मेरे लायक…

लघु कथा

डॉ. कुसुम जोशी        

सिगरेट सुलगा कर वो चारों सिगरेट का कश खींचते हुये सड़क के किनारे लगी बैंच में बैठ गये.

एक ने घड़ी देखी, बोला- “चार बज कर बीस मिनट” बस स्कूल की छुट्टी का समय हो गया है. सौणी कुड़िया अब आती ही होंगी”.  बाकि तीन बेशर्म हंसी हंसने लगे.

दूसरा बोला “इतनी सारी लड़कियां ऐसे आती हैं, जैसे बाड़ा तोड़ कर भेड़ बकरियाँ”. समझ में नही आती कि इनमें से मेरे लायक कौन सी है, किसे फाईनल करुं यार…”

तीसरा बोला, “अभी तो सभी को अपने लायक समझा कर, बाकि देख वक्त के साथ देख लेगें”, और सभी ने तेज कहकहा लगाया.

चौथा मुस्कुराता हुआ बोला, “देख लो..जी भर के… नेत्रसुख ले लो… अभी तो यही बहुत है.  इतना सीरियस होने की जरुरत नही… अभी तक कभी पिटे नही, यही मेहरबानी है.

पांचवां शख्स जो समान रूप से चारों के अन्दर विद्यमान था और उन्हें बरसों से जानता था वो अनायास ही बोल पड़ा, “जैसी तुम्हारी हरकतें हैं उस हिसाब से तुम इनमें से किसी के भी लायक  नही हो”.

फिर भी वक्त और उम्र का दौर ऐसा था कि चारों बेशर्म कहकहों के साथ बैठे रहे.

(लेखिका साहित्यकार हैं एवं छ: लघुकथा संकलन और एक लघुकथा संग्रह (उसके हिस्से का चांद) प्रकाशित.
अनेक पत्र-पत्रिकाओं में सक्रिय लेखन.)

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