इन्द्र सिंह नेगी
देश के विभिन्न भागों में अपने ढोल वादन की विशेष छाप छोड़ने वाले कालसी विकासखंड के गास्की गांव निवासी सत्तर वर्षीय सीना दा आज अनंत यात्रा पर चल लिए ……वो पिछले छ:
माह से टीबी व पेट के इन्फेक्शन से जूझ रहे थे तथा उनका इलाज एम्स ऋषिकेश से चल रहा था. विगत में हरिद्वार में हुए नमो नाद कार्यक्रम में उन्हे “गुरू” की उपाधि से विभूषित किया गया था.अंक शास्त्र
सीना दा राज्य के उन गिने-चुने ढोल
वादन के विशेषज्ञों में सम्मिलित थे जिन्हे इस विधा की बारीक समझ थी, वो अपनी कला से लोगों का मन मोह लेते थे. नौबत, बधाई, धार्मिक अनुष्ठान, पंडवाणी, झैन्ता, रासो वादन आदि से लेकर लोक गायन तक में उन्हे महारत हासिल थी.अंक शास्त्र
हमारी लोक विरासत के ये जानकर धीरे-धीरे अनंत यात्रा पर निकलते जा रहे और उनके साथ उनकी लोक कलायें भी समाप्त होती जा रही है, हमारी सरकारों के एजेंडे में कलाकारों की अहमियत सिर्फ इतनी है कि जो या जिसका समूह पंजीकृत है उन्हे सूचना व संस्कृति विभाग में उनको थोड़े-बहुत कार्यक्रम दे दो, उसमें भी यदि
कोई जुगाड़बाज ना हो वो वंचित रह जायेगा, कई सालों तक किये गये कार्यक्रमों का भूकतान तक नहीं होते, कुछ बुजुर्ग कलाकारों को पेंशन का झून-झूना थमा दो, वो भी उन्हे ही मिलेगी जिनके पास कलाकार होने का प्रमाण पत्र हो जो ग्रामीण अंचल का साधक हो वो अपने हाल पर ही रहेगा.अंक शास्त्र
सरकारों के लिए संस्कृति का महत्व सिर्फ इतना भर ही है कि कलाकार सरकारी जलसों की शोभा बढ़ाये, उसमें भी मानदेय उसी दिन का मिलेगा जिस दिन प्रस्तुति दी जाती है,
आने-जाने में जो समय लगता है उसका कोई भूकतान नहीं किया जाता. इसके साथ सामाजिक स्तर पर भी ऐसी बेहतर व्यवस्था या माहौल नदारद है जिससे इन कलाओं को विस्तार का अवसर मिल पाए.अंक शास्त्र
खैर ! सीना दा के जाने से एक रिक्तता
महसूस कर रहा हूं, वो अपने पीछे चार पुत्र, तीन बहुओं, भाई-भतीजों सहित भरा पूरा परिवार छोड़ गये, ईश्वर उन्हे सद्गति प्रदान करें.(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता एवं लोक के जानकार हैं)