भिलंगना घाटी के मसीहा : हिमालय गौरव इन्द्रमणि बडोनी

सूर्य प्रकाश सेमवाल

पश्चिम के मीडिया ने ज़िंदा और चलते फिरते गाँधी की उपमा जिस सामाजिक, सांस्कृतिक,आध्यात्मिक और राजनीतिक विभूति को दी थी, वह कोई और न ही हिमालयी व्यक्तित्व स्वर्गीय इन्द्रमणि बडोनी थे. यही कारण है कि देश के गांधी की तरह बेशक पहाड़ के गांधी के संकल्पों और मुद्दों को हाशिये पर पहुंचा दिया गया हो लेकिन अपने विराट एवं उदात्त व्यक्तित्व तथा सादगी व सहज व्यवहार के लिए सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए ही नहीं वरन् सामान्य जनमानस के लिए भी सदैव प्रेरणाप्रद एवं वदनीय बने रहेंगे.

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अपने अनुकरणीय आचरण, शैक्षणिक जागरूकता,  कुशल नेतृत्व क्षमता एवं निश्च्छल कार्यशैली के बल पर बडोनी जी ने दलगत व क्षेत्रीय भावना से ऊपर होकर समूचे पहाड़ी क्षेत्र because में अपनी एक विशेष पहचान व साख बनाई थी. वे अपनी कर्मभूमि भिलंगना घाटी के गंगी गाँव से लेकर पौड़ी, चपावत, अल्मोड़ा के सुदूर गांवों की तरह देहरादून,लखनऊ और दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में ही नहीं बल्कि पूरे देश में उत्तराखंडी समाज के लोगों के बीच आदरणीय बने रहे.

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गंगी गाँव से खतलिंग धाम because के मार्ग को पांडवों के स्वर्गारोहण वाला मार्ग बताने वाले बडोनी जी ने भगवान् भोलेनाथ के पावन स्थल खतलिंग को उत्तराखंड का पांचवां धाम घोषित किया था.

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पृथक उत्तराखंड आंदोलन के पुरोधा व उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापकों में एक जनता के जेन्युइन नेता बडोनी जी का जन्म तो टिहरी जनपद की सर्वथा उपेक्षित हिन्दाव पट्टी, उस समय के जखोली विकासखण्ड में हुआ था, लेकिन उनकी लीलाभूमि अथवा कर्मभूमि भिलंगना घाटी रही. जहां घुत्त्तू में भिलंगना नदी के पावन तट और प्राचीन श्री because रघुनाथ मंदिर के निकट उन्होंने जन सहयोग से पहला ज्ञान का मंदिर-श्री नवजीवन आश्रम विद्यालय घुत्तू स्थापित किया, जहाँ से ज्ञान की धारा बहाकर उन्होंने इस अन्धेरी पट्टी में रौशनी फैलाई. इस घाटी में विद्यमान धार्मिक स्थल, प्राचीन सिद्धपीठ और सुरम्य प्राकृतिक स्थल बडोनी जी को आकर्षित करते थे. तिब्बत से सटे खतलिंग धाम–सहस्रताल को आस्था और पर्यटन विकास का केंद्र बनाने के साथ टिहरी के अंतिम जनजातीय गाँव गंगी को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की दूरदर्शी सोच बडोनी जी ने अस्सी के दशक में ही दुनिया को बता दी थी.

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केदारनाथ के परम्परागत यात्रा मार्ग में पड़ने वाले अप्रतिम हरियाली से युक्त पंवाली बुग्याल को पर्यटन पहचान दिलाने के साथ शीतकालीन खेलों का केंद्र बनाने का उन्होंने प्रयास किया. because गंगी गाँव से खतलिंग धाम के मार्ग को पांडवों के स्वर्गारोहण वाला मार्ग बताने वाले बडोनी जी ने भगवान् भोलेनाथ के पावन स्थल खतलिंग को उत्तराखंड का पांचवां धाम घोषित किया था.

