- अरविंद मालगुड़ी
डॉक्टर रमेश पोखरियल निशंक द्वारा हाल ही में स्वास्थ्य कारणों के चलते शिक्षा मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दिया गया. अच्छा होता कि बेहतरीन ऐतिहासिक शिक्षा नीति देश को देकर निशंक ही
उसे क्रियान्वित करते लेकिन सूत्रों की माने तो वे अपने स्वास्थ्य को इस महत्वपूर्ण मिशन में बाधक नहीं बनना देना चाहते थे. दरअसल शिक्षा नीति की सफलता के लिए समय बद्धता ज़रूरी है. ऐसे में निशंक ने कार्य मुक्त होने का निर्णय लिया.बुग्याल
भारत को ज्ञान आधारित महाशक्ति बनाने और विश्व गुरु के रूप में स्थापित करने के उनके प्रयासों को देश विदेश में जमकर सराहा गया. मुझे नहीं लगता भारत के इतिहास में पहले
ऐसा हुआ हो. सतत संवाद और विश्व के सबसे बड़े परामर्श या कहें मुक्त नवाचार से बनी इस नीति ने सभी हितधारकों की अपेक्षाओं को पूरा किया. कांग्रेसी नेताओं ने भी नीति की प्रशंसा की. शशि थरूर के बाद अब हरीश रावत भी निशंक के कार्यों की सराहना करते दिखे.बुग्याल
विपक्ष के कई नेताओं ने भी नई शिक्षा नीति की तारीफ की और इसका लोहा माना. विश्व के सबसे बड़े परामर्श में देश के विभिन्न राज्यों के राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, शिक्षा मंत्रियों, शिक्षा सचिवों, सांसदों, कुलपतियों, विदेशी विद्वानों, ढाई लाख पंचायतों के साथ
जीवंत संवाद हुआ और उस मंथन का परिणाम यह रहा कि अत्यंत गुणवत्तापरक, नवाचारयुक्त व्यावहारिक शिक्षा नीति धरातल पर आयी. कांग्रेस के दिग्गज पूर्व कैबिनेट मंत्री, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ने डॉक्टर निशंक के इस्तीफ़े पर भावनात्मक पोस्ट डाली जिसकी न केवल उत्तराखंड में बल्कि देश भर में चर्चा हो रही है.बुग्याल
निशंक की कार्यशैली एवं क्षमता के हरदा की पोस्ट बड़ी महत्वपूर्ण हो जाती है. उत्तराखंड की तीन महान विभूतियों की श्रेणी में डॉक्टर निशंक को डालना (गोविंद बल्लभ पंत,
बहुगुणा जी, तिवारी जी) और निर्धन परिवार से शिक्षा मंत्री तक के महत्वपूर्ण पद के प्रादुर्भाव का खाका खींचना निशंक जी की क्षमता के बारे में काफ़ी कुछ कह देता है .बुग्याल
इतिहास इस बात का गवाह है कि चार दशक के अधिक के अपने राजनीतिक सफर में डॉक्टर निशंक ने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों से वैचारिक लड़ाई तो लड़ी पर मतभेद को कभी मन
भेद नहीं होने दिया.अपने पहले चुनाव में जब उन्होंने कर्ण प्रयाग से कांग्रेसी दिग्गज शिवानंद नौटियाल को हराया तबसे लेकर हरिद्वार लोकसभा चुनाव तक डॉक्टर निशंक ने गरिमा, शुचिता व्यक्तिगत विनम्रता का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत किया.बुग्याल
हरदा ज़मीन से जुड़े नेता हैं, हक़ीक़तों से रूबरू हैं. उत्तराखंड क़ी धड़कन को बहुत नज़दीकी से महसूस करते हैं. यही कारण है कि डॉक्टर निशंक के साथ राजनीतिक प्रतिद्वंदता को वो
गौण बताते है.उनके इस्तीफ़े को वो ऐसा बताते हैं जैसे उनसे पद छीन लिया गया हो. ठेठ पहाड़ी अन्दाज़ में श्री रावत ने यह लिखा कि वे निशंक जी को आशीर्वाद नहीं दे सकते, क्योंकि परम्परा अनुसार आशीर्वाद ब्राह्मण ही देता है. अलबत्ता उन्होंने उन्हें सफलता के लिए शुभ कामना ज़रूर प्रेषित की. हरीश रावत की तरह एक बड़ा वर्ग डॉक्टर निशंक जी के जाने से व्यथित है, जो उनकी निरंतर संवाद की और संवेदनशीलता का क़ायल था.बुग्याल
विशेषकर बच्चे दुखी है. आज तक
कितने मंत्रियों ने बच्चों से संवाद किया. कितनों ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में बीमारी की पीड़ा को सहते हुए बच्चों से संवाद को ज्यादा तरजीह दी और उनसकी महत्ता को समझते हुए संबोधित किया. हरदा की पोस्ट जब वाइरल हो रही थी तोबुग्याल
सतत संवाद और रचनाकार की संवेदनशीलता के लिए जाने जाने वाले डॉक्टर निशंक में भी अपने भावपूर्ण शब्दों में उनका उत्तर दिया. बड़े भाई के बड़प्पन के आगे नतमस्तक डॉक्टर निशंक ने छोटे
संतुलित जवाब में यह स्पष्ट कर दिया कि बड़ा भाई सदैव आशीर्वाद दे सकता है और उन्होंने उनसे अपना स्नेह और आशीर्वाद बनाए रखने का निवेदन किया.बुग्याल
आज के राजनीतिक वातावरण में जब एक दूसरे
पर आरोप प्रत्यारोप लगाकर आगे बढ़ कर सत्ता प्राप्ति ही परम लक्ष्य रहा है. इन दोनों दिग्गजों द्वारा व्यक्त भावना उम्मीद के एक नयी किरण दिखाता है.बुग्याल
राजनीति में ऐसे प्रतिमान मुश्किल से
ही देखने को मिलते है. डॉक्टर निशंक स्वस्थ होकर वापसी करेंगे पर एक बात निश्चित है इन उत्तराखंड के सामूहिक हित के लिए प्रतिबद्द इन दोनों दिग्गजों द्वारा परस्पर सम्मान दिए जाने को लम्बे समय तक याद किया जाएगा.(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)