने परिश्रम, ईमानदारी तथा वफादारी का उच्च उदाहरण पेश करते हुए बहादुर सिंह सन् 2006 में नायक के पद में पदस्थ हो गए थे. जैसे ही कोई सैनिक उच्च पद में पदस्थ होता है तो उसको ओर अधिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करना पढ़ता है. नायक पद प्राप्त होते ही बहादुर सिंह ओर अधिक आत्मविश्वास के साथ अपने सैनिक जीवन के कार्यो को पूरा करने लगे. सन् 2008 में वह में वह अपनी बटालियन के साथ आतंकवाद ग्रस्त कश्मीर के बांदीपुरा में तैनात थे. because धर्म को आधार बनाकर कश्मीर में धर्मान्ध अलगाववादी संगठन हमारे सुरक्षा बलों को, अल्पसंख्यंक धर्मालम्बियों को चाहे वह प्रवासी मजदूरों हो, सराकारी कर्मचारी हो, व्यापारी हो या पर्यटक, उन सब को अपनी गोली का निशाना बना रहे थे. उस समय कश्मीर में स्थानीय आतंकवादियों का साथ दे रहे पाकिस्तानी आतंकवादी अपनी पाशविक क्रूरता तथा हिंसात्मक कार्यवाहियों से, संपूर्ण कश्मीर घाटी में भय और आतंक का वातावाण उत्पन्न कर रहे थे. हमारे देश के सुरक्षा बल के जवान अपनी प्राणों की परवाह न करते हुए आतंकवादियों के हिसां के मंसूबों को असफल कर रहे थे.

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सितंबर माह सन् 2008 में सेना को विश्वस्त सूत्रों से पता कि 14 आतंकवादियों का एक दल, कश्मीर के 14000 फुट की ऊँचाई में स्थित सोलवन क्षेत्र में सीमा पार करके because हमारे देश के अन्दर आने की फिराक में हैं. आतंकवादियों ने उस उस जोखिम भरे क्षेत्र से सीमा पार करने कंे लिए शायद सुरक्षित समझा था, क्योकि सोलवन क्षेत्र की चोटियाँ उस समय बर्फ से पट गयी थी. लेकिन हमारे देश की सेना की दृष्टी एल ओ सी के चप्पे-चप्पे में गढ़ी हुई थी, चाहे वह क्षेत्र कितना ही ऊँचाई में स्थित बर्फ से पटा हुवा, दुर्गम एवंम अति विकट हो.

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सेना के निर्देशानुसार 10वीं बटालियन पैराशूट रेजिमेन्ट के कमांडो को  14 घुसपैठ के लिए तैयार आतंकवादियों के दल को रोकने तथा उनके अभियान को असफल करने का आदेश because दिया गया. बटालियन कमांडर के आदेशानुसार पाँच कमांडो आक्रमण दल बनाकर, सोलवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से आतंकवादियों को घेरने की योजना बनाई गयी. पाँच कमांडो आक्रमण दल में से किसी कमांडो आक्रमण दल को पैदल मार्ग स,े तो किसी कमांडो आक्रमण दल को वायु मार्ग से सोलवन के क्षेत्र में भेजा गया.

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वायुमार्ग से जाने वाली एक कमांडो आक्रमण दल में स्क्वाड कमांडर के तौर पर हवलदार बहादुर सिंह भी था, सोलवन क्षेत्र के चिन्हित किये गए स्थान में हैलीकाफ्टर से कमांडो आक्रमण दल उतर गया. योजना के अनुरुप कमांडो आक्रमण दल में से प्रत्तेक स्क्वाड को, आतंकवादियों को घेरने के उद्देश्य से उत्तरदायित्व सौंपा गया. because स्क्वाड कमांडर हवनदार बहादुर सिंह को लावांज क्षेत्र में अग्रिम तलाशी अभियान में जाने का आदेश दिया गया. हवलदार बहादुर सिंह सशस्त्र अपने स्क्वाड के साथ तलाशी अभियान के लिए तुरंत ही प्रस्थान कर गए.

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हवलदार बहादुर सिंह लावांज क्षेत्र में अपने स्क्वाड के साथ बहुत गहनता के साथ उस क्षेत्र को देख रहे थे. 14000 फिट की ऊँचाई में ठंड के साथ सर्द भरी हवायें चल रही थी, लेकिन हवलदार बहादुर सिंह की आँखें बाज की तरह अपने स्क्वाड के साथ because चारों दिशाओं में आतंकवादी दल को खोजने में लगी हुई थी. हो सकता है आतंकवादी दल छुपते हुए आ रहा हो. तभी लगभग सायं के 0615 बजे हवलदार बहादुर सिंह एवंम उनके स्क्वाड ने अचानक ही मात्र 50 मीटर से भी कम दूरी में तीन आतंकवादियों को देख लिया था, चिते की तरह तेजी से हवलदार बहादुर सिंह ने पोजिशन ले ली और अपनी राईफल से आतंकवादियों के उपर गोलियाँ बरसाने लगे. उन्होंने एक आतंकवादी को मार गिराया लेकिन स्वंय भी घायल हो चुके थे, उनका बांया कंधा आतंकवादियों की गोलियाँ लगने के पश्चात गहरे घाँव लगने से छलनी हो गया था.