स्व. इन्द्रमणि बडोनी ने राष्ट्रपिता अपनी अद्भुत क्षमता एवं अप्रतिम प्रतिभा के बल पर समूचे उत्तराखंड में लोकजागरण का अभियान चलाने वाले बडोनी जी के दृढ़ निश्चय, संकल्प शक्ति व because व्यापक आंदोलन का ही सुपरिणाम था कि आधी सदी से चल रही पृथक राज्य उत्तराखंड की माँग स्वीकार हो पाई. जिस प्रकार देश की आजादी का आनंद  राष्ट्रपिता गाँधी नहीं उठा पाए उसी प्रकार उत्तराखंड के जनक बडोनी जी भी नए राज्य का सुख नहीं देख पाए.

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मेरे पिताजी (आचार्य नत्थीलाल शास्त्री) पूरे टिहरी जनपद में प्रतिष्ठित कथा-व्यास रहे हैं और नजदीकी रिश्तेदारी होने के कारण बडोनी जी से उनकी आत्मीयता व घनिष्ठता बहुत अधिक थी. because भिलंग पट्टी के गंगी गाँव हो अथवा बासर या हिन्दाव पट्टी, बडोनी जी यथावसर पिताजी के मुख से भागवत की कथा सुनने अवश्य पहुंचते थे.

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स्व. बडोनी जी को निकट से देखने के साथ ही लगभग एक दशक तक उनकी आत्मीयता और सान्निध्य प्राप्ति का गौरव मिला इसी कारण अपने इस प्रथम पेरणापुरुष का चिन्तन,  संकल्प और स्वप्न अपना सा लगता है. बाल्यावस्था से ही बडोनी जी के भव्य ललाट और दिव्य मुखाकृति के साक्षात दर्शन प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त रहा. आज उनके because सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं शिक्षाविद् रुपी बहुआयामी व्यक्तित्व का जब स्मरण आता है तो स्वयं को धन्य महसूस करता हूँ. वर्ष 1982 में श्री नवजीवन आश्रम माध्यमिक विद्यालय घुत्तू भिलंग में जब मैंने छठी कक्षा में प्रवेश लिया था तभी से इस विद्यालय के विभिन्न सांस्कृतिक समारोहों-15 अगस्त, 26 जनवरी, वार्षिक समारोह, रामलीला व खतलिंग महायात्रा में संरक्षक व प्रबंधक के नाते बडोनी जी उपस्थित रहते थे. वे हम छात्रों की कापियों का निरीक्षण भी करते थे. इन अवसरों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम व भाषण देने वाले हम प्रतिभागियों का उत्साह भी बढ़ाते थे.

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मेरे पिताजी (आचार्य नत्थीलाल शास्त्री) पूरे टिहरी जनपद में प्रतिष्ठित कथा-व्यास रहे हैं और नजदीकी रिश्तेदारी होने के कारण बडोनी जी से उनकी आत्मीयता व घनिष्ठता बहुत अधिक थी. भिलंग पट्टी के गंगी गाँव हो अथवा बासर या हिन्दाव पट्टी, बडोनी जी यथावसर पिताजी के मुख से भागवत की कथा because सुनने अवश्य पहुंचते थे. शायद यही कारण था कि एक समय इसी विद्यालय में पिताजी को भाषा अध्यापक के रूप में नियुक्त कर बडोनी जी ने बाद में उन्हें पूर्णकालिक कथा प्रवचन कार्य का परामर्श दिया था और वर्ष 1992 में भारतीय थलसेना में धर्मशिक्षक पद पर नियुक्त होने से पूर्व पिताजी ने अक्षरशः बडोनी जी की सलाह को अंगीकार किया था.

