सीएसआईआर–आईएचबीटी, पालमपुर द्वारा की पहल
- जे.पी. मैठाणी/हिमाचल ब्यूरो
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) (World Health Organization (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 422 मिलियन लोग मधुमेह से पीड़ित हैं. अतिरिक्त गन्ना शर्करा के सेवन से इंसुलिन प्रतिरोध, टाइप 2 मधुमेह, यकृत की समस्याएं, चयापचय सिंड्रोम, हृदय रोग आदि जैसी अनेक जानलेवा बीमारियां हो सकती हैं. इस संबंध में, कम कैलोरी मान के कई सिंथेटिक मिठास वाले पदार्थ हाल ही में फार्मास्युटिकल और खाद्य उद्योगों ने बाज़ार में उतारे हैं. हालांकि, आम तौर पर उनके संभावित स्वास्थ्य संबंधी कारणों के चलते उनकी व्यापक स्वीकार्यता को सीमित करती है. इसलिए, दुनिया भर के वैज्ञानिक सुरक्षित और गैर-पोषक प्राकृतिक मिठास के विकास पर लगातार काम कर रहे हैं.
ज्योतिष
यह पौधा लगभग 16-20 डिग्री सेल्सियस के वार्षिक औसत तापमान और आर्द्र परिस्थितियों वाले पहाड़ी क्षेत्र को पसंद देता है, इसलिए, हिमाचल प्रदेश इसकी बड़े पैमाने पर खेती के लिए
उपयुक्त स्थान पाया गया है. करता है. प्रारंभ में इस परियोजना को सीएसआईआर, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया था.
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मॉन्क फल (सिरैतिया ग्रोसवेनोरी), दुनिया भर में अपने तीव्र मीठे स्वाद के लिए जाना जाता है, और इसे गैर-कैलोरी प्राकृतिक स्वीटनर के रूप में उपयोग किया जाता है. मॉन्क फल का मीठा स्वाद मुख्य रूप से कुकुर्बिटेन-प्रकार ट्राइटरपीन ग्लाइकोसाइड के समूह की सामग्री से होता है जिसे मोग्रोसाइड्स कहा जाता है, और मोग्रोसाइड्स
का निकाला गया मिश्रण सुक्रोज या गन्ना चीनी से लगभग 300 गुना मीठा होता है. शुद्ध किए गए मोग्रोसाइड को जापान में एक उच्च-तीव्रता वाले मीठे एजेंट तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘गैर-पोषक स्वीटनर’ स्वाद बढ़ाने और खाद्य सामग्री के रूप में मान्यता प्राप्त है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में मॉन्क फल की मांग धीरे-धीरे बढ़ रही है. उच्च मांग के बावजूद, इस फसल की खेती केवल चीन में ही की जाती है. हालाँकि, भारत, विशेषकर हिमाचल प्रदेश में उपयुक्त कृषि जलवायु परिस्थितियाँ उपलब्ध हैं.ज्योतिष
भारत में गैर-पोषक प्राकृतिक स्वीटनर और विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियों के महत्व और अनिवार्यता को ध्यान में रखते हुए, डॉ संजय कुमार, निदेशक, सीएसआईआर-आईएचबीटी ने उचित चैनल के माध्यम से देश में मॉन्क फल शुरू करने के अथक प्रयास किए. अंत में, मार्च 2018 को आईसीएआर-एनबीपीजीआर, नई दिल्ली के माध्यम से
चीन से देश में पहली बार मॉन्क फल (आयात परमिट संख्या 168/2017) के बीज मँगवाए. डॉ. प्रोबीर कुमार पाल, प्रधान वैज्ञानिक और संस्थान से उनके सहयोगि वैज्ञानिकों ने गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री, खेती के लिए बुनियादी कृषि संबंधी सूचना, फलने की तकनीक और कटाई के बाद की तकनीक के लिए प्रौद्योगिकी विकसित की. वर्तमान में, अच्छी गुणवत्ता वाले फलों की उपज के साथ, सीएसआईआर-आईएचबीटी में खेत की परिस्थितियों में मॉन्क फल सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है.ज्योतिष
यह पौधा लगभग 16-20 डिग्री सेल्सियस के वार्षिक औसत तापमान और आर्द्र परिस्थितियों वाले पहाड़ी क्षेत्र को पसंद देता है, इसलिए, हिमाचल प्रदेश इसकी बड़े पैमाने पर खेती के लिए उपयुक्त सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया था. हालांकि, अब राज्य में इसकी खेती को हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद (हिमकोस्ट) (Himachal Pradesh Council of Science, Technology and Environment (HIMCOSTE)), शिमला से प्रापत वित्तीय सहायता से बढ़ावा दिया जा रहा है.
स्थान पाया गया है. करता है. प्रारंभ में इस परियोजना को सीएसआईआर, भारतज्योतिष
सीएसआईआर-आईएचबीटी ने
फील्ड परीक्षण और सामाजिक लाभ के लिए मॉन्क फलों के 50 पौधे (मुफ्त) में प्रदान किए. इसके अलावा, सीएसआईआर-आईएचबीटी के वैज्ञानिकों ‘डॉ. प्रोबीर कुमार पाल’ और ‘डॉ. रमेश कुमार’ ने इस अवसर पर किसानों को मॉन्क फलों की खेती के लिए प्रशिक्षित किया और इसके प्रदर्शन भूखंड को भी स्थापित किया.
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डॉ. संजय कुमार, निदेशक, सीएसआईआर-आईएचबीटी ने 12 जुलाई 2021 को रायसन, कुल्लू में प्रगतिशील किसान (श्री मानव खुल्लर) के खेत में इसकी पौध लगाकर हिमाचल प्रदेश में मॉन्क फलों की खेती के कार्यक्रम की शुरुआत की. श्री निशांत ठाकुर, सदस्य सचिव, हिमकोस्ट भी इस वृक्षारोपण के समय उपस्थित थे.
इस अवसर पर, सीएसआईआर-आईएचबीटी, पालमपुर ने श्री मानव खुल्लर, गावँ व डाकघर रायसन, जिला कुल्लू (हि.प्र.) के साथ सामग्री हस्तांतरण समझौते पर भी हस्ताक्षर किए. सीएसआईआर-आईएचबीटी ने फील्ड परीक्षण और सामाजिक लाभ के लिए मॉन्क फलों के 50 पौधे (मुफ्त) में प्रदान किए. इसके अलावा, सीएसआईआर-आईएचबीटी के वैज्ञानिकों ‘डॉ. प्रोबीर कुमार पाल’ और ‘डॉ. रमेश कुमार’ ने इस अवसर पर किसानों को मॉन्क फलों की खेती के लिए प्रशिक्षित किया और इसके प्रदर्शन भूखंड को भी स्थापित किया.