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घायल हवलदार बहादुर सिंह के बांये कंधे से बहुत अधिक रक्त स्राव हो रहा था, उनके साथियों ने उनको सुरक्षित स्थान में ले जाने का प्रयास किया, लेकिन हवलदार बहादुर सिंह ने सुरक्षित स्थान में जाने से मना कर दिया. हवलदार बहादुर सिंह बहुत अधिक घायल थे, घायल होते हुए भी वह अंतिम सांस रहने तक, आतंकवादियों को because यमलोक पहुँचाना चाहते थे. बहादुर सिंह और आतंकवादियों के मध्य यह युद्ध लगभग 30 से 35 मीटर के मध्य हो रहा था, रात के लगभग 11 बजे तक आतंकवादियों और बहादुर सिंह के स्क्वाड के मध्य मुठभेड़ चलती रही, एक प्रकार से आमने-सामने के युद्ध में बहादुर सिंह ने शेष बचे हुए दो आतंकवादियों को मार गिराया. आतंकवादियों के सफाये के पश्चात ही मुठभेड़ समाप्त हुई. हवलदार बहादुर सिंह ने आतंकवादियों को मृत्युलोक पहुँचा तो दिया, लेकिन बहुत अधिक रक्त स्त्राव के कारण स्वंय अपनी मृत्यु को वरण कर लिया.

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राष्ट्र रक्षा में सैनिक धर्म का पालन करते हुए अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले हवलदार बहादुर सिंह बोहरा को सरकार ने मरणोपरांत शांतिकाल के सर्वोच्च वीरता पुरुस्कार अशोक because चक्र देने की घोषणा की. हमारे देश की तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील से  26 जनवरी सन् 2009 को हवलदार बहादुर सिंह बोहरा की धर्मपत्नी श्रीमती शांति देवी ने अशोक चक्र ग्रहण किया.

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शहीद हवलदार बहादुर सिंह बोहरा जैसे वीर सपूत बलिदानी को जन्म देने वाली महान विरागंना माता श्रीमति देवकी देवी के विचार भी महान व प्रेरणादायक है. शहीद हवलदारbecause बहादुर सिंह बोहरा की पुण्यतिथि 26 सितंबर 2021 के दिन पूर्व सैनिक संगठन पिथौरागढ़ के पूर्व सैनिक जब शिष्टाचारवश माता जी से मिले तो माता जी ने यह उद्धगार व्यक्त किए,

”म्येरो च्योलो बहादुर नै ग्यो छ, because त मैं एक बहादुरा का बदला इतुक ज्यादा बहादुर च्याला मिलि ग्यान!“ ( मेरा बेटा बहादुर चले गया है तो उसके बदले में मुझे कई बहादुर बेटे मिल गए हैं.)

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जिला पिथौरागढ़ के दूर दुर्गम क्षेत्र के रावलखेत गाँव के सपूत शहीद हवलदार बहादुर सिंह बोहरा ने अति विकट परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए अपना सैनिक बनने का सपना पूरा because किया था. आर्दश एवंम अनुशासित सैनिक बनने के पश्चात, देश के लिए स्वंय बलिदान भी हो गए. उनके शहीद होने के पश्चात राज्य के सत्ताधारी दल के नेताओं  द्वारा 35 किलोमीटर सड़क बनाने घोषणा की गयी थी. ताकि जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ से रावलखेत गाँव की दूरी मात्र 50 किलोमीटर रह जाएगी, जिससे रावलखेत गाँव वासियों को अति शीघ्र जिला मुख्यालय आने-जाने की सुविधा मिल जाएगी.  लेकिन वह घोषणा प्रिंट मिडीया, इलैक्टोनिक मिडीया में प्रचार करने तक सीमित रही, धरातल में शून्य.

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आज भी रावलखेत गाँव के because ग्रामवासियों की सरकार से प्रार्थना है कि, रावलखेत गाँव से कमतोली तक मात्र 10 किलोमीटर तक सड़क का निर्माण, शहीद हवलदार बहादुर सिंह बोहरा के निमित्त कर दिया जाय तो रावलखेत के ग्रामवासी सरकार का बहुत आभार प्रकट करगें.

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(लेखक सेना से सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हैं. एक कुमाउनी काव्य संग्रह बाखली व
हिंदी कहानी संग्रह गलोबंध प्रकाशित
. कई राष्ट्रीय पत्रपत्रिकाओं में कहानियां एवं लेख प्रकाशित.)

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