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भिलंगना जनपद में समय-समय पर होने वाली रामलीला, पाण्डवलीला तथा माधोसिंह भण्डारी इत्यादि के मंचन व लीलाओं में उनका मार्गदर्शन व सहभागिता निरंतर रोमांचित करती थी. because कई बार स्वयं नृत्य कर वे जनता के साथ उत्साहित व आनंदित होकर अपनी जनप्रियता और सहृदयता का परिचय देते थे.

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घुत्तू विद्यालय के तत्कालीन प्रधानाचार्य श्री बालकृष्ण नौटियाल का सर्वप्रिय शिष्य होने के नाते और पिताजी के कारण मुझमें उनकी व्यक्तिगत रूचि और प्रेम मेरा सौभाग्य था,पढने-लिखने में थोडा ठीक ठाक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाषण, श्लोक व कविता पढने के कारण नौवीं-दसवीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते मैं बडोनी जी का अत्यंत because आत्मीय हो गया था. बडोनी जी हमारे विद्वान् गुरुजनों– संस्कृत के श्री सुरेन्द्र दत्त शास्त्री, गणित के श्री राजेन्द्र प्रसाद डंगवाल, हिन्दी के इन्द्रदत्त शास्त्री, भूगोल के श्री भगवान प्रसाद भट्ट, अंग्रेजी के श्री कमलेश्वर उनियाल,सामाजिक विज्ञानं के श्री चंद्रमोहन पैन्यूली ,कृषि विज्ञान के श्री सुन्दर सिंह पंवार और विज्ञानं के श्री गंगा प्रसाद पैन्यूली इत्यादि गुरुजनों के सम्मुख ही हम छात्रों से उनके पढ़ाने की शैली पर चर्चा करते थे और विद्यालय के प्रत्येक बच्चे से उनका सीधा संवाद और शिक्षक पर नजर होती थी.

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विद्यालय को और बच्चों को सबसे ज्यादा समय देने वाले बडोनी जी का श्रेष्ठ रंगकर्मी और कलाकार का जीवंत रूप भी रह-रहकर याद आता है. भिलंगना जनपद में समय-समय पर होने वाली रामलीला, because पाण्डवलीला तथा माधोसिंह भण्डारी इत्यादि के मंचन व लीलाओं में उनका मार्गदर्शन व सहभागिता निरंतर रोमांचित करती थी. कई बार स्वयं नृत्य कर वे जनता के साथ उत्साहित व आनंदित होकर अपनी जनप्रियता और सहृदयता का परिचय देते थे.

स्व. बडोनी जी एक बड़े शिक्षाविद, राजपुरुष, रंगकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ सनातनी व अघ्यात्मिक वृत्ति के सच्चे संवाहक थे. संध्यावंदन व नित्य नियम के साथ-साथ कई भागवत because कथाओं में वे अर्चक मंडली के मध्य कर्मकाण्ड पर भी चर्चा-परिचर्चा करते थे. संभवतः बडोनी जी के प्रभाव के कारण ही भिलंगना घाटी सहित केमर, वासर, ग्यारहगांव हिन्दाव व नैलचामी पट्टियों में कथावाचक व्यासों की एक अविच्छिन्न परंपरा दिखाई पड़ती है. भिलंगना घाटी के प्रमुख कथावाचकों में आचार्य नत्थीलाल शास्त्री, बासर पट्टी के सत्यानन्द शास्त्री, लोस्तु बड्यारगढ़ के दाताराम शास्त्री तथा डागर पट्टी के विष्णु प्रसाद फोंदणी आदि ऐसे व्यास हैं जिनके जीवन-व्यवहार व आचरण में कहीं न कहीं स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी के सान्निध्य एवं सामीप्य की प्रतिछाया अवश्य दिखाई पड़ती है.

