- कमलेश चंद्र जोशी
उत्तराखंड के युवा हमेशा से ही भारतीय सेना में अपनी सेवाएँ दिये जाने के लिए जाने जाते रहे हैं. खासकर गरीब व मध्यम परिवारों के बच्चे जब अपनी ऑफिसर ‘इंडियन मिलिट्री अकादमी’ (IMA) से ऐसे सैकड़ों ऑफ़िसर निकलते हैं जो राष्ट्र की सेवा के लिए ट्रेनिंग ले रहे होते हैं.
ट्रेनिंग पूरी करने के बाद सेना की पासिंग आउट परेड से गुजरते हैं तो वह क्षण न सिर्फ देश व राज्य के लिए गौरव का पल होता है बल्कि उन अफसरों के माता-पिता के लिए जिंदगी बदलने वाला सबसे अनमोल पल भी होता है जिनके लिए सेना में अफसर होना एक तरह का स्वप्न जैसा है. हर वर्षपासिंग आउट परेड
इस वर्ष की पासिंग आउट परेड के बाद देश को 341 जाबांज अफसर मिले हैं जिनमें से 37 उत्तराखंड राज्य से ही हैं. ऑफिसर बनने के इस सफर का सबका अपना-अपना संघर्ष व दुश्वारियाँ होती हैं
लेकिन जब कोई बच्चा उत्तराखंड के किसी जिले के सुदूर गाँव से होता हुआ सेना में लेफ़्टिनेंट के पद तक पहुँचता है तो न सिर्फ उसके जिले व गाँव को एक पहचान मिलती है बल्कि यह जज़्बा भी मजबूत होता है कि गाँव के बच्चे यदि ठान लें तो ऐसा कोई मुकाम नहीं है जिसे वो हासिल नहीं कर सकते.पासिंग आउट परेड
ऐसे ही मजबूत जज़्बे और हौसले की मिसाल हैं चंपावत जिले की भिंगराड़ा ग्राम सभा से ताल्लुक रखने वाले मोहित भट्ट जिन्होंने अपने मजबूत इरादों की बदौलत न सिर्फ आईएमए तक का सफर तय
किया बल्कि अपने गाँव, जिले व राज्य का नाम पूरे देश में रौशन किया है. भिंगराड़ा निवासी मोहित के पिता महेश भट्ट बताते हैं कि बच्चों की शिक्षा व रोजगार की मार उन्हें पहाड़ों से नीचे सितारगंज (ऊधम सिंह नगर) ले आई. लेकिन उनके माता- पिता और छोटे भाई कृष्णा भट्ट ने भिंगराड़ा में ही रहना चुना जिस वजह से उनका पूरा परिवार आज भी भिंगराड़ा में ही रचता बसता है. तराई की जिंदगी से फुरसत निकालकर आज भी वह पूरे परिवार समेत समय-समय पर अपनी उन जड़ों तक वापस जाते रहते हैं जिन तक तमाम पलायित लोगों के वापसपासिंग आउट परेड
न जाने की वजह से पहाड़ी गाँव खाली होकर खंडहर रह गए हैं. बच्चों की शिक्षा के लिए पलायित होने का उनका यह निर्णय आज उनके बेटे मोहित की सफलता के बाद सार्थक नजर आता है.