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टिहरी जनपद की भिलंगना घाटी के लिए वास्तव में बडोनी जी मसीहा थे. उन्होंने ही राजशाही के दंश व प्रशासनिक उपेक्षा की शिकार इस अंधेरी घाटी में शिक्षा की मशाल जलाकर लोगों को प्रगति because व विकास का मार्ग दिखाया. खतलिंग-सहस्रताल, पंवाली तथा अंतिम गांव गंगी को पर्यटन मानचित्र पर जगह दिलाने का अभियान छेड़ा. अस्सी के दशक में ऐतिहासिक खतलिंग महायात्रा के श्रीगणेश का वह दृश्य आज भी हमारे सम्मुख जीवंत हो उठता है जब प्रतिवर्ष श्री रघुनाथ मंदिर घुत्तू से खतलिंग की ओर जाने वाली यात्रा से एक दिन पूर्व विद्यालयी सांस्कृतिक समारोह की रात्रि को हम बच्चों के साथ बडोनी जी इस गीत को गाते हुए ढ़ोल की थाप पर थिरकते थे-

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भै मेरा भाणजा because औला तोड्या बौला, भै मेरा भाणजा.
द्वी मामा भाणजा because खतलिंग जौला, भै मेरा भाणजा.
भै मेरा भाणजा चांदी कू so शीशफूल, भै मेरा भाणजा.
भै मेरा भाणजा पैलू-पैलू बासू but घुत्तू स्कूल, भै मेरा भाणजा.

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बडोनी जी स्वयं ग्यारहगांव पट्टी के अखोड़ी गाँव के थे लेकिन उनकी कर्मभूमि भिलंग पट्टी रही. इसलिए आज भी उनके गाँव के लोग यह कहते सुनाई पड़ते हैं कि बडोनी जी ने कुछ किया होगा तो बस भिलंग वालों के लिए किया होगा. यह because प्रमाणित सत्य भी है कि बडोनी जी की उपस्थिति के कारण आठवें दशक में भी सरकारी और प्रशासनिक उपेक्षा के बावजूद भी इस क्षेत्र में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी ऐसी प्रतिभाएं विद्यमान थीं जो अपने कार्य के बल पर दूर-दूर तक अपनी एक विशेष पहचान रखती थीं. ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्वों की एक लम्बी श्रृंखला थी जिसे कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में स्वयं स्व. इन्द्रमणि बडोनी ने प्रेरित किया था.

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वास्तव में यहां के परंपरागत आयुर्वेद वैद्य चाहे सटियाला के जबर सिंह  रौथाण ‘सयाणा’ हों, चाहे छिट्वाल because गांव के दामोदर सेमल्टी या मनसाराम सेमल्टी हों, सामाजिक व्यक्तियों में पनेली के केशर सिंह धनाई या घुत्तू के शरणानन्द तिवारी हों, वजिंगा के गब्बर सिंह राणा, गवाणा के प्रसिद्ध स्वर्णकार रंगथीलाल शाह हों  दर्जियाणा के ढोलवादक नागदास, खाल गाँव के रणसिंघा वादक चूरमणि लाल शाह या मशकबीन वादक भरपुरू शाह हों, बडोनी जी इन सबसे सीधा संवाद करते थे.

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बडोनी जी के पुण्य प्रभाव से इस क्षेत्र में जहां बालसिंह पंवार, अब्बल सिंह चौहान, विद्यादत्त  भट्ट, आचार्य बच्चूराम शास्त्री, जगतसिंह बजियाल, उदय सिंह चौधरी, लक्ष्मी प्रसाद उनियाल, टीकाराम सेमवाल, बालकृष्ण नौटियाल, मातबर सिंह रावत, इन्द्रदत्त शास्त्री, सुरेन्द्र दत्त शास्त्री तथा मानवेन्द्र सिंह राणा जैसे श्रेष्ठ शिक्षकों का निर्माण because हुआ वहीं कालांतर में प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. चन्दन सिंह चैहान व डॉ. धनीलाल शाह, फोरेस्टर गैणालाल शाह, बैंक अधिकारी स्वर्गीय महिपाल सिंह पंवार व गंगा सिंह चौहान, डाककर्मी अमरचंद राणा और अब्बल सिंह भंडारी इत्यादि असंख्य प्रतिभाओं ने बडोनी जी की कृपा से अपनी प्रतिभा के बल पर भरपूर नाम कमाया और भिलंगना घाटी का भी नाम रौशन किया.

बडोनी जी को मैने हमेशा स्थितप्रज्ञ देखा. परिजन और उनसे जुड़े रहे वरिष्ठ सामाजिक-राजनीतिक लोग हम लोगों को बताते थे कि जब वे सामान्य व्यक्ति थे, तब भी वैसे ही थे. जब विधायक because बने तब भी जनता के बीच निरंतर अपनेपन के साथ मौजूद रहते थे  . उनके जीवन के उत्तरार्द्ध में फिर कुछ दिन के लिए उनकी निकटता और आत्मीयता का सौभाग्य हम जैसों को मिला ,वे समूचे पहाड़ के सर्वमान्य और प्रतिष्ठित नेता थे, तब भी उनके व्यवहार में मैंने कोई अंतर नहीं देखा.

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2 अक्टूबर 1994 को लालकिले के पीछे हुए उत्तराखंड आंदोलन की ऐतिहासिक बेला पर इस दिव्य पुरुष का वह आहत स्वरूप भी देखने का दुर्भाग्य प्राप्त हुआ जब हिमालय के प्रतीक because इस विराट पुरुष को आंसू गैस के बीच अकेला जूझता हुआ छोड़ दिया गया. दिल्ली के विश्वविद्यालय शोधार्थियों की संस्था ‘अभिव्यक्ति’ के बैनर तले उपस्थित होकर कई पत्रकारों के सहयोग से स्व. बडोनी जी को सुरक्षित स्थान तक ले जाने का भी हमें संयोग व सौभाग्य प्राप्त हुआ. 

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1986 में मैं घुत्तू विद्यालय छोड़कर ग्यारहवीं कक्षा में दिल्ली आ गया था लेकिन इसके बाद भी समय-समय  पर घुत्तू भिलंग की खतलिंग महायात्रा के साथ-साथ देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, सहारनपुर, दिल्ली अथवा हिन्दाव पट्टी में नाते-रिश्तेदारों के शादी-ब्याह व अन्य कार्यक्रमों में बडोनी जी से निरंतर सम्पर्क होता रहा. पृथक उत्तराखंड राज्य because आन्दोलन में पूर्ण संलग्न रहने,राष्ट्रीय और राज्य स्तर के बड़े अभियानों में सक्रिय रहने के बावजूद विद्यालयों व छात्रों से बडोनी जी का लगाव कम नहीं हुआ. जीवन के अंतिम दिनों तक भी वे भिलंगना घाटी में स्थापित जनता माध्यमिक विद्यालय बुगीलाधार के संरक्षक व प्रबंधक रहे तथा विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री कमलानन्द सेमल्टी को उन्होंने भरपूर सरक्षण और आशीर्वाद देकर एक शिक्षाविद के मिशन को कम नहीं होने दिया.

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2 अक्टूबर 1994 को लालकिले के पीछे हुए उत्तराखंड आंदोलन की ऐतिहासिक बेला पर इस दिव्य पुरुष का वह आहत स्वरूप भी देखने का दुर्भाग्य प्राप्त हुआ जब हिमालय के प्रतीक इस विराट पुरुष को आंसू गैस के बीच अकेला जूझता हुआ छोड़ दिया गया. दिल्ली के विश्वविद्यालय शोधार्थियों की संस्था ‘अभिव्यक्ति’ के बैनर तले उपस्थित because होकर कई पत्रकारों के सहयोग से स्व. बडोनी जी को सुरक्षित स्थान तक ले जाने का भी हमें संयोग व सौभाग्य प्राप्त हुआ.  इसके पश्चात 10-15 दिन तक बडोनी जी भूमिगत रहे. तत्पश्चात् अपने पिताजी  के साथ मैं उन्हें देखने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली गया. उस समय मैनें उन्हें पहली बार उदास, हताश और निराश देखा.