मोहित के बड़े भाई हरीश भट्ट बताते हैं कि अपनी प्रारंभिक शिक्षा सितारगंज से पूरी करने के बाद मोहित ने छठी कक्षा में प्रवेश के लिए घोड़ाखाल सैनिक स्कूल की प्रवेश परीक्षा दी और परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद बारहवीं तक की शिक्षा सैनिक स्कूल से ही पूर्ण की. कहते हैं घोड़ाखाल सैनिक स्कूल से बारहवीं करने के बाद अफसर बनने की राह आसान हो जाती है लेकिन मोहित के लिए यह आसान नहीं था.पासिंग आउट परेड
बारहवीं के बाद ‘नेशनल डिफ़ेंस अकादमी’ (NDA) की प्रवेश परीक्षा में चयन न होने की वजह से उनका मनोबल टूटना स्वाभाविक था. मोहित के लिए सफलता की सीढ़ी चढ़ने की राह में यह
असफलता का पहला कढ़वा घूँट था लेकिन असफलता से सीख लेकर सफलता की ओर पुन: कदम बढ़ाना ही सफलता पाने का मूल मंत्र है. इसी मूल मंत्र को ध्यान में रखते हुए मोहित उच्च शिक्षा के लिए अहमदाबाद चले गए और वहाँ से मैथ ऑनर्स में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की. स्नातक की पढ़ाई के दौरान भी भारतीय सेना में भर्ती होने के अपने मूल लक्ष्य से मोहित कभी डगमगाए नहीं बल्कि उसकी तैयारियों में जुटे रहे.पासिंग आउट परेड
स्नातक की पढ़ाई के बाद उन्होंने ‘कम्बाइंड डिफेंस सर्विसेज’ (CDS) का अपना पहला इम्तिहान दिया और यह दूसरा मौका था जब उन्हें असफलता का कढ़वा घूँट पीना पड़ा. निराशा थी लेकिन हौसला अभी भी मजबूत था. मोहित पुन: तैयारियों में जुट गए और अपना दूसरा सीडीएस का इम्तिहान दिया और एक बार पुन: असफलता हाथ लगी. हारना मोहित को मंज़ूर नहीं था तो फिर तैयारी में जुट गए. तीसरी बार की असफलता ऐसी थी कि वह उन्हें वापस घर तक खींच लाई. घर वालों का सहयोग हमेशा मोहित के साथ बना रहा.
पासिंग आउट परेड
वह जानते थे कि असफलता का रोना रोने से कुछ हासिल नहीं होने वाला इसलिए एक बार फिर से उन्होंने खुद को मानसिक रूप से तैयार किया तथा हल्द्वानी में रहकर न सिर्फ खुद एसएसबी
की तैयारी करने लगे बल्कि एक कोचिंग में पढ़ा कर दूसरे बच्चों को भी तैयारी करवाते रहे और अपना जीविकोपार्जन करते रहे. अंत में साल 2020 में मोहित ने अपने चौथे प्रयास में सीडीएस की परीक्षा पास कर भोपाल में एसएसबी दिया और उसके बाद जो हुआ वह भिंगराड़ा गाँव के इतिहास में दर्ज हो गया.पासिंग आउट परेड
मोहित ने ऑल इंडिया रैंक 34 हासिल की तथा उनका चुनाव आईएमए के लिए हो गया. 18 माह की अपनी ट्रेनिंग के बाद आज वह विधिवत रूप से लेफ़्टिनेंट के रूप में राष्ट्र की सेवा के लिए भारतीय सेना का अभिन्न अंग बन गए. कोरोना के चलते इस बार की पासिंग आउट परेड को सूक्ष्म ही रखा गया तथा अफसरों के माता-पिता को
भी यह मौका न मिल सका कि वह अपने बच्चों की इस खूबसूरत कामयाबी के गवाह बन सकें. परेड के बाद कुछ हिदायतों के साथ परिवार के लोगों को जरूर अफसरों से मिलने दिया गया. मोहित के माता-पिता व रिश्तेदारों ने भी उनकी पासिंग आउट परेड दूरदर्शन के माध्यम से हीघर पर देखी.पासिंग आउट परेड
मोहित की इस सफलता के पीछे उनकी मेहनत के साथ ही पूरे परिवार का लगातार सहयोग एक प्रमुख कारण रहा. मोहित से ही प्रेरणा लेकर उनके चाचा के लड़के तेजस भट्ट ने साल 2017 में राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज (RIMC), देहरादून की प्रवेश परीक्षा में उत्तराखंड की एकमात्र सीट पर अपना नाम दर्ज करा प्रवेश लिया था. भारतीय सेना में शामिल होने की अपनी प्राथमिकता के साथ ही मोहित अपनी साहित्यिक रूचियों को भी हमेशा तराशते रहे हैं. उन्हें कविताएँ लिखना और मंच से खुद को प्रस्तुत करना बहुत भाता है. साथ ही मोहित को युवाओं से समसामयिक मुद्दों पर बातें करना तथा उन्हें प्रेरित करना पसंद है.
पासिंग आउट परेड
उत्तराखंड के उन तमाम
युवाओं के लिए मोहित प्रेरणास्रोत हैं जो असफलताओं से हारकर सफलता का पीछा करना छोड़ देते हैं. इसलिए मोहित की तरह ही उत्तराखंड के युवाओं को भी अपनी असफलताओं से सीख लेकर अपने नियत लक्ष्य की तरफ तब तक लगातार बढ़ते रहना चाहिये जब तक कि सफलता उनके कदम न चूम ले.(लेखक एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय में शोधार्थी है)