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खतलिंग महायात्रा को पुनः जीवित करने व इसे पर्यटन मान्यता दिलाने का भूत भी इसकी अहम कड़ी है. परमात्मा ने उस विराट पुरुष से अन्तिम मुलाकात जब उनके महाप्रस्थान because समारोह में करवाई तो साथ ही यह संकल्प भी लिया कि बड़ोनी जी के खतलिंग को पांचवां धाम बनाने के सपने को पकड़कर रखेंगे…

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बडोनी जी ने मुझे दिल्ली की तरह अपनी भिलंगना घाटी एवं टिहरी जनपद में भी सामाजिक गतिविधियों में संलग्न रहने का निर्देश दिया. और एक श्रेष्ठ बुजुर्ग के नाते जितना बड़ा आशीर्वाद because हो सकता था मुझे दिया. उनके उन शब्दों को थाती बनाकर निरंतर उत्तराखंड सहित टिहरी व भिलंगना घाटी के सरोकारों से जुड़े रहकर युवाशक्ति को इस विराट व्यक्तित्व के विचार,दर्शन और आदर्श पर चलने का हमारा आह्वान जारी है.

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खतलिंग महायात्रा को पुनः जीवित करने व इसे पर्यटन मान्यता दिलाने का भूत भी इसकी अहम कड़ी है. परमात्मा ने उस विराट पुरुष से अन्तिम मुलाकात जब उनके महाप्रस्थान समारोह में करवाई तो साथ ही यह संकल्प भी लिया कि बड़ोनी जी के खतलिंग को पांचवां धाम बनाने के सपने को पकड़कर रखेंगे, जनप्रतिनिधियों because और सरकारों की उपेक्षा के वावजूद युवाशक्ति और जनता के दम पर ऐतिहासिक खतलिंग  यात्रा के पीछे उस विराट और दूरदर्शी व्यक्ति का जो संकल्प था वह अवश्य सिद्धि तक पहुंचेगा. दिवंगत इन्द्रमणि बडोनी जी के विराट व्यक्तित्व व अदम्य नेतृत्व क्षमता की जो प्रतिछाया बालमन से किशोरावस्था तक तथा कुछ हद तक युवावस्था तक भी प्रतिबिंबित हुई, उसे परम सौभाग्य मानते हुए सहर्ष स्वीकारने में मैं गौरव अनुभव करता हूं.

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निःसन्देह स्व. बडोनी जी को सच्चे अर्थ में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का उत्तराधिकारी व उनके विचारों का संवाहक मानने में इसलिए भी शंका नहीं होती क्योंकि एक पिछड़े गांव व गरीब परिवार में जन्म लेकर अशिक्षा के उस अंधेरे वातावरण में जहाँ कि पूरे पहाड़ में जातिवाद व क्षेत्रवाद की संकीर्णता चहुँओर व्याप्त थी, महात्मा गांधी की शिष्या because मीराबेन से प्रेरणा लेकर ग्राम प्रधान, प्रमुख और विधायक पद ही नहीं सांसद की लड़ाई के निकट तक भी पहुंचकर सर्वस्वीकार्य सर्वमान्य व सर्वत्र उपलब्ध समरसता की प्रतिमूर्ति बनकर बडोनी जी लोकप्रिय और प्रतिष्ठित हुए, देश में दूसरा गांधी जिस प्रकार नहीं आया उसी प्रकार उत्तराखंड में ऐसे गाँधी का फिर से आना महासंयोग और इस राज्य का परम सौभाग्य ही होगा.

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देवभूमि उत्तराखंड के अमर सपूत, पृथक because राज्य के जनक और उपेक्षित भिलंगना घाटी के मसीहा स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी को एक बार पुनः कोटि –कोटि नमन और वंदन…

(लेखक केन्द्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में मीडिया कंसल्टेंट हैं